इस बार गुजरात चुनाव में तीन ऐसे कद्दावर चेहरे रहे हैं, जिनकी चर्चा तो होती रही लेकिन इस बार ये चुनावी फलक से दूर ही रहे. हालांकि एक दौर में गुजरात की सियासत की ये धुरी रहे हैं. ये हैं केशुभाई पटेल, शंकर सिंह वाघेला और आनंदीबेन पटेल. पिछले चुनावों तक इन सूरमाओं की सूबे की सियासत में हनक थी. लेकिन इस बार ये चेहरे चुनावी रण से पूरी तरह बाहर रहे.


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केशुभाई पटेल 
गुजरात में बीजेपी के संस्‍थापक सदस्‍यों में से एक. 1975 से 2012 तक लगातार विधानसभा पहुंचते रहे. बीजेपी 1995 में जब बीजेपी पहली बार सूबे की सत्‍ता में आई तो कद्दावर नेता केशुभाई पटेल ही पार्टी की तरफ से मुख्‍यमंत्री बने थे. हालांकि तीन साल के भीतर शंकर सिंह वाघेला के नेतृत्‍व में उनके खिलाफ बगावत हो गई और उनको पद छोड़ना पड़ा. हालांकि 1998 में दूसरी बार सीएम के रूप में लौटे लेकिन 2001 में कच्‍छ में आए भीषण भूकंप के बाद नरेंद्र मोदी के पक्ष में सत्‍ता छोड़नी पड़ी.  


बीते दौर में पाटीदारों के सबसे बड़े नेता माने जाते थे. 2012 के चