13 साल की उम्र में 80 किलो के थे गोल्डन बॉय Neeraj Chopra, ऐसी है एथलीट बनने की कहानी
गोल्डन बॉय (Golden Boy) नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) ने टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) में गोल्ड मैडल जीतकर इतिहास रच दिया है. इस दिन की सफलता के लिए उन्होंने कई साल तक संघर्ष किया, कई समझौते किए.
नई दिल्ली: आज दुनिया भर में ओलंपिक गोल्ड मैडल (Olympic Gold Medal) जीतने वाले नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) के नाम की चर्चा हो रही है. उन्हें ढेर सारी तारीफें, तालियां और दुआएं मिल रही हैं. मगर नीरज चोपड़ा की व्यक्तिगत जिंदगी के बारे में बहुत कुछ ऐसा है जो लोग नहीं जानते हैं. नीरज चोपड़ा ने यूं ही यह इतिहास नहीं रच दिया है. उनकी इस कामयाबी के पीछे जिद, धैर्य और आत्मविश्वास की एक लंबी कहानी (Story) है. इस कहानी की शुरुआत नीरज के खुद के साथ किए गए समझौतों से होती है.
बचपन में 80 किलो के थे नीरज
नीरज बचपन में खाने के बहुत शौकीन थे. महज 13 साल की उम्र में ही उनका वजन 80 किलो तक पहुंच गया था. इस कारण लोग उनका मजाक उड़ाते थे और कभी-कभी अपमानित भी करते थे. तब नीरज के चाचा ने उन्हें दौड़ने के लिए ले जाना शुरु किया. इसी दौरान नीरज को कुछ ऐसे साथी मिले जो जेवेलीन थ्रो किया करते थे. नीरज ने भी उसमें अपना हाथ आजमाया. पहली बार में ही नीरज का प्रदर्शन अच्छा रहा और फिर जेवेलीन के लिये उनका पैशन बढ़ता चला गया.
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साल में केवल एक बार परिवार से मिलते थे
जेवेलीन की ट्रेनिंग लेने के लिए नीरज 10 साल घर से दूर रहे. इस दौरान वे साल में केवल एक बार अपने परिवार से मिलने आते थे. नीरज अपनी प्रैक्टिस को लेकर इतने गम्भीर थे कि वे किसी भी पारिवारिक कार्यक्रम, शादी समारोह या पार्टी में शामिल नहीं होते थे. नीरज की बहन संगीता कहती हैं कि भाई को मीठा खाना बहुत पसंद था लेकिन जेवेलीन के लिये उन्होंने मीठा खाना भी छोड़ दिया.
अच्छी जेवेलीन खरीदने के नहीं थे पैसे
शुरुआती दौर में नीरज को काफी मुश्किलें आईं. आर्थिक तंगी के कारण नीरज को अच्छी क्वालिटी की जेवेलीन दिलाने के पैसे नहीं होते थे लेकिन नीरज बिना किसी निराशा के सस्ती जेवेलीन से ही अपनी प्रैक्टिस जारी रखते थे. ओलंपिक में गोल्ड मैडल जीतने के बाद अब उनके घर में दीवाली सा माहौल है. परिवार-दोस्त सब लोग उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. नीरज के दोस्त बताते हैं कि अक्सर नीरज सुबह-सुबह उठकर प्रैक्टिस पर चलने के लिये जगाया करते थे लेकिन दोस्तों के मना करने पर वह अकेले ही प्रैक्टिस के लिये चले जाते थे.
वहीं नीरज की इस कामयाबी के लंबे सफर को याद करते हुए उनकी मां बार-बार भावुक हो जाती हैं. वह कहती हैं बेटे का घर से दूर रहना खलता था मगर वो सारे समझौते आज सफल साबित हुए.