Zee News DNA Bihar Education System Show: शिक्षक का काम क्या होता है ? इसका सबसे सामान्य सा जवाब है - बच्चों को पढ़ाना. शिक्षक शब्द का मतलब ही होता है- शिक्षण का कार्य करने वाला.  लेकिन हमारे देश में शिक्षक का मतलब होता है- चुनाव के वक्त Duty देने वाला, जनगणना के वक्त घर-घर जाकर Survey करने वाला, Health Camps में Polio Drops पिलाने वाला, स्कूलों में Mid-Day Meal Scheme का खाना बनाने वाला. वहीं बिहार में शिक्षक होने का अब एक और मतलब बन गया है और वो है- बोरे बेचने वाला. जी हां, हम बिलकुल सही कह रहे हैं. 


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वर्ष 2014 से ही बिहार में सरकारी स्कूलों को शिक्षा विभाग ने ये Task दिया हुआ है कि Mid day Meal के लिए स्कूलों में जो अनाज आता है, उनके खाली बोरों को दस रूपये प्रति बोरे की दर पर बेचें और उसका पैसा सरकारी खजाने में जमा करवायें. ताजा आदेश में बिहार के शिक्षकों को कहा गया है कि अबतक जो बोरे वो 10 रूपये की दर से बेच रहे थे, वो बोरे अब 20 रुपये की दर से बेचें. 


बोरे न बेचने पर कट जाएगा वेतन


हैरानी की बात देखिए, बिहार में सरकारी स्कूलों के शिक्षक भले ही बच्चों को पढ़ायें या ना पढ़ाएं . लेकिन उन्हें बोरे बेचना जरूरी है. सरकारी आदेश है कि अगर बोरे नहीं बेचे, तो शिक्षकों पर Disciplinary Action हो सकता है. इतना ही नहीं, बोरे के पैसे जमा नहीं करवाए तो शिक्षकों का वेतन रूक सकता है. 


सोचिये, जिन शिक्षकों (Zee News DNA Bihar Education System Show) के कंधों पर बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी होनी चाहिए. उनके कंधों पर खाली बोरे बेचने का बोझ डाल दिया गया है. ये बोझ कितना भारी है, इसका एक वीडियो वर्ष 2021 में वायरल हुआ था. उस वीडियो में कटिहार के एक शिक्षक, सिर पर बोरा बेचते नजर आ रहे थे. उनके गले में तख्ती लटकी हुई थी, जिस पर लिखा था कि वो सरकार के आदेश पर खाली बोरा बेच रहे हैं. एक लकड़ी की तख्ती उनके हाथ में थी जिस पर लिखा था - बोरा ले लो बोरा, 10 रुपये में MDM का खाली बोरा. 


ये वीडियो बिहार में शिक्षा व्यवस्था का हाल बयान कर रहा था. लेकिन व्यवस्था को सुधारने के बजाय बिहार के शिक्षा विभाग ने वीडियो बनाने वाले शिक्षक के खिलाफ ही Action ले लिया. यानी बिहार के शिक्षा विभाग ने ठाना हुआ है कि वो शिक्षकों को बच्चों को पढ़ाने के लिए मजबूर कर पाए या ना कर पाए, लेकिन शिक्षकों से बोरे तो बिकवा कर ही रहेगा. 


शिक्षा विभाग ने जारी किया नया फरमान
 
अब नया फरमान आ गया है, जिसमें कहा गया है कि बिहार के शिक्षकों (Zee News DNA Bihar Education System Show) को 10 रुपये की बजाय, 20 रुपये का बोरा बेचना पड़ेगा क्योंकि अब बोरों का Market Rate बढ़ गया है. इस नए आदेश के बाद, बोरे बेच-बेचकर परेशान हो चुके बिहार के शिक्षकों को समझ नहीं आ रहा कि वो करें तो करें क्या, कहें तो कहें क्या?


ये है बिहार की शिक्षा नीति. जिसमें शिक्षकों के लिए बच्चों को पढ़ाना इतना अनिवार्य नहीं है, जितना बोरे बेचना क्योंकि बच्चों को पढ़ाने में तो सरकार के पैसे खर्च होते हैं और बोरे बेचने से कमाई होती है. लेकिन ये कमाई कहां खर्च होती है, इसका कोई हिसाब-किताब नहीं होता. 


शिक्षकों का बोरे बेचना भी सफल हो जाता, अगर इसका पैसा बिहार के सरकारी स्कूलों को सुधारने में खर्च होता. लेकिन बिहार के सरकारी स्कूलों की हालत क्या है, ये किसी से भी छिपा नहीं है, आज हम आपको बिहार के कुछ सरकारी स्कूलों की हालत भी दिखा देते हैं, जहां के शिक्षकों को बोरे बेचने के सरकारी कार्य पर लगा दिया गया है. 


बिहार में शिक्षा व्यवस्था की बदहाली


भागलपुर के सैदपुर में उच्च विद्यालय में छात्र, क्लास रूम के अंदर छाते (Zee News DNA Bihar Education System Show) के नीचे पढ़ाई करते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां बारिश होने के बाद छत से पानी टपकता है. लिहाजा छात्रों को एक हाथ से छाता पकड़ना होता है और दूसरे हाथ में कलम पकड़नी होती है. ये हाल तब है जब 13 वर्ष पहले शिक्षा भवन ने इस स्कूल के नए भवन के निर्माण के लिए 26 लाख रुपये की राशि आवंटित की थी लेकिन छात्र आज भी आधी-अधूरी बनी ईमारत में पढ़ रहे हैं . 


