नई दिल्ली: कोरोना वायरस (Coronavirus) की दूसरी लहर में हम सभी ने देखा कि किस तरह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi) की स्वास्थ्य सेवाएं जकड़ी हुई थीं. अस्पतालों के बाहर मरीजों की लाइन तो जैसे आम बात हो गई थी. ऐसे में क्या राजधानी ने दूसरी लहर से कुछ सीखा? इसकी पड़ताल करने ज़ी मीडिया की टीम दिल्ली के घोगा गांव (Ghoga Village) पहुंची.


गांव में नहीं दिखा अस्पताल


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यहां हमने देखा कि गांव की सड़कें चमचमा रही थीं. गांव में बिजली भी भरपूर आ रही थी. गांव में बैंक की ब्रांच से लेकर एटीएम और डीटीसी का बस अड्डा तक था. लेकिन नहीं था तो बस एक प्राथमिक अस्पताल (Primary Hospital), जहां लोग इलाज करवा सकें. गांव में रहने वाले प्रमोद का कहना है कई साल पहले यहां सामुदायिक केंद्र में एक डिस्पेंसरी थी, जहां पर वे इलाज कराते थे. लेकिन वक्त के साथ डिस्पेंसरी भी बंद हो गई. 


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15 किमी दूर इलाज को जाते हैं मरीज


जिस भवन में कभी डिस्पेंसरी हुआ करती थी, आज वो जर्जर हालत में है. छज्जा टूटने की कगार पर है, कभी भी ध्वस्त हो सकता है. प्रमोद के मुताबिक, अगर गांव में कोई बीमार होता है तो सबसे नजदीक में जो अस्पताल है वो 10 से 15 किलोमीटर पर है. मजबूरी में इतनी दूर मरीज को लेकर जाना पड़ता है जो कई बार जानलेवा भी साबित हो जाता है. वहीं घोगा गांव के निवासी बुजुर्ग शिवचरण बताते हैं कि पिछले 2 महीने से गांव के कई लोगों को खांसी-बुखार हुआ था. लेकिन गांव में प्राथमिक अस्पताल और डॉक्टर ना होने पर 10 से 15 लोगों की मौत हो गई तो कुछ लोग घर पर ही बिना दवा के ठीक हो गए. 


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पूर्व दिल्ली CM ने शुरू की थी डिस्पेंसरी


गांव वालों ने आगे बताया कि कोई भी सरकारी जमला ना ही टेस्टिंग के लिए आया और ना ही दवा देने के लिए. आपको बताते चलें कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहेब सिंह वर्मा ने साल 1997 में इस घोगा गांव में सामुदायिक केंद्र का उद्घाटन किया था, जिसमें डिस्पेंसरी भी खुली थी. लेकिन सरकारें बदलती गईं और सामुदायिक केंद्र की हालत खराब होती गई और आखिर में सामुदायिक केंद्र और डिस्पेंसरी दोनों बन्द हो गई.


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