Delhi Underworld: दिल्ली-NCR में GenZ क्रिमिनल्स की बदौलत काला साम्राज्य बना रहे खूंखार गैंगस्टर्स, अंडरवर्ल्ड की पूरी पड़ताल
Delhi`s GenZ Gangsters: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के कुख्यात इलाके (बैड लैंड) और शहर के सबसे खूंखार गैंगस्टर कौन हैं? उनके बीच भयंकर गैंगवार क्यों छिड़ता रहता है? मौजूदा दौर में के जेनजेड (साल 2000 के बाद पैदा होने वाले) क्रिमिनल्स की गिनती बढ़ रही है? आजकल चारों तरफ गूंज रहे ऐसे सवालों का जवाब जानने के लिए दिल्ली के अंडरवर्ल्ड की पूरी पड़ताल करना बेहद जरूरी हो जाता है.
Delhi Active Gangs And Gangsters: राजधानी दिल्ली में संगठित अपराध करने वाले गैंग और उसके खूंखार सरगनाओं की खतरनाक दुनिया हमेशा से पुलिस और प्रशासन के लिए सिरदर्द रहे हैं. इन गैंगस्टर्स के बीच अक्सर बदले की कार्रवाई खूनी मैदानी जंग में बदलकर नए गैंगवार के लिए जमीन और निशान बना कर जाती रही है. इसके चलते दिल्ली में बार-बार हिंसक वारदातें सामने आती रहती हैं.
दिल्ली पुलिस की कुख्यात गैंगस्टरों की हिट लिस्ट में कौन-कौन?
एक समय दिल्ली पुलिस की कुख्यात गैंगस्टरों की हिट लिस्ट में टिल्लू ताजपुरिया, जितेंद्र गोगी, नीरज बवाना, मंजीत महल वगैरह के नाम प्रमुखता से शामिल थे. उनमें से हरेक ने एक अच्छी तरह से संचालित गैंग चलाया. जमीन कब्जा, अवैध शराब, जबरन वसूली और जुआ उनके ईंधन रहे हैं. इसके ज्यादातर गुर्गे, शागिर्द या शूटर पैसे, बंदूकें और जल्दी मशहूर होने के लालची कच्ची उम्र के युवा थे. इनकी संख्या सौ से अधिक थी.
पिछले दो महीनों में दो बड़ी अपराधिक वारदातों ने दिल्ली में सनसनी फैला दिया है. 18 जून को पश्चिमी दिल्ली में बर्गर किंग आउटलेट में 26 वर्षीय एक व्यक्ति की हत्या और 14 जुलाई को जीटीबी अस्पताल में गोलीबारी में 32 वर्षीय एक व्यक्ति की गलती से गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इन घटनाओं ने शहर के जरायम गिरोहों को फिर से फोकस में ला दिया है.
दिल्ली के सबसे नए 'जेनजेड' गैंगस्टर्स रच रहे आपराधिक साजिश
इनमें से पहले अपराध की साजिश दिल्ली के सबसे नए 'जेनजेड' गैंगस्टर 21 साल के हिमांशु भाऊ ने रची थी. पुलिस ने कहा कि वह पश्चिम दिल्ली में अपना दबदबा कायम करने के लिए पुर्तगाल से काम कर रहा है. दूसरे हमले के पीछे पूर्वोत्तर दिल्ली के एक 'दिग्गज अपराधी' हाशिम बाबा है. इन दोनों ने ही अपने प्रतिद्वंद्वियों से हिसाब बराबर करने के लिए हत्याओं की योजना बनाई थी.
1990 के दशक में दिल्ली में उभरे कई आपराधिक गिरोह
दिल्ली पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, 1990 के दशक में राजधानी भीतरी इलाकों में और इसके आस-पास के इलाकों में कई प्रमुख आपराधिक गिरोह उभरे. वर्षों से वे जमीन, केबल व्यवसाय, शराब कारोबार वगैरह पर प्रभाव स्थापित करने को लेकर आपस में झगड़ते रहे. कई अपराधी जबरन वसूली में लगे हुए हैं तो कई व्यवसायियों को 'हफ्ता' (एक्सटॉर्शन मनी) देने की धमकी दे रहे हैं.
दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में दो किसानों के पहली हिंसक प्रतिद्वंद्विता
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पहली बड़ी प्रतिद्वंद्विता का पता दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में दो किसानों, किशन पहलवान और बलराज से लगाया जा सकता है. पुलिस ने कहा कि 1995 के आसपास, दोनों के बीच झगड़े से शुरू हुआ विवाद पूरी तरह से हिंसा में बदल गया, जिसमें लगभग 50-60 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर प्रतिद्वंद्वी सदस्य थे. पहलवान के गिरोह का वर्चस्व जल्द ही फीका पड़ गया जब इसके आखिरी बड़े नेता, उनके भाई और नजफगढ़ के पूर्व इनेलो विधायक भरत सिंह को कथित तौर पर प्रतिद्वंद्वी गैंगस्टर मंजीत महल ने मार डाला. लेकिन प्रतिद्वंद्विता खत्म नहीं हुई.
मंजीत महल को नफे सिंह ने दी चुनौती, 2015 में खोया असर
इलाके पर दबदबा बनाने वाले मंजीत महल को कपिल सांगवान और उसके सहयोगी नफे सिंह ने चुनौती दी. बाद में महल को गिरफ्तार कर लिया गया और सांगवान के गिरोह को प्रमुखता मिली. इसके बाद बाहरी दिल्ली में गिरोह पनपने लगे. नरेला और बवाना में, संदीप चिटाना और नीटू दाबोदिया के नेतृत्व में दो नए गिरोह प्रभाव के लिए कंपीटिशन करने लगे. वे जबरन वसूली के रैकेट चलाते थे. हालांकि, उन्होंने 2013-2015 में अपना प्रभुत्व खो दिया और टिल्लू ताजपुरिया और जितेंद्र गोगी के गिरोह ने सत्ता संभाली. फिलहाल उसका दबदबा कायम है.
गैंगस्टरों के पास आमतौर पर खास इलाके और दबदबा
दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के एक सीनियर ऑफिसर ने कहा कि गैंगस्टरों के पास आमतौर पर उनके खास इलाके होते हैं जहां वे अपना दबदबा रखते हैं. उन्होंने कहा, "बाहरी दिल्ली में स्थित लोगों का सोनीपत जैसे हरियाणा के कुछ हिस्सों में प्रभाव है. रोहिणी में सक्रिय लोग झज्जर में भी काम करते हैं क्योंकि यह उसी सड़क नेटवर्क पर पड़ता है ... अब, हालांकि, प्रभुत्व वाले क्षेत्र कायम हैं, लेकिन चीजें बदल गई हैं. क्योंकि गैंगस्टर्स पूरी दिल्ली में सक्रिय हैं. बाहरी दिल्ली में बैठा एक अपराधी अब दक्षिणी दिल्ली में एक बिल्डर को धमकी दे सकता है.'
ऑफिसर ने कहा कि गैंगस्टर नेटवर्क "एक पेड़ की तरह" है जिसकी "शाखाएं निकलती रहती हैं. हम एक शाखा काटते हैं, लेकिन फिर से एक नई शाखा बढ़ती है... इसे रोकना बहुत मुश्किल है... हालांकि, उनका संचालन काफी कम हो गया है."
बाहरी दिल्ली में गिरोहों की हरकतों का पूरा ब्योरा
पुलिस ने बताया कि शुरुआत में बाहरी दिल्ली में गिरोह की गतिविधि पर सोनीपत के दो लोगों चिटाना गांव का संदीप चिटाना और डाबोदा खुर्द गांव का नीटू दाबोदिया का वर्चस्व था. वे दोनों पड़ोसी थे. उन्होंने 2005 के आसपास सहयोगियों के रूप में अपराध के क्षेत्र में प्रवेश किया. इसके बाद, जबरन वसूली के पैसे और अपराध की अन्य आमदानियों के बंटवारे ने उनमें दरार पैदा कर दी, लेकिन वे एक साथ रहे. 2009 में दोनों को गिरफ्तार किया गया था.
अगस्त 2012 में, जबरन वसूली के मामले में दिल्ली की एक अदालत में लाए जाने के बाद वे दोनों हरियाणा पुलिस की हिरासत से भाग गए थे. फिर वे अलग हो गए और अपना गिरोह बना लिया. मई 2013 में, हरियाणा पुलिस स्पेशल टास्क फोर्स के साथ सोनीपत के गोघरियन गांव में एक 'मुठभेड़' में चिताना मारा गया. दो साल बाद, अक्टूबर 2015 में, स्पेशल सेल द्वारा वसंत कुंज में एक होटल के बाहर एक 'मुठभेड़' में दाबोदिया को भी मार गिराया गया.
नई दिल्ली रेंज के पुलिस दस्ते का नेतृत्व एसीपी ललित मोहन नेगी और हृदय भूषण ने किया था. उसकी मौत के साथ ही ये गिरोह खत्म हो गए. जल्द ही, नए गैंग और प्लेयर्स उभरे. बाहरी दिल्ली पर अब टिल्लू-गोगी गैंग का दबदबा है. इसके सरगना उनकी प्रतिद्वंद्विता में हताहत हुए लगभग 20 लोगों में से एक थे. टिल्लू उर्फ सुनील बालियान ताजपुर कलां का रहने वाला है. गोगी उर्फ जितेंद्र मान पड़ोस के अलीपुर का रहने वाला था.
टिल्लू और गोगी दोनों की मौत, फिर भी गैंग सक्रिय
स्पेशल सेल के अधिकारियों ने खुलासा किया कि वे कभी करीबी दोस्त थे, लेकिन दिल्ली के स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज में छात्र संघ चुनाव के दौरान कट्टर प्रतिद्वंद्वी बन गए. मार्च 2020 में गोगी को स्पेशल सेल की सीआईयू यूनिट ने गुड़गांव से गिरफ्तार किया था. एक साल बाद, सितंबर 2021 में, रोहिणी कोर्ट के अंदर उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. पुलिस ने कहा कि इस निर्मम हत्या की साजिश टिल्लू ने सलाखों के पीछे से रची थी. उसे 2016 में गिरफ्तार किया गया था.
सरगना को निकाल दें तो ताश के पत्तों की तरह ढहता है गैंग
मई 2023 में, 'बदला' लेने के लिए, टिल्लू की तिहाड़ जेल में कथित तौर पर गोगी के लोगों द्वारा चाकू मारकर हत्या कर दी गई थी. हालांकि, टिल्लू और गोगी मर चुके हैं, लेकिन उनके गिरोह अभी भी ताजपुर कलां और अलीपुर और सोनीपत जैसे हरियाणा के कुछ हिस्सों में सक्रिय हैं. एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “ये गैंगस्टर्स जीवित रहते हुए किसी को प्रमुखता से उभरने नहीं देते. सरगना के चले जाने के बाद गिरोहों के लिए अपना दबदबा जारी रखना बहुत कठिन हो जाता है. यही कारण है कि काउंटर-गिरोह की रणनीति सांप के सिर को कुचलने की है... सरगना को बाहर निकाल दें और गिरोह ताश के पत्तों की तरह ढह जाएगा."
एक और गैंगस्टर दीपक पहल उर्फ बॉक्सर, 2023 में गिरफ्तार
एक और गैंगस्टर दीपक पहल उर्फ बॉक्सर भी गोगी गिरोह के साथ मिला हुआ है. एक जूनियर राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियन दीपक ने 2014-15 में अपराध की दुनिया में कदम रखा. गोगी की मौत के बाद उसने गिरोह की बागडोर संभाली. वह जाली पासपोर्ट का इस्तेमाल करके मैक्सिको भाग गया था. बाद में एफबीआई की मदद से उसे भारत वापस लाया गया और अप्रैल 2023 में स्पेशल सेल द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया.