अब बिहार के एक और स्कूल के बारे में जान लीजिए, ये मुंगेर में असरगंज का सरकारी कन्या विद्यालय है. जहां लगातार बारिश के बाद ऐसा लगता है कि जैसे तालाब के बीच किसी ने स्कूल बना दिया है. स्कूल में इतना पानी भरा है कि बच्चों को जूते-चप्पल हाथ में पकड़कर पानी को पार करके स्कूल के अंदर जाना पड़ता है. 



मधेपुरा के मुरलीगंज में कस्तूरबा गांधी स्कूल का भी ऐसा ही हाल है. पूरे स्कूल परिसर में बदबूदार पानी भरा हुआ है और बच्चों को जहरीले जानवरों का डर सताता रहता है. इतनी गंदगी के कारण बच्चे बीमार भी पड़ रहे हैं. कई बार शिकायत के बावजूद कोई इस तरफ ध्यान देने को तैयार नहीं है. 


आखिर क्यों नहीं होता हालात में सुधार


सहरसा के राजकीय कन्या विद्यालय (Zee News DNA Bihar Education System Show) की हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि खंडहर होने का अहसास देती है जो कब गिर जाए, कहा नहीं जा सकता. इस स्कूल में साढ़े आठ सौ छात्राएं पढ़ती हैं. लेकिन स्कूल में ना तो पीने के पानी की कोई व्यवस्था है और ना शौचालय की. 


तो ये है असली तस्वीर, बिहार के सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था की. जिसे सुधारने के लिए बिहार के शिक्षा विभाग को बिलकुल भी नहीं पड़ी है क्योंकि शायद उसका तो पूरा ध्यान स्कूलों में शिक्षकों से बोरे बिकवाने पर टिका है. तो अब आप तय कर लीजिये कि जब देश के स्कूलो की हालत इतनी बदहाल हो और शिक्षकों को बोरे बेचने का आदेश दिया जाए तो कैसे पढ़ेगा इंडिया और कैसे आगे बढ़ेगा इंडिया. 


अब एक बात तो एकदम Clear है. बिहार में सरकारी स्कूलों (Zee News DNA Bihar Education System Show) के अंदर बच्चों को पढ़ाना Secondary है, क्योंकि शिक्षकों को कभी चुनाव की ड्यूटी पर लगाना, कभी जनगणना करवाना और बोरे बिकवाना Primary है. यही बिहार सरकार की असली शिक्षा नीति है. इस शिक्षा नीति का असर क्या होता है. 


स्कूलों में मैदान और लाइब्रेरी नहीं


बिहार की शिक्षा व्यवस्था की बदहाली का अंदाजा इस बात से लगा लीजिये कि वहां 90 फीसदी प्राथमिक विद्यालयों में खेलने के लिए मैदान या पुस्तकालय तो भूल ही जाइये, पर्याप्त चारदीवारी तक भी नहीं है.


रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के सिर्फ 35 प्रतिशत प्राथमिक स्कूल और सिर्फ 5 प्रतिशत उच्च प्राथमिक स्कूल ही, Right To Education के तहत, 30 छात्रों पर एक शिक्षक के मानदंड को पूरा करते हैं. 


आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि बिहार में 5227 सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए सिर्फ एक शिक्षक है. ऐसा इसलिए हैं क्योंकि शिक्षकों की कमी के मामले में बिहार, देश का top राज्य है, जहां शिक्षकों के 1 लाख 87(सत्तासी) हजार 209 पद खाली हैं. 


देशभर में शिक्षक नहीं कर पाते असली काम


जब स्कूलों की हालत इतनी खराब हो, ऊपर से शिक्षकों (Zee News DNA Bihar Education System Show) की इतनी भारी कमी हो, तो सवाल उठता है कि शिक्षा में गुणवत्ता का स्तर कैसे सुधरेगा. लेकिन बिहार की शिक्षा व्यवस्था में इस सवाल के बारे में सोचने वाला शायद कोई नहीं है, इसलिए जो शिक्षक हैं भी, उन्हें भी बोरे बेचने के काम पर लगा दिया गया है. लेकिन शिक्षकों को पढ़ाने के बजाय, Non Teaching कार्यों में लगा देने का रिवाज़, सिर्फ बिहार में हो, ऐसा भी नहीं है. ये पूरे देश की समस्या है. 


National Institute Of Educational Planning And Administration की Study के मुताबिक हमारे देश में शिक्षक, अपनी Duty का सिर्फ 19 प्रतिशत समय ही बच्चों को पढ़ाने के कार्य में बिताते हैं. जबकि 38 प्रतिशत समय, स्कूल Management और Administrative कार्यों में बिताते हैं. शिक्षकों का सबसे ज्यादा 42 प्रतिशत वक्त, Non Teaching Work में बीतता है, जैसे कि चुनाव Duty, जनगणना Duty और अन्य सरकारी Survey. 


नॉन टीचिंग कार्यों में बिताना पड़ता है वक्त


वर्ष 2019 में आई नई शिक्षा नीति में भी कहा गया है कि हमारे देश में शिक्षकों को Non Teaching Work में लगा देना, एक बहुत बड़ी समस्या है . नई शिक्षा नीति में साफ-साफ निर्देश दिये गये हैं कि शिक्षकों को Non Teaching Work जैसे कि Vaccination Drive, और Mid-day Meal के प्रबंधन जैसे कामों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन चार साल बीत जाने के बाद भी शिक्षा नीति के निर्देशों का पालन करना किसी ने जरूरी नहीं समझा. राज्य न चाहे कोई भी हो, हमारे देश में शिक्षकों को पढ़ाने के साथ-साथ सरकारी योजनाओं की Duty लगा देना एक Culture बन चुका है लेकिन बिहार में तो हद ही है, जहां शिक्षक बोरे बेच रहे हैं .