शिक्षा में बढ़ती `धार्मिक कट्टरता`, स्कूलों में हिजाब पहनने की मांग को लेकर हंगामा
ये सभी बच्चे 11वीं और 12वीं कक्षा में पढ़ते हैं. इनकी उम्र 16 से 17 साल है. लेकिन इनके विचारों में अभी से धार्मिक कट्टरवाद का ज़हर घोला जा रहा है.
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नई दिल्लीः कर्नाटक में अब ऐसे स्कूल और कॉलेजों की संख्या बढ़ती जा रही है, जहां मुस्लिम समुदाय की छात्राएं, हिजाब पहन कर Class Attend करने की इजाज़त मांग रही हैं. पिछले हफ्ते हमने आपको इसके बारे में एक ख़बर दिखाई थी कि कैसे कर्नाटक के स्कूलों में बच्चों द्वारा क्लास में नमाज़ पढ़ी जा रही थी. और उसके बाद से कई और जगहों से ऐसी ख़बरें आ रही हैं. अब इसके विरोध में हिन्दू छात्रों ने ये मांग की है कि उन्हें भी स्कूलों और कॉलेजों में तिलक लगा कर और भगवा रंग का अंगोछा पहन कर Class Attend करने की इजाज़त दी जाए.
हिजाब पहन कर कॉलेज पहुंची मुस्लिम छात्राएं
21 जनवरी को कर्नाटक के उडुपि में स्थित जिस इंटर कॉलेज में कुछ मुस्लिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहन कर आने पर विवाद हुआ था, उसी उडुपि ज़िले के एक और इंटर कॉलेज में अब 27 मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहन कर कॉलेज आने की मांग कर रही हैं. ये भी आरोप है कि 28 और 29 जनवरी को ये सभी छात्राएं हिजाब पहन कर कॉलेज आई थीं, जिसके बाद वहां पढ़ने वाले कुछ छात्रों द्वारा इनका विरोध किया गया था.
इन छात्राओं पर कोई कार्रवाई नहीं
कॉलेज प्रबंधन ने इस विवाद से बचने के लिए तब इन छात्राओं पर कोई कार्रवाई नहीं की. लेकिन बाद में ये मामला इस कदर बढ़ गया कि यहां पढ़ने वाले 100 छात्र, भगवा रंग का अंगोछा पहन कर स्कूल पहुंच गए और उन्होंने मांग की कि अगर मुस्लिम छात्राओं को कक्षा में हिजाब पहन कर आने दिया जाएगा तो वो भी तिलक लगा कर और भगवा रंग का अंगोछा पहन कर कॉलेज आएंगे.
सभी बच्चे 11वीं और 12वीं कक्षा के
सोचिए, ये सभी बच्चे 11वीं और 12वीं कक्षा में पढ़ते हैं. इनकी उम्र 16 से 17 साल है. लेकिन इनके विचारों में अभी से धार्मिक कट्टरवाद का ज़हर घोला जा रहा है. और इस घटना का एक नया वीडियो भी सामने आया है, जिसमें इस कॉलेज के गेट पर कुछ लड़कियों को प्रिंसिपल द्वारा रोक दिया गया, क्योंकि ये सभी लड़कियां हिजाब पहनी हुई थीं.
हिजाब की अनुमति के लिए अभिभावक भी अड़े
इस मामले में स्थानीय विधायक द्वारा मुस्लिम छात्राओं के माता-पिता और कॉलेज प्रबंधन के साथ एक बैठक भी की गई, जिसमें इन लड़कियों के माता पिता खुद ये कह रहे हैं कि अगर कॉलेज प्रबंधन ये लिख कर दे दे कि वो इन लड़कियों को हिजाब पहनने को अनुमति नहीं देगा तो वो फिर वो ये विचार करेंगे कि उन्हें अपनी लड़कियों को इस कॉलेज में भेजना है या नहीं. यानी अगर हिजाब नहीं होगा तो ये लड़कियां स्कूल भी नहीं आएंगी.
