Anand Mohan News: क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में अगर कोई व्यक्ति किसी की हत्या कर दे और फिर कोर्ट, हत्यारे को उम्रकैद की सजा सुना दे, तो उसे कितने साल की सजा होती है? अगर किसी हत्यारे को उम्रकैद की सज़ा दी गई है तो वो उम्रभर जेल में रहेगा. लेकिन अब इसे देश की विडंबना कहिए कि हमारे यहां उम्रकैद के दो मतलब हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

पहला है- उम्रकैद मतलब जीवनभर जेल में रहना और दूसरा है- उम्रकैद मतलब 'जब तक 'मालिक' चाहें'. क्या आप जानते हैं कि ये मालिक कौन होता है. ये होती है 'सरकार'.  वही सरकार जिसे आप वोट देकर इसलिए चुनते हैं, ताकि वो आपको माफियाराज, गुंडागर्दी, अपहरण और हत्या करने वाले जघन्य अपराधियों से बचाए. लेकिन सच्चाई ये है कि कुछ सरकारें ऐसी हैं, जो अपने राजनीतिक फायदे के लिए अपराधियों को संरक्षण तो देती ही हैं, अपराधियों को बचाने के लिए किसी भी हद तक चली जाती हैं.


1994 में हुए IAS ऑफिसर की हत्या के दोषी आनंद मोहन को जेल से छुड़ाने के लिए सरकार ने जेल मैनुअल में ही बदलाव कर दिया. बिहार सरकार, आनंद मोहन जैसे बाहुबली नेता और बिहार के बड़े माफिया को जेल से छुड़ाकर, उसके नाम का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश में जुटी है. बिहार सरकार ने एक माफिया को बचाने के लिए, जेल से जुड़े नियमों में ही बदलाव कर दिया. सोचिए नीतीश कुमार ने एक तरह से अपराधी को बचाने के लिए जनता से कितना बड़ा मज़ाक किया है.


बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन की आजीवन कारावास की सज़ा 27 अप्रैल को समय से पहले ही खत्म हो जाएगी. आनंद मोहन को ड्यूटी पर तैनात एक IAS की लिचिंग और हत्या का दोषी मानते हुए, आजीवन कारावास की सज़ा दी गई थी.  लेकिन अक्सर पैरोल पर बाहर दिखते रहे, आनंद मोहन को अब आजीवन पैरोल मिल जाएगी यानी जेल से आजादी.


बिहार में बाहुबली हो तो आनंद मोहन जैसा. ये हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इसके आगे नीतीश कुमार सरकार भी झुकी हुई है. बिहार की हालत देखिए कि एक IAS की हत्या के मामले में उम्रकैद की सज़ा काट रहा अपराधी. अभी तक पैरोल पर बाहर है, कल वो सहरसा जेल पहुंचेगा, फिर अगले दिन मददगार सरकार के रहम पर हमेशा के लिए आजाद हो जाएगा. 


लोग ठगा हुआ करेंगे महसूस


शक्ति का प्रदर्शन हो तो आनंद मोहन जैसा. सामान्य इंसान नहीं, बल्कि एक IAS अधिकारी की हत्या के मामले में उम्रकैद होने बावजूद, वो अब खुला घूमेगा. मतलब बिहार में किसी अपराधी के लिए कितना आसान है, हत्या करना या करवाना, फिर उम्रकैद की सज़ा को कुछ सालों में खत्म करवाके, वापस समाज में लौट आना. जिन लोगों ने नीतीश कुमार उर्फ सुशासन बाबू को अच्छे शासन के नाम पर वोट किया है. वो खुद को आज ठगा हुआ महसूस कर रहे होंगे. नीतीश कुमार के दिल पर आनंद जैसे अपराधी का कितना गहरा असर पड़ा है, इसका उदाहरण ये अधिसूचना पत्र है.


बिहार सरकार का ये अधिसूचना पत्र, किसी भी प्रदेश की जनता के लिए एक उदाहरण है. ये इस बात का उदाहरण है, कि अगर किसी प्रदेश की सरकार चाह ले कि दुर्दान्त अपराधी को जेल से छुड़ाना है, तो वो किसी भी हद तक जाकर, उसे छुड़ा सकती है. ये पत्र इस बात का सबूत है कि जेल के नियमों को प्रदेश सरकार अपने स्तर पर बदल भी सकती है और आनंद मोहन जैसे अपराधी को छुड़वा भी सकती है.