मौजूदा वक्त में, कई हत्या और जबरन वसूली के मामलों में वांछित गैंगस्टर नरेश ताजपुरिया और इनामी बदमाश दीपक पकास्मा टिल्लू गिरोह को संभालते हैं। पुलिस ने कहा कि टिल्लू का चचेरा भाई पकास्मा तीन साल से और नरेश एक साल से अधिक समय से फरार है. बाहरी दिल्ली के कुछ हिस्सों पर बवाना गांव के प्रतिद्वंद्वी गैंगस्टर राजेश और नीरज का समान रूप से दबदबा है. इन लोगों ने टिल्लू और गोगी के साथ भी गठबंधन किया था. इनमें राजेश बवाना ने गोगी के साथ और नीरज बवाना ने टिल्लू के साथ समझौता किया था.
राजेश की रंगदारी का फलता-फूलता कारोबार, 45 मामले
स्पेशल सेल के अधिकारियों के मुताबिक, राजेश ने रंगदारी का एक फलता-फूलता कारोबार खड़ा किया. नवंबर 2014 में, उसे रोहिणी में एसीपी ललित मोहन नेगी के नेतृत्व में एक विशेष सेल टीम द्वारा गिरफ्तार किया गया था. उस पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत मामला दर्ज किया गया था. वह कम से कम 45 मामलों में शामिल था, जिनमें से ज्यादातर जबरन वसूली और हत्या से संबंधित थे. वहीं, नीरज 300-400 साथियों के साथ बाहरी, उत्तर पश्चिमी और पश्चिमी दिल्ली में जबरन वसूली रैकेट चलाता था. उसे अप्रैल 2015 में गिरफ्तार किया गया था.
नीरज और दाबोदिया के बीच प्रतिद्वंद्विता शुरू
दिल्ली पुलिस के मुताबिक, दोनों शुरुआत में दाबोदिया के लिए काम करते थे. पुलिस ने कहा कि नीरज 2011 तक दाबोदिया की ओर से जबरन वसूली की रकम इकट्ठा कर रहा था. एक पुलिस अधिकारी ने कहा, "दाबोदिया की गिरफ्तारी के बाद, नीरज ने अकेले चलने का फैसला किया और उसे जबरन वसूली की रकम का एक हिस्सा देना बंद कर दिया. इससे नीरज और दाबोदिया के बीच प्रतिद्वंद्विता शुरू हो गई. नीरज से हिसाब बराबर करने के लिए दबोदिया ने राजेश बवाना का समर्थन करना शुरू कर दिया."
गैंगवार के पैरेलल निजी दुश्मनी और लड़ाई
2005 के आसपास, जब चिटाना और दाबोदिया अपने गैंगवार में लगे हुए थे, दरियापुर कलां गांव में निजी दुश्मनी को लेकर एक और युद्ध भड़क रहा था. इसके प्रमुख खिलाड़ी गैंगस्टर सत्यवान सहरावत उर्फ सोनू दरियापुर और उसका कभी सबसे अच्छा दोस्त रहा भूपेन्द्र उर्फ मोनू दरियापुर था. स्पेशल सेल के अधिकारियों ने कहा कि दोनों ने बाहरी दिल्ली, खासकर नरेला में अपराध क्षेत्रों पर हावी होना शुरू कर दिया. बाद में उन्होंने अपने खुद के गिरोह बनाए और जबरन वसूली और जमीन पर कब्जा करना शुरू कर दिया.
एक प्रेम कहानी से दो साथी गैंगस्टर्स के बीच दरार
मोनू और सोनू की चचेरी बहन राजरानी के बीच पनपी एक प्रेम कहानी ने दोनों के बीच दरार पैदा कर दी. 2016 में, सोनू ने मोनू को मारने के लिए उस पर हमला किया लेकिन नाकाम रहा. इश मामले में सोनू को गिरफ्तार कर लिया गया. वह 2009 में पैरोल से छूट गया था. पुलिस ने कहा कि अप्रैल 2017 में, उसने मियांवाली नगर में मोनू और उसकी सुरक्षा के लिए तैनात एक एएसआई की गोली मारकर हत्या कर दी.
उस साल सितंबर में, डीसीपी संजीव यादव के नेतृत्व में स्पेशल सेल की टीम ने नरेला में गोलीबारी के बाद सोनू को पकड़ लिया. वह दिल्ली और हरियाणा में हत्या और हत्या के प्रयास के 10 मामलों सहित कई औक संगीन मामलों में शामिल था.
