नई दिल्ली: 11 अक्टूबर यानी कल जम्मू कश्मीर के पुंछ में सर्च ऑपरेशन के दौरान आतंकवादियों ने छिपकर सेना के जवानों पर हमला कर दिया और अंधेरे का फायदा उठाकर वहां से भाग गए. इस हमले में 5 जवान शहीद हो गए और इस इलाके में ये अब तक की सबसे बड़ी मुठभेड़ है. 17 साल पहले यहां ऐसा ही एनकाउंटर हुआ था, जिसमें चार जवान शहीद हो गए थे. 


शहादत की दर्द भरी कहानी


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आज सुबह के अखबारों में आपने ये खबर पढ़ी होगी कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में भारतीय सेना के 5 जवान मारे गए हैं. आपको थोड़ी देर के लिए दुख हुआ होगा लेकिन फिर आप अपने काम में व्यस्त हो गए होंगे. ये सोचकर कि कश्मीर में तो ऐसे एनकाउंटर होते ही रहते हैं और सेना के जवान भी शहीद होते ही रहते हैं.


आज हम आपको बताएंगे कि हर जवान के पीछे  बलिदान और शहादत की एक दर्द भरी कहानी होती है, जिसे सिर्फ उसका परिवार ही समझ सकता है. जब हमारे इन शहीदों पर कोई फिल्म बनती हैं, तो देश के लोग टिकट खरीदकर उसे देखने जाते हैं और उस शहीद की भूमिका निभाने वाले एक्टर को ही असली हीरो समझ लेते हैं और फिर उसके फैन बन जाते हैं. लेकिन आज हम आपको असली शहीदों की असली कहानी सुनाएंगे और फिर आप तय कीजिएगा कि अपने जीवन का हीरो आप किसे बनाएंगे.


आखिरी बार मां और पत्नी से बात 


देश पर जान कुर्बान करने वाले इन शहीदों में सिपाही गज्जन सिंह भी थे, जिनका परिवार पंजाब के रूपनगर जिले में रहता है. शहीद गज्जन सिंह की शादी फरवरी महीने में ही हुई थी. 8 अक्टूबर को उन्होंने अपने घर पर अपनी मां और पत्नी से बात की थी, और उनके आखिरी शब्द थे, यहां सबकुछ ठीक है आप लोग घबराओ मत. लेकिन इसके तीन दिन बाद ही 11 अक्टूबर को वो देश के लिए शहीद हो गए.


सिपाही गज्जन सिंह इसी महीने की 26 तारीख को 29 साल के होने वाले थे. उन्होंने अपनी पत्नी से वादा किया था कि वो शादी के बाद अपना पहला जन्मदिन घर पर उनके साथ ही मनाएंगे. लेकिन अब वो ये वादा कभी पूरा नहीं कर पाएंगे. उनकी शहादत से परिवार सदमे में तो है लेकिन उनकी मां और पत्नी को उन पर सबसे ज्यादा गर्व भी है.


शहादत पर परिजनों को गर्व


सोचिए शहीदों के परिवार किस मिट्टी के बने होते हैं कि जिस माता पिता ने अपना बेटा खो दिया, जिस महिला ने अपना पति और जिस बहन ने अपना भाई खो दिया, वो ये कह रहे हैं कि उन्हें उनकी शहादत पर गर्व है, ना कि कोई अफसोस है.


सिपाही सरज सिंह की कहानी भी आज आपको सोचने पर मजबूर कर देगी. वो केवल 25 साल के थे और दो साल पहले ही 2019 में उनकी शादी हुई थी. मुठभेड़ से कुछ घंटे पहले, 10 अक्टूबर की रात को उन्होंने अपनी पत्नी से फोन पर बात की थी और कहा था कि मैं दीवाली पर इस बार जरूर आऊंगा, लेकिन अभी मैं सोने जा रहा हूं.


हमेशा के लिए नींद में सो गए...


ये कहते हुए उन्होंने अपना फोन रख दिया. लेकिन वो अपनी नींद भी पूरी नहीं कर पाए और उन्हें आतंकवादियों की तलाश में ऑपरेशन पर निकलना पड़ा. परिवार ने इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि इस पल के बाद वो ऐसी नींद में सो जाएंगे कि फिर कभी लौटकर नहीं आएंगे. सरज सिंह उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के रहने वाले थे. वह तीन भाइयों में सबसे छोटे थे और उनके दोनों बड़े भाई अब भी सेना में है और कश्मीर में ही पोस्टेड हैं.


40 साल के शहीद जवान नायब सूबेदार जसविंदर सिंह पंजाब के कपूरथला के रहने वाले थे. वो पिछले 20 वर्षों से भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रहे थे और उन्हें 2006 में कश्मीर में तीन आतंकवादियों को मुठभेड़ में मार गिराने के लिए सेना मेडल से सम्मानित किया गया था. इसी साल मई में उनके पिता का देहांत हो गया था जिसके बाद वो घर आए थे.


स्वर्गीय पिता की रस्में रह गईं अधूरी


मुठभेड़ से एक रात पहले उन्होंने अपनी पत्नी को कहा था कि वो अगले महीने अपने स्वर्गीय पिता की अंतिम क्रिया से जुड़ी रस्में पूरी करने के लिए आएंगे. लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि अब परिवार उनके अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहा है. उनके पिता हरभजन सिंह सेना में कप्तान की पोस्ट से रिटायर हुए थे और बड़े भाई भी सेना में रह चुके हैं.


शहीद जवानों में पंजाब के गुरदासपुर के रहने वाले मनदीप सिंह भी शामिल हैं, जिनकी उम्र 30 साल थी. लेकिन 16 अक्टूबर को अपने जन्मदिन से ठीक एक हफ्ते पहले वो शहीद हो गए. उन्होंने सितंबर 2011 में भारतीय सेना ज्वाइन की थी और एक महीने पहले ही उनका बेटा हुआ था. तब वो ज्यादा दिन के लिए छुट्टी लेकर घर नहीं आ सके लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी को वादा किया था कि वो जल्द घर आएंगे और उनसे मिलेंगे. लेकिन ये वादा भी अधूरा रह गया और अब वो कभी वापस नहीं लौटेंगे.


जवान के कंधों पर घर का भी बोझ


शहीद वैसाख एच केरल के कोलम जिले के रहने वाले थे. 23 साल के वैसाख ने वर्ष 2017 में आर्मी ज्वाइन की थी और वो घर में अकेले कमाने वाले व्यक्ति थे. उनके पिता की कोविड के दौरान नौकरी छूट गई थी, जिसके बाद घर की जिम्मेदारी वही उठा रहे थे. यहां तक कि उनकी शादी भी तय हो गई थी, लेकिन अपनी बहन की शादी पहले करने के लिए उन्होंने अपनी शादी से इनकार कर दिया था.


वैसे हमारे देश के लोगों की याददाश्त बहुत कमजोर होती है. उन्हें फिल्मों की कहानियां तो याद रहती हैं, फिल्मों के किरदार भी याद रहते हैं, किस मैच में किस खिलाड़ी ने कितने रन बनाए थे, ये तक याद रहता है. लेकिन हमारे देश के जवान जब इन्हीं लोगों के लिए अपना जीवन कुर्बान कर देते हैं, तब देश में शुरुआत के दो चार दिन तो उन्हें याद किया जाता है, आंसू बहाए जाते हैं, हैशटैग ट्रेंड कराए जाते हैं. लेकिन फिर धीरे-धीरे लोग अपनी जिन्दगी में मशगूल हो जाते हैं और आगे बढ़ जाते हैं. लेकिन हमें लगता है कि आज आपको पुंछ में शहीद हुए इन जवानों की कहानी याद रखनी चाहिए.


एक शहीद परिवार के घर जाना तीर्थ यात्रा करने के बराबर होता है और आज हम आपको इन सभी शहीदों के परिवारों के घर ले जाना चाहते हैं.