वैसे तो बिहार सरकार का दावा है कि कुल 27 कैदियों को प्रदेश में अच्छे व्यवहार की वजह से छोड़ा गया है. इस लिस्ट में 11वें नंबर पर आनंद मोहन का नाम भी है. अगर बिहार सरकार में शामिल किसी मंत्री या नेता से पूछें, तो वो पूरे आत्मविश्वास से कहेगा, कि ये कदम नियमों के हिसाब से उठाया गया है. बिहार के कानून मंत्री डॉ. शमीम अहमद से भी हमने इसी मुद्दे पर सवाल किया, तो उन्होंने भी इसी तरह का मिलता जुलता बयान दिया है.


क्या आपको लगता है कि कैदियों को अच्छे व्यवहार की वजह से आज़ाद करना था, इसलिए आनंद मोहन बाहर आ गए? बिहार की सत्ताधारी पार्टियों को भले ही ऐसा लगता हो, लेकिन लगता यही है कि आनंद मोहन को छुड़वाने के लिए, नीतीश कुमार सरकार की पूरी टीम लगी हुई थी. ये हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि बिहार जेल मैनुअल का नियम 481 बताया गया है, कि किन आपराधिक श्रेणियों में बंद कैदियों को, उनकी सज़ा पूरी होने से पहले छोड़ा जा सकता है.


इस नियम का सेक्शन 'ए', कैदियों की उन श्रेणियों की भी बात करता है, जिन्हें कम से कम 20 साल की सज़ा से पहले नहीं छोड़ना चाहिए. इन श्रेणियों में एक अधिक हत्याएं करने वाले कैदी, डकैती, दहेज के लिए हत्या, नाबालिग की हत्या, रेप और हत्या जैसे अपराधों के अलावा 'सरकारी कर्मचारी की ड्यूटी के दौरान हत्या किए जाने' में शामिल कैदी भी शामिल होते हैं. मतलब ये है कि अगर कोई कैदी इन अपराधों में सज़ा काट रहा है, तो उसे सज़ा पूरी करने से पहले नहीं छोड़ा जाता है.


लेकिन 10 अप्रैल 2023 को बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने बिहार जेल मैनुअल में एक बड़ा बदलाव कर दिया. बिहार सरकार ने नियम 481 के सेक्शन 'ए' में शामिल अपराध की एक श्रेणी को हटा दिया. ये श्रेणी थी 'सरकारी कर्मचारी की ड्यूटी के दौरान हत्या' किया जाना. लगातार ये आरोप लग रहे हैं कि जेल मैनुअल के नियमों में हुए बदलाव आनंद मोहन के लिए ही किए गए थे. इसे समझाने से पहले, हम आपको आनंद मोहन के लेकर बिहार सरकार की मंशा और उसे छुड़वाने की जल्दबाजी का एक उदाहरण देना चाहते हैं.


23 जनवरी 2023 को पटना में हुए राजूपत सम्मेलन में नीतीश कुमार ने आनंद मोहन को छोड़ने को लेकर, सांकेतिक भाषा में बहुत कुछ कहा था. एक तरह से उन्होंने माना था कि वो आनंद मोहन को छुड़वाने के प्रयास में जुटे हैं. इसके बाद 10 अप्रैल 2023 को बिहार जेल मैनुअल में बदलाव कर दिया गया. अपराध की एक खास श्रेणी को हटा दिया गया.


फिर इसके तुरंत बाद 24 अप्रैल को 27 कैदियों को छोड़ा गया, जिसमें बाहुबली आनंद मोहन भी शामिल थे. जेल से कैदियों को छोड़ने और जेल मैनुअल में बदलाव करने के बीच ज्यादा समय नहीं लगाया गया. जेल मैनुअल में जो बदलाव हुआ, उसे देखकर ऐसा लगता है कि ये बदलाव आनंद मोहन की सज़ा को ध्यान में रखकर ही किया गया था. 


बिहार जेल मैनुअल के नियम 481 में जिस क्लॉज को हटाया गया, वो क्लॉज 'सरकारी अधिकारी की ड्यूटी के दौरान हत्या' किए जाने का था. इस क्लॉज के हटने से एक कैदी को फायदा हो सकता था, वो थे खुद आनंद मोहन, क्योंकि आनंद मोहन 'ड्यूटी के दौरान सरकारी कर्मचारी की हत्या' के मामले में सज़ा काट रहे थे. तो एक तरह से बिहार जेल मैनुअल में हुआ बदलाव, सीधे तौर पर आनंद मोहन को फायदा पहुंचा रहा है. लेकिन यहां हम आपको एक बात और बताना चाहते हैं. बिहार सरकार आनंद मोहन को जल्दी छुड़वाना चाहती थी.


