DNA with Sudhir Chaudhary: सरकार ने किसान आंदोलन से कुछ नहीं सीखा? क्या देश के लोग खुद नहीं चाहते सिस्टम में सुधार
DNA with Sudhir Chaudhary: जब सरकार ने देश की टैक्स प्रणाली में बड़े सुधार करते हुए GST के तहत एक देश, एक टैक्स की व्यवस्था लागू की थी, तब भी हमारे देश का व्यापारी वर्ग सड़कों पर उतर आया था.
DNA with Sudhir Chaudhary: आज हमारे देश के लोग पुरानी व्यवस्था और कानूनों में किसी भी तरह के नए बदलाव और सुधार के लिए तैयार नहीं हैं. आपको याद होगा, जब सरकार ने देश की टैक्स प्रणाली में बड़े सुधार करते हुए GST के तहत एक देश, एक टैक्स की व्यवस्था लागू की थी, तब भी हमारे देश का व्यापारी वर्ग सड़कों पर उतर आया था.
जब सड़कों पर उतरे लोग
इसके बाद जब सरकार नागरिकता संसोशधन कानून लेकर आई है और उसने पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देशों से भारत आए हिन्दुओं को नागरिकता देने का क्रान्तिकारी फैसला लिया तो इस पर भी हमारे देश में साम्प्रदायिक प्रदर्शन हुए और इस कानून के विरोध में तब दिल्ली के शाहीन बाग में 101 दिनों तक सड़कों को बन्धक बनाकर रखा गया था.
पुरानी व्यवस्था में सुधार लाना जरूरी
इसी तरह जब कृषि सुधारों के लिए मोदी सरकार कृषि कानून लेकर आई तो पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने इसका जबरदस्त विरोध किया और इस आन्दोलन की वजह से कृषि क्षेत्र में सुधार की जरूरतों को लागू नहीं किया जा सका और अब जब सरकार सेना में भर्ती के लिए नई योजना लेकर आई है तो इसका भी विरोध हो रहा है. यानी हमारे देश में अब अंदरुनी राजनीति इतना खतरनाक रूप ले चुकी है कि पुरानी व्यवस्था में कोई भी नया बदलाव करना और उसमें सुधार लाना बहुत मुश्किल हो गया है.
ये स्थिति ठीक World Trade Organization यानी WTO के जैसी है. इस संस्था में दुनिया के कुल 153 देश हैं और सभी देशों के पास Veto Power है. जिसकी वजह से ये संस्था पिछले 27 वर्षों में सिर्फ दो ही Multilateral Agreement को मंजूर कर पाई है. क्योंकि इस संस्था में जब भी सुधारों को लेकर कोई प्रस्ताव आता है तो कोई ना कोई देश अपनी Veto Power का इस्तेमाल कर देता है. अब इसी चीज को आप हमारे देश पर लागू करके देखिए. हमारे देश में 140 करोड़ लोग रहते हैं और इन लोगों के पास वोट का अधिकार है और यही वोट उन्हें Veto Power देता है. जब सरकार किसी क्षेत्र में सुधार के लिए कोई नया कानून लाती है तो ये लोग उस सुधार के खिलाफ अपनी Veto Power का इस्तेमाल करते हैं.
सुधार चाहते ही नहीं हैं भारत के लोग
असल में हमारे देश में लोग सुधार की कड़वी गोलियां खाना ही नहीं चाहते. आज अगर हमारे देश के लोगों को एक डॉक्टर और एक हलवाई में से किसी एक का चुनाव करना पड़े तो वो हलवाई का चुनाव करेंगे. क्योंकि हलवाई डॉक्टर की तरह कड़वी गोलियां खाने के लिए नहीं कहेगा, रोज व्यायाम करने की सलाह नहीं देगा और उन्हें अनुशासन में रखेगा. यानी हमारे देश के लोग आज सुधार की कड़वी गोलियां नहीं खाना चाहते. बल्कि वो उसी व्यवस्था में रहना चाहते हैं, जो वर्षों से चली आ रही है.
इसलिए आज हमारे देश के लोगों को और खासतौर पर युवाओं को ये समझना होगा कि फैसले दो तरह के होते हैं, एक फैसले में देश की भलाई होती है और दूसरे फैसले समाज में लोकप्रिय होते हैं और लोकप्रिय फैसले सही हों, ये जरूरी नहीं हैं.
अंग्रेजी की एक कहावत है Good Economics Make Bad Politics. यानी जो फैसले देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे होते हैं, वो अक्सर लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय नहीं होते. जबकि जो फैसले लोकप्रिय होते हैं, वो अक्सर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा पाते हैं. जैसे अभी ये घोषणा कर दी जाए कि देश के हर युवा को पांच हजार रुपये हर महीने मिलेंगे तो ये फैसला लोकप्रिय तो होगा लेकिन देशहित में नहीं होगा. इससे देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी और यही बात आज आपको समझनी है.
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