एक नहीं और भी कॉलेज में उठी मांग
उडुपि के अलावा कर्नाटक के भद्रावती में भी एक कॉलेज में कुछ लड़कियां हिजाब पहन कर स्कूल आने की मांग कर रही हैं. और यहां भी कॉलेज में पढ़ने वाले दूसरे धर्म के छात्रों ने इसका विरोध किया है. ये सभी छात्र 2 फरवरी को भगवा रंग का अंगोछा पहन कर अपनी कक्षा में पहुंच गए, जिसके बाद वहां काफ़ी हंगामा हुआ. हालांकि यहां पढ़ने वाली ज्यादातर मुस्लिम छात्राएं अब ये कह रही हैं कि उन्हें हिजाब पहन कर कॉलेज आने से कोई नहीं रोक सकता है, क्योंकि भारत का संविधान उन्हें ये इजाज़त देता है.
कर्नाटक सरकार ने बनाई एक्सपक्ट कमेटी
इस मामले में कर्नाटक सरकार द्वारा एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई है, जो कॉलेज Uniform को लेकर आने वाले दिनों में विस्तृत Guidelines जारी करेगी. हालांकि इन Guidelines के जारी होने तक, राज्य सरकार द्वारा सभी स्कूलों और कॉलेजों को ये निर्देश दिया गया है कि वो किसी भी ऐसे छात्र को स्कूलों में प्रवेश नहीं दें, जो धार्मिक चिन्ह और पोशाक में आते हैं. हालांकि, उडुपि के इंटर कॉलेज में पढ़ने वाली 6 मुस्लिम लड़कियां.. इस मामले को लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट पहुंच गई हैं, जहां इसी हफ़्ते इस मामले पर सुनवाई हो सकती है.
हिजाब धर्म के पालन की सच्ची भावना
ज्यादातर मुस्लिम लड़कियों का ये कहना है कि इस्लाम धर्म में हिजाब पहनना, धर्म के पालन की सच्ची भावना को दर्शाता है. और भारतीय संविधान भी उन्हें इसकी पूरी इजाज़त देता है. लेकिन सवाल है कि क्या ये बात सही है? आपको जानकर हैरानी होगी कि इस्लाम के पवित्र धार्मिक ग्रंथ, कुरान में हिजाब और बुर्के जैसे शब्दों का कहीं कोई उल्लेख नहीं किया गया है. इनकी जगह खिमर और जिबाब जैसे शब्द इस्तेमाल किए गए हैं, जिनका अर्थ... महिलाओं द्वारा अपना सिर और चेहरा ढंकने से है. कुरान में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब की पत्नी खिमर और जिबाब धारण करती थीं. लेकिन कुरान में कहीं ये स्पष्ट रूप से नहीं लिखा है कि इस्लाम धर्म को मानने वाली महिलाओं के लिए हिजाब और बुर्का पहनना अनिवार्य है. दूसरी बात, कुरान में कहीं भी इस बात का ज़िक्र नहीं मिलता कि अगर महिलाएं हिजाब और बुर्का ना पहनें तो ये इस्लाम धर्म का अपमान होगा. यानी जो बात ये लड़कियां कह रही हैं कि हिजाब पहनना इस्लाम धर्म के पालन की सच्ची भावना है, ऐसा सैद्धांतिक रूप से पूरी तरह सही नहीं है.
ये पहनावा, इस्लाम धर्म ने दुनिया को नहीं दिया
एक और बात, इस्लाम धर्म की उपत्ति से पहले अरब और मध्य पूर्व के देशों में हिजाब और बुर्के के पहनावे का चलन काफ़ी लोकप्रिय था. यानी ये पहनावा, इस्लाम धर्म ने दुनिया को नहीं दिया. बल्कि ये पहनावा, इस्लाम धर्म को अरब और मध्य पूर्व के देशों की सांस्कृतिक पहचान से मिला. लेकिन एक खास विचारधारा के लोगों ने इन लड़कियों के दिल और दिमाग़ में ये ज़हर भर दिया है कि अगर वो हिजाब पहन कर स्कूल जाएंगी, तभी वो सच्ची मुस्लमान मानी जाएंगी. और हमें पता चला है कि इसके पीछे कुछ कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन हो सकते हैं, जो कर्नाटक के अलग अलग ज़िलों में जाकर मुस्लिम लड़कियों को इसके लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.
