नई दिल्लीः मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने मंगलवार को कहा कि विश्वविद्यालयों में संकाय आरक्षण व्यवस्था को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज हो जाने के बाद अब सरकार शीर्ष न्यायालय में समीक्षा याचिका यानि रिव्यू पिटिशन दायर करेगी. सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले महीने संकाय आरक्षण की पुरानी व्यवस्था को बहाल करने की मांग को लेकर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) खारिज किये जाने के बाद अध्यापकों और छात्रों के प्रदर्शन के मद्देनजर यह घोषणा की गयी है. पुरानी व्यवस्था में संकाय आरक्षण के लिये कुल पदों की गणना विभाग वार की जगह संस्थान वार की जाती थी, जिसे शीर्ष अदालत ने पिछले महीने खारिज कर दिया था.


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जावडेकर ने कहा, ‘‘हम जल्द ही पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे और मजबूती से अपना पक्ष रखेंगे. हमें भरोसा है कि न्याय होगा और पुरानी व्यवस्था के हिसाब से आरक्षण जारी रहेगा. सरकार अनुसूचित जाति, अनसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण पर आंच नहीं आने देगी.’’ उन्होंने कहा कि पहले आरक्षण के लिए विश्वविद्यालय को एक इकाई माना जाता था, वह सही चीज थी. 


जावडेकर ने कहा कि शुरूआत में इलाहाबाद उच्च न्यायालय और फिर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि विभागवार आरक्षण होगा, जिसका मतलब है कि अजा/अजजा/ओबीसी के लिए आरक्षण में कटौती होगी . उन्होंने कहा, ‘‘मोदी सरकार ने इसके खिलाफ एक एसएलपी दायर की और मजबूत दलीलें भी दीं लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी को स्वीकार नहीं किया.’’ 


मंत्री ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शैक्षाणिक संस्थानों को पत्र भेजकर एसएलपी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक भर्ती रोकने को कहा था और वह फैसला अब तक वापस नहीं लिया गया है .


डीयू तथा जेएनयू के अध्यापक संघों ने सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर करने के सरकार के फैसले को समय की बर्बादी वाला कदम बताया. दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स असोसिएशन (डूटा) के अध्यक्ष राजीव रे ने कहा कि इसकी बजाए सरकार को संसद के बजट सत्र में एक विधेयक लाना चाहिए. जवाहलाल नेहरू यूनिवर्सिटी टीचर्स असोसिएशन (जेएनयूटीए) के सचिव अविनाश कुमार ने कहा कि इस कदम से नियुक्ति में देरी होगी और यह मुद्दे का समाधान नहीं है.


(इनपुट भाषा)