ED ने रात भर जगाकर दर्ज किया बिजनेसमैन का बयान, SC ने जांच एजेंसी से मांगा जवाब
Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में कई सवाल उठाए गए है. कहा गया है, कि क्या ED किसी आरोपी को रात भर जगाकर उसका बयान दर्ज कर सकती है, क्या किसी व्यक्ति को जांच एजेंसी की ओर से हिरासत में लेने और उस पर पाबंदी लगाने के वक्त से ही उसे गिरफ्तार नहीं माना जाना चाहिए.
Enforcement Directorate : क्या ED किसी आरोपी को रात भर जगाकर उसका बयान दर्ज कर सकती है! क्या किसी व्यक्ति को जांच एजेंसी की ओर से हिरासत में लेने/ उस पर पाबंदी लगाने के वक्त से ही उसे गिरफ्तार नहीं माना जाना चाहिए! सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में यही सवाल उठाए गए है. व्यवसायी राम कोटुमल इसरानी ने याचिका दायर कर बैंक फ्रॉड के मामले में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी है. कोर्ट ने याचिका पर ED को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता को छूट दी है कि वो चाहे तो जमानत के लिए अवकाशकालीन बेंच के सामने मामला रख सकते है.
याचिका में शिकायत
राम इसरानी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है की पिछले साल 7 अगस्त को ED के समन की तामील करते हुए वह सुबह 10:30 बजे ED के दफ्तर में पहुंचे .जैसे ही वह दफ्तर पहुंचे,उनका मोबाइल फोन उनसे ले लिया गया, उनके दफ्तर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी गई. पूरे वक़्त वो ED के अधिकारियों से घिरे रहे. उन्हें किसी से बातचीत की इजाजत नहीं थी. यहाँ तक कि बाथरूम इस्तेमाल करने भी वो अकेले नहीं जा सके, ED का एक अधिकारी उनके साथ था. यही नहीं, 7 अगस्त को पूरी रात उनको जगाकर रात 10 बजे से सुबह 3 बजे तक उनका बयान दर्ज किया गया. इसके बाद ED ने 8 अगस्त को सुबह साढ़े पांच बजे उनकी गिरफ्तारी दिखाई. उसी दिन शाम 5 बजे मुंबई में स्पेशल कोर्ट(पीएमएलए) के सामने उनकी पेशी हुई.
रात भर जगाकर बयान दर्ज किया गया
याचिका में कहा गया है कि राम इसरानी शारीरिक तौर पर फिट नहीं है, फिर भी 64 साल की उम्र में उन्हें रात भर जागना पड़ा.उन्हें 7 अगस्त की सुबह साढ़े दस बजे से लगातार 20 घन्टे जागना पड़ा. हालांकि इससे पहले भी तीन बार वो ED के सामने पेश होकर अपना बयान दर्ज करा चुके है, पर ED ने रात भर उनसे पूछताछ की.
बॉम्बे HC ने क्या कहा
बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने आदेश में इसे माना कि सोने का अधिकार जीवन के अधिकार का ही एक हिस्सा है. ED ने इस केस में याचिकाकर्ता के इस अधिकार का हनन किया है, हालांकि इसके बावजूद बॉम्बे हाई कोर्ट ने गिरफ्तारी को रद्द नहीं किया.इसके चलते याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ा है.
SC के सामने बड़ा सवाल
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में तय करेगा कि किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी का सही वक़्त क्या माना जाए. उस समय से,जब से उसको हिरासत में लेकर पाबंदी लगाई गई या उस वक्त से, जब जांच एजेंसी ने अपने अरेस्ट मेमो में उसे गिरफ्तार दिखाया . इसको लेकर अलग-अलग हाई कोर्ट के अलग-अलग फैसले हैं . इस केस में याचिकाकर्ता का कहना है कि 7 अगस्त को सुबह साढ़े दस बजे ED के दफ्तर में पहुंचते ही जैसी पाबन्दी उन पर लगाई गई, उनकी गिरफ्तारी उसी वक्त से माना जाना चाहिए. जबकि ED की ओर से दाख़िल रिमांड अर्जी में गिरफ्तारी का वक्त सुबह साढ़े 5 बजे दिखाया गया है. याचिकाकर्ता के मुताबिक इस लिहाज शाम 5 बजे कोर्ट में उनकी पेशी( गिरफ्तारी के बाद 24 घन्टे में पेशी की निश्चित समयसीमा के बाद) हुई है. ये संविधान के आर्टिकल 22(2)के तहत मूल अधिकार का उल्लंघन है.