धर्म का ख़तरनाक प्रयोग
हमारे देश के स्कूलों में जब धर्म का ये ख़तरनाक प्रयोग किया जा रहा है, तब ये संयोग ही है कि अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए फिर से कुछ विश्वविद्यालय खुलने शुरू हो गए हैं. हालांकि बहुत सारी लड़कियां अब भी अपने कॉलेज नहीं जाना चाहती, क्योंकि तालिबान सरकार ने ये ऐलान किया है कि वो शरिया क़ानून के तहत लड़कों और लड़कियों को एक साथ एक कक्षा में बैठ कर पढ़ने की इजाज़त नहीं देगा. और लड़कियों के लिए कॉलेजों में हिजाब पहनना अनिवार्य होगा. सोचिए, वहां इस कट्टर सोच के ख़िलाफ़ लड़कियां कॉलेज नहीं जा रहीं. लेकिन हमारे देश में कुछ मुस्लिम छात्राएं, हिजाब पहन कर स्कूल जाना चाहती हैं.
हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश
ये दुर्भाग्य ही है कि, आज Tunisia, Morocco, Azerbaijan, लेबनान, सीरिया और कोसोवो जैसे मुस्लिम देशों में हिजाब को लेकर कड़े नियम मौजूद हैं. जैसे, कोसोवो में लड़कियां हिजाब पहन कर स्कूल नहीं जा सकतीं. लेकिन भारत में इसका ठीक उल्टा हो रहा है. जबकि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जो अनेकता में एकता और समानता की बात करता है.
हिजाब और बुर्के की अनिवार्यता को नहीं थोपना चाहिए
अमेरिका के Think Tank, Pew Research Center ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें ये बताया गया था कि मुस्लिम देशों में महिलाएं हिजाब और बुर्के को लेकर क्या सोचती हैं. तब इस रिपोर्ट में Tunisia की 56 प्रतिशत, Turkey की 52 प्रतिशत, लेबनान की 49 प्रतिशत, सऊदी अरब की 47 प्रतिशत और इराक की 27 प्रतिशत महिलाओं ने ये कहा था कि उन्हें क्या पहनना है, ये फैसला उनका होना चाहिए. और उन पर हिजाब और बुर्के की अनिवार्यता को नहीं थोपना चाहिए. लेकिन भारत जैसे देश में संवैधानिक अधिकार के नाम पर लोगों को भ्रमित किया जा रहा है.
ये बदलाव अचानक से नहीं आया
उदाहरण के लिए, शरिया कानून.. कुरान और इस्लाम के दूसरे धार्मिक ग्रंथों और फतवों पर आधारित कानून है और पूरी दुनिया में कई ऐसे देश हैं, जहां मुसलमान चाहते हैं कि उनके देश में भी शरिया कानून लागू हो जाए. और Pew Research के मुताबिक भारत के 74 प्रतिशत मुसलमान चाहते हैं कि सामान्य अदालतों के साथ-साथ देश में शरिया अदालतें भी होनी चाहिए और शरिया कानून को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए. इससे आप समझ सकते हैं कि कर्नाटक के स्कूलों में जो हो रहा है, वो एक पूरी प्रक्रिया का हिस्सा है. यानी ये बदलाव अचानक से नहीं आया.
सरकार को इस संबंध में एक कानून लाना चाहिए
ये बात हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि भारत में स्कूलों में Uniform Code को लेकर कोई एक स्पष्ट कानून नहीं है. इसके अलावा हमारा संविधान और भारत की अदालतें भी इस विषय पर स्थिति को स्पष्ट नहीं कर पाई हैं. और कुछ लोग इसी का फायदा उठाते हैं. इसलिए हमें लगता है कि अब समय आ गया है, जब भारत सरकार को इस संबंध में एक कानून लाना चाहिए, जैसे फ्रांस में वर्ष 2004 में लाया गया था और वहां के सरकारी स्कूलों में धार्मिक चिन्ह, टोपी, लॉकेट, हिजाब और बुर्का पहने कर आने वाले बच्चों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.