बिहार जेल मैनुअल के नियम 481 के सेक्शन 'ए' के मुताबिक खास अपराध वाली श्रेणियों के कैदियों को 20 साल की सज़ा पूरी होने से पहले छोड़ने पर विचार नहीं किया जा सकता है. आनंद मोहन ने केवल 15 साल की सज़ा पूरी की थी तो अगर ये सेक्शन नहीं हटाया जाता, तो सामान्य स्थिति में आनंद मोहन को करीब 5 साल और जेल में रहना होता, तब जाकर जेल से छोड़े जाने की प्रक्रिया शुरू हो पाती.


जेल मैनुअल में बदलाव करके नीतीश कुमार ने विशेष तौर पर आनंद मोहन के बाहर आने के सारे दरवाजे खोल दिए. अगर ये बदलाव नहीं होता तो सामान्य स्थिति में आनंद मोहन को 20 साल की सज़ा पूरी होने के बाद, छोड़ने पर विचार किया जा सकता था लेकिन नीतीश कुमार, आनंद मोहन को जल्दी बाहर लाना चाहते होंगे, शायद इसीलिए जेल मैनुअल में ही बदलाव कर दिया गया. आनंद मोहन जैसे अपराधी पर बिहार की नीतीश कुमार सरकार की ऐसी दरियादिली देखकर, IAS जी कृष्णैया का परिवार बहुत दुखी है. उनके मुताबिक एक सरकारी अधिकारी, जिसने बिहार की सेवा की हो, उसकी हत्या करने वाले अपराधी को, सज़ा से मुक्त करने का प्रयास, गलत है.


बिहार में पिछले कुछ समय से जातिगत जनगणना का मामला गर्म है. वहां जातिगत जनगणना का दूसरा चरण चल रहा है. नीतीश कुमार और तेजस्वी दोनों नेता इस जातिगत जनगणना का समर्थन कर रहे हैं. दोनों ही नेता, खुद को पिछड़ी जातियों का मसीहा बताते हैं. लेकिन इन सबके बावजूद, नीतीश और तेजस्वी की बिहार सरकार ने एक राजपूत माफिया आनंद मोहन को जेल से छुड़ाने के लिए जेल मैनुअल से जुड़े नियमों में ही बदलाव कर दिया.


आनंद मोहन पर 5 सितंबर 1994 को जी कृष्णैया नाम के एक IAS ऑधिकारी की लिंचिंग और हत्या का आरोप था.  इस मामले में कोर्ट ने वर्ष 2007 में आनंद मोहन को फांसी की सज़ा सुनाई थी, लेकिन बाद में इसे आजीवन कारावास में बदल दिया था. तकनीकी रूप से आनंद मोहन को पूरी जिंदगी जेल में ही बितानी थी लेकिन फिलहाल राजपूत नेता और अपराधी आनंद मोहन नीतीश की राजनीतिक जरूरत बन गए हैं. जबकि आनंद मोहन जिस IAS अधिकारी की हत्या का दोषी है, वो IAS अधिकारी दलित थे. विडंबना देखिए कि दलितों और पिछड़ी जातियों के उत्थान की बात करने वाले नीतीश कुमार और तेजस्वी, एक दलित IAS अधिकारी के हत्यारे को ही जेल से छुड़वा दिया.


अब सवाल है कि ऐसा क्यों हुआ?


आपको जानकर हैरानी होगी कि इसी आनंद मोहन पर नीतीश कुमार पहले इतने मेहरबान नहीं थे. वर्ष 2021 के मार्च महीने में नीतीश कुमार सरकार ने बाहुबली नेता आनंद मोहन की सज़ा को कम करने की अपील खारिज कर दी थी. अब सवाल ये है कि पिछले 2 साल में ऐसा क्या बदल गया कि, जिस आनंद मोहन को नीतीश कुमार, जेल से नहीं निकलने देना चाहते थे, उसी आनंद मोहन को बाहर निकालने के लिए, उन्होंने जेल मैनुअल में ही बदलाव कर दिया.