दक्षिण पश्चिम दिल्ली में गैंगवार में 70 की मौत, 100 गिरफ्तार
नजफगढ़ के गैंगस्टर कपिल सांगवान उर्फ नंदू और दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के घुम्मनहेड़ा गांव के निवासी नफे सिंह के बीच इलाके में विवाद चल रहा है. 2015 में, गैंगस्टर मंजीत महल और नफे सिंह ने पैसे के विवाद में सांगवान के सहयोगी और बहनोई की हत्या करवा दी. बदला लेने के लिए, कपिल और उसके भाई ने नफे सिंह के घर को निशाना बनाया, उसके पिता और बहन की हत्या कर दी और उसकी पत्नी को घायल कर दिया.
पुलिस ने कहा कि नजफगढ़ के मित्राऊं गांव से महल को दिसंबर 2016 में स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया था. उसके खिलाफ 25 आपराधिक मामले हैं. इस बीच, सांगवान फरार है. पुलिस को शक है कि वह ब्रिटेन में छिपा हुआ है. पुलिस ने कहा कि गिरोह के 70 से अधिक सदस्य मारे गए हैं और लगभग 100 को पकड़ लिया गया है.
पूर्वोत्तर दिल्ली में अब हाशिम बाबा का दबदबा
अकील डॉन और आतिफ के नेतृत्व में दो गिरोह सबसे पहले इसी क्षेत्र में उभरे. पुलिस ने कहा कि उनकी प्रतिद्वंद्विता जुए के पैसे पर वर्चस्व को लेकर पैदा हुई थी. 2012 में, अकील ने कथित तौर पर आतिफ की हत्या कर दी. उसे एक गुप्त सूचना मिली कि आतिफ उसे मारने की साजिश रच रहा था और उसने इस मकसद के लिए आगामी गैंगस्टर नासिर और हाशिम बाबा के साथ गठबंधन किया था. बदला लेने के लिए, नासिर और हाशिम ने अगस्त 2012 में अकील की हत्या कर दी. अकील की मौत के बाद उसका शागिर्द 34 साल का इरफान उर्फ छेन्नु पहलवान गिरोह का नेता बन गया.
अकील और आतिफ की मौत ने नासिर, हाशिम और चेन्नू के उत्थान को बढ़ावा दिया. स्पेशल सेल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'अब्दुल उर्फ नासिर गैंगस्टरों से प्रभावित होने से पहले छोटी नौकरियां करता था. आतिफ की मौत के बाद उसने अपना गैंग बनाया. उसकी पहलवान के गैंग से गहरी प्रतिद्वंद्विता थी. इस गैंगवार में ट्रांस-यमुना इलाके में कम से कम 17 हत्याएं हुईं.
टीनएज में ही अपराध करना शुरू कर दिया था
हाशिम बाबा या आशिम ने किशोरावस्था में ही अपराध करना शुरू कर दिया था. 2013 के आसपास अपना गिरोह बनाने से पहले वह नासिर के लिए काम करने वाला एक शार्पशूटर था. उसे 2019 में स्पेशल सेल की टीम ने गिरफ्तार किया था. तब से, वह जेल से काम कर रहा है और उसने कम से कम आधा दर्जन हत्याओं का आदेश दिया है, जिसमें इस महीने जीटीबी अस्पताल में हुई हत्या भी शामिल है जहां उसी वार्ड में भर्ती एक प्रतिद्वंद्वी गैंगस्टर की बजाय गलती से एक मरीज की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
हाशिम बाबा ने जेल में बंद गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के साथ हाथ मिलाया है. उसके खिलाफ 16 मामले हैं, जिनमें से ज्यादातर हत्या और हत्या के प्रयास के हैं. चेन्नू पूर्वोत्तर दिल्ली के सीलमपुर का रहने वाला है. वह और उसका गिरोह पूर्वोत्तर दिल्ली और शाहदरा में दर्जनों गोलीबारी, जुए के पैसे के लिए हत्याएं, जबरन वसूली और हत्या के प्रयास के मामलों में शामिल है. पुलिस ने कहा कि बाबा और नासिर ने दिसंबर 2015 में कड़कड़डूमा अदालत में लाए जाने पर चेन्नु को मारने के लिए एक किशोर को काम पर रखा था. हालांकि, उसने दिल्ली पुलिस के एक हेड कांस्टेबल की गोली मारकर हत्या कर दी थी.
