नई दिल्ली: भारत सरकार के एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) ने रेड मीट मैन्युअल से हलाल (Halal) शब्द को हटा दिया है. अब भारत से मीट आयात करने वाले देशों के हिसाब से जानवर को हलाल (Halal) या झटका प्रक्रिया से स्लॉटर किया जाएगा.


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बता दें कि एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) ने सोमवार को अपने फूड सेफ्टी मैनेजमेंट सिस्टम (Food Safety and Management Systems) के क्वालिटी मैनेजमेंट और स्टैंडर्ड्स के डॉक्यूमेंट में बदलाव किया.


इससे पहले एपीईडीए के डाक्यूमेंट में लिखा था कि जानवरों को स्लॉटर करते समय हलाल (Halal) प्रक्रिया (Halal Certification) का पालन करना होगा. लेकिन अब इसमें हलाल (Halal) की जगह लिखा है कि मीट (Meat) को आयात करने वाले देश के हिसाब से स्लॉटर किया जाए.


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हलाल की जगह स्लॉटर शब्द का इस्तेमाल


एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) के डाक्यूमेंट के पेज संख्या 99 पर हलाल (Halal) शब्द की जगह स्लॉटर (Slaughter) कर दिया गया है.


हलाल सर्टिफिकेशन पर बवाल


बता दें कि इस्लाम के अनुसार, जानवर को हलाल प्रक्रिया से स्लॉटर करना चाहिए. लेकिन इस बीच सिख धर्म के लोगों ने आवाज उठाई कि सिख धर्म के मुताबिक हलाल मीट नहीं खाना चाहिए क्योंकि हलाल प्रक्रिया से जानवर को स्लॉटर करने से वो ज्यादा देर तक तड़पता है.


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गौरतलब है कि हलाल प्रक्रिया से जानवर को स्लॉटर करने के कई वैज्ञानिक कारण भी हैं, जिसे लेकर सोशल मीडिया पर बहुत सारे लोगों ने आवाज उठाई. लोगों ने कहा कि हलाल मीट जबरदस्ती हमको खिलाया जा रहा है क्योंकि दिल्ली समेत देश के कई शहरों में अधिकतर हलाल प्रक्रिया से जानवरों को स्लॉटर करने की दुकानें हैं. झटका प्रक्रिया से जानवरों को स्लॉटर करने की दुकानें कम ही रह गई हैं.


हलाल प्रक्रिया का आर्थिक पक्ष


वहीं हलाल प्रक्रिया से जानवरों को स्लॉटर करने में एक और बात है, जिसे लेकर विरोध तेज हो गया. दरअसल हलाल प्रक्रिया से जानवरों को स्लॉटर करने के बिजनेस में कोई भी गैर-मुस्लिम शामिल नहीं हो सकता है. लोगों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई कि हलाल प्रक्रिया गैर-मुस्लिमों को रोजगार नहीं देती है. जबकि संविधान में किसी भी तरीके के भेदभाव की अनुमति नहीं है.


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