Ghosi Bypoll News:  5 सितंबर को घोसी विधानसभा उपचुनाव होना है. वैसे तो महज एक सीट के लिए उपचुनाव होने जा रहा है. यह उपचुनाव सभी दलों के लिए महत्वपूर्ण है. बीजेपी की तरफ से दारा सिंह चौहान के सामने समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह हैं. इस उपचुनाव में बाहरी बनाम स्थानीय का मुद्दा भी जोरों पर है. दारा सिंह चौहान का संबंध पड़ोसी जिले आजमगढ़ से है लेकिन उनकी राजनीति मऊ जिले से होती रही है. 2022 के विधानसभा चुनाव में वो घोसी से ही समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक बने हालांकि 2017 में वो पड़ोस की मधुबन सीट से बीजेपी के टिकट पर विधायक बन योगी कैबिनेट में जगह बनाने में कामयाब रहे थे.अगर घोसी सीट की बात करें तो यहां पर किसी दल से अधिक चेहरे की जीत प्रभावी रही है.


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दारा सिंह चौहान खुद उदाहरण


फागू चौहान और दारा सिंह चौहान उसके उदाहरण है. इस चुनाव को अखिलेश यादव के पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समीकरण के लिए लिटमस टेस्ट माना जा रहा है तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव के सहयोगी रहे ओम प्रकाश राजभर के लिए भी अहम है. राजभर जब 2017 में योगी सरकार के हिस्सा रहे तो वो आवाज उठाया करते थे कि पिछड़ों के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही और उसी मुद्दे को आधार बना कैबिनेट से अलग हो गए. 2022 विधानसभा उपचुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी के साथ जा मिले लेकिन सियासी नतीजे जब अखिलेश यादव के पक्ष में नहीं गए तो ओम प्रकाश राजभर की राजनीति भी करवट लेने लगी.


पालाबदल का इतिहास


ओम प्रकाश राजभर 2022 से लेकर 2023 के जून महीने तक सियासी नफा और नुकसान का आकलन करते रहे और उन्हें समझ में आने लगा कि उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता एनडीए में सुरक्षित है और एक बार फिर पाला बदल एनडीए का हिस्सा बन गए. अब सवाल यह है कि घोसी उपचुनाव उनके लिए अहम क्यों है. अगर घोसी में मतदाताओं की गणित को देखें तो करीब 40 हजार राजभर मत हैं जिन पर वो दावा करते हैं. क्या वो अपने मतों को ट्रांसफर करा पाने में कामयाब हो सकेंगे या अखिलेश यादव का पीडीए जमीन पर भी नजर आएगा. 


क्या कहते हैं जानकार


जानकार कहते हैं कि मुस्लिम यादव समीकरण ही अखिलेश यादव की राजनीति का आधार है. घोसी में यादव और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 1 लाख के करीब है और दलित मतदाता 60 हजार के करीब है. इसके अलावा अन्य पिछड़ी जातियां भी हैं. अगर राजभर समाज के साथ साथ सुभासपा के अध्यक्ष पिछड़े समाज में आने वाले दूसरी जातियों को बीजेपी के पाले में लाने में कामयाब रहे तो बड़ी बात होगी.लेकिन दारा सिंह चौहान की राजनीति खुद गैर यादव पिछड़ी जाति की राजनीति रही है. इस उपचुनाव की खास बात यह होगी कि दारा सिंह चौहान और सुधाकर सिंह के बीच हार जीत का अंतर कितना ज्यादा या कम होता है, अगर दोनों के बीच हार और जीत का अंतर ज्यादा होता है तो निश्चित तौर पर यह माना जाएगा कि ओमप्रकाश राजभर अपने समाज के मतों को ट्रांसफर कराने में कामयाब रहे और यदि ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर उनकी धाक बढ़ेगी.