पश्चिमी दिल्ली में सिर्फ हिमांशु भाऊ गैंग की एक्टिविटी
पश्चिमी दिल्ली में फिलहाल एकमात्र गिरोह एक्टिव है. उसका नेतृत्व हिमांशु भाऊ कर रहा है. हरियाणा के रोहतक के रिटौली गांव का रहने वाला भाऊ पिछले छह महीनों के दौरान दिल्ली में सक्रिय हो गया था. स्पेशल सेल के अधिकारियों के मुताबिक, भाऊ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, खासकर व्हाट्सएप के जरिए रंगदारी की मांग करता है और अपने शूटरों को पीड़ित के घर या ऑफिस में गोलीबारी करने के लिए भेजता है. 2020 में, 17 साल की उम्र में भाऊ को हत्या के प्रयास के मामले में किशोर सुधार सुविधा केंद्र में भेजा गया था. कुछ महीने बाद वह भाग निकला था.
भाऊ के खिलाफ हरियाणा के झज्जर में करीब 17 मामले दर्ज हैं. भाऊ के ज्यादातर जबरन वसूली के शिकार पश्चिमी दिल्ली में प्रॉपर्टी डीलर और कार शोरूम के मालिक हैं. मार्च में उसके साथियों ने दिल्ली और सोनीपत के बीच गुलशन ढाबे पर एक शराब कारोबारी पर 35-40 राउंड फायरिंग की थी. उसके सहयोगी जून में बर्गर किंग गोलीबारी के मुख्य आरोपी हैं. स्पेशल सेल के अधिकारियों के अनुसार, वह फिलहाल पुर्तगाल में है और दूर से अपने गिरोह का संचालन कर रहा है.
दक्षिणी दिल्ली में रोहित चौधरी और रवि गंगवाल गिरोह
दक्षिणी दिल्ली इलाके में रोहित चौधरी और रवि गंगवाल गिरोह आया नगर और अंबेडकर नगर में सक्रिय है. दोनों जबरन वसूली रैकेट और अवैध शराब का कारोबार चला रहे हैं. पुलिस ने कहा कि वे गैंगवार में शामिल नहीं हुए हैं. पुलिस ने कहा कि रोहित चौधरी जबरन वसूली, हत्या के प्रयास और हत्या के कई मामलों में शामिल था. उसके गिरोह ने ही तिहाड़ में हाशिम बाबा और लॉरेंस बिश्नोई से जुड़े गैंगस्टर प्रिंस तेवतिया की हत्या की थी. उसे 2021 में गिरफ्तार किया गया था और वह मंडोली जेल में है.
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वहीं, रवि गंगवाल हत्या, हत्या के प्रयास और जानलेवा हमले के एक दर्जन मामलों में शामिल रहा है. उसे कई राज्यों में छह महीने तक पीछा करने के बाद जून 2021 में स्पेशल सेल की टीम ने गिरफ्तार किया था. हालांकि, सितंबर 2023 से वह जेल से बाहर है. एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि क्राइम ब्रांच ने गैंगस्टरों के असर और हरकतं को शुरू से ही रोकने के लिए कई प्रयास किए हैं. पिछले कुछ वर्षों में, अधिकांश सीक्रेट ऑपरेशन में पुलिस ने गैंगस्टरों या उनके शार्पशूटरों का पीछा किया और कई गिरफ्तारियां हुईं.
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स्पेशल सेल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पहले, पुलिस गिरोह की गतिविधियों से निपटने के लिए 'पता लगाने' के तरीके को प्राथमिकता देती थी. वे यह पता लगाते थे कि अपराधी कौन थे और उन पर रोक लगाते थे. पुलिस अधिकारी ने कहा, “अब, ध्यान रोकथाम पर है ताकि अपराधी शहर और पड़ोसी राज्यों के बाकी इलाके या जिलों में न फैलें.”