देश में कई देश बनाने की परम्परा शुरू
अब कल्पना कीजिए कि भविष्य में कुछ विपक्षी पार्टियां चुनाव में ये वादा करें कि अगर उनकी पार्टी जीत गई तो वो अपने राज्यों के स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पहनने की इजाज़त दे देंगी तो क्या होगा. वैसे एक ही देश में कई देश बनाने की परम्परा शुरू हो चुकी है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने भारत के 72 वर्ष पुराने संविधान को बदल कर नया संविधान लिखने की मांग की है. और कहा है कि मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था में राज्य सरकारों के पास, भारत सरकार से ज्यादा शक्तियां नहीं हैं. इसलिए ये संविधान अब बदला जाना चाहिए. अगर भविष्य में ऐसा हो गया और संविधान में राज्य सरकारों को सबकुछ तय करने के अधिकार दे दिए गए तो फिर ये सबकुछ करना आसान हो जाएगा. तब भारत सरकार अगर कोई कानून बना कर ये प्रावधान ला देगी कि स्कूलों में धार्मिक अनुष्ठान नहीं हो सकते, तब विपक्षी राज्यों की सरकारें, इसे अपने हिसाब से बदल देंगी. और तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने इसके लिए संविधान को दोबारा से लिखने की मांग कर दी है.
संविधान में कोई बदलाव हो सकता है?
अब सवाल है कि क्या विपक्षी राज्यों की सरकारें, इस देश में अपने लिए अलग संवैधानिक व्यवस्था चाहती हैं और क्या इसके लिए संविधान में कोई बदलाव हो सकता है. तो इसका जवाब है नहीं. वर्ष 1973 के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं किया जा सकता. संविधान में शासन की शक्तियों को तीन भागों में बांटा गया है. इनमें पहली है, केन्द्रीय सूची, जिसमें ये बताया गया है कि कौन से विषयों पर केवल केन्द्र सरकार ही कानून बना सकती है. इसमें कुल 100 विषय हैं, जिनमें रक्षा, विदेश, युद्ध, देश की करेंसी और रेलवे प्रमुख हैं. दूसरी है, राज्य सूची जिसमें राज्यों को कुल 61 विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है. और ये विषय हैं, शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस और कृषि . और तीसरी है, समवर्ती सूची, जिसमें केन्द्र और राज्य.. दोनों सरकारें अपने अपने कानून बना सकती हैं. लेकिन अगर इन कानूनों को लेकर कोई टकराव होता है, तो ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार का कानून ही मान्य होगा. और तेलंगाना के मुख्यमंत्री इसी का विरोध कर रहे हैं.
..तो ख़तरनाक स्थिति पैदा हो जाएगी
वो चाहते हैं कि अगर इस सूची में किसी राज्य सरकार ने कोई कानून बना दिया तो भारत सरकार का उसमें कोई दखल ना हो. और अगर ऐसा हो गया, तो एक राष्ट्र के तौर पर भारत के सामने ख़तरनाक स्थिति पैदा हो जाएगी. उदाहरण के लिए, 2019 में केन्द्र सरकार ने एक कानून लाकर तीन तलाक की व्यवस्था समाप्त कर दी थी. अब क्योंकि ये विषय समवर्ती सूची में आता है, इसलिए इस कानून का पालन राज्य सरकारों को भी करना पड़ा. लेकिन भविष्य में अगर ये व्यवस्था खत्म हो गई तो कोई भी राज्य फिर से तीन तलाक की व्यवस्था को बहाल कर देगा और भारत सरकार चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएगी. यानी एक देश, एक विधान का सिद्धांत अस्तित्व में ही नहीं रहेगा.