यही नहीं दावा ये है कि आनंद मोहन जैसे अपराधी को इसलिए छोड़ा गया, क्योंकि जेल में आनंद मोहन का व्यवहार अच्छा था. तो क्या नीतीश कुमार इस बात से बहुत खुश हो गए, कि आनंद मोहन का जेल में व्यवहार बहुत अच्छा था? क्या आपको भी ऐसा लगता है? हमें ऐसा नहीं लगता है. दरअसल पिछले 2 वर्षों में आनंद मोहन को लेकर नीतीश कुमार के मन में जो बदलाव आया है, उसकी कई वजह हैं.


अगस्त 2022 में नीतीश कुमार ने बीजेपी से संबंध तोड़ लिए थे और इसके बाद उन्होंने RJD के साथ महागठबंधन बना लिया था. जिस दौर में बीजेपी, नीतीश कुमार के साथ थी, उस दौर में नीतीश को सवर्ण जाति के वोट आसानी से मिल जाते थे. लेकिन बीजेपी से अलग होने के बाद, नीतीश कुमार को इन्हीं सवर्ण जाति के वोट ना मिलने का डर है. बिहार में सवर्ण जाति के करीब 15 प्रतिशत वोट हैं. इन 15 प्रतिशत सवर्ण वोटों में से 4 से 5 प्रतिशत वोट,अकेले राजपूत समुदाय के ही हैं.


आनंद मोहन को जेल से छुड़वाकर,नीतीश कुमार राजपूत वोट हासिल करने की रणनीतिक चाल चल रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि ऐसे करके वो बिहार के राजपूतों को अपने पक्ष में कर लेंगे. इसी वर्ष जनवरी में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने पटना में राजपूत सम्मेलन आयोजित करवाया था.इसमें उन्होंने आनंद मोहन को जल्दी छुड़वाने की बातें कही थीं.


आनंद मोहन को नियम बदलकर जेल से छुड़ाने का दूसरा बड़ा कारण ये है कि नीतीश कुमार सरकार अब बीजेपी नहीं आरजेडी के समर्थन पर खड़ी है. आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद और उनके बेटे चेतन आनंद, आरजेडी के नेता हैं. चेतन आनंद ने वर्ष 2020 का विधानसभा चुनाव RJD की टिकट पर शिवहर से जीता था. फिलहाल चेतन आनंद, RJD के मौजूदा विधायक हैं तो इस तरह से आप नीतीश कुमार की राजनीतिक मजबूरी भी समझ सकते हैं.


आनंद मोहन भले ही जेल में था, लेकिन अपने वोटर पर उसकी पकड़ मजबूत है. चेतन आनंद की जीत इसका उदाहरण है. नीतीश कुमार इस बात को जानते हैं कि राजपूत वोट के लिए आनंद मोहन का साथ आना, जरूरी है. राजूपत सम्मेलन भी इसलिए करवाया गया था क्योंकि जेडीयू को पता है कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव में अगड़ी जातियों के वोट हासिल करना, उनके लिए मुश्किल होगा. बिहार में हो रही जातिगत जनगणना भी नीतीश की जातिगत राजनीति का ही एक नया हथियार है. इसके जरिये वो अपना वोट बैंक मजबूत करना चाहते हैं. आनंद मोहन फिलहाल पैरोल पर बाहर हैं. पिछले 6 महीने में ये उनकी तीसरी पैरोल है. दरअसल वो अपने बेटे की शादी की वजह से पैरोल पर बाहर आए.


आनंद मोहन का जेल से बाहर रहना राजनीतिक रूप से भले ही नीतीश कुमार या तेजस्वी के लिए फायदे का सौदा हो, लेकिन एक सभ्य और अपराधमुक्त समाज के लिए ये खतरनाक है. आनंद मोहन जैसे अपराधी का इस तरह से जेल से बाहर आ जाना, जनता के लिए ठीक नहीं है.  नीतीश कुमार की छवि सुशासन बाबू वाली है. वो खुद को, बिहार में अपराध खत्म करने का श्रेय देते आए हैं. लेकिन आज वो अपराधी की मदद करते नजर आए हैं. इससे नीतीश की सुशासन बाबू वाली छवि को धक्का लगेगा, और जनता के बीच, उनकी छवि 'वोटबैंक के लिए कुछ भी करेगा' वाले नेता के तौर होने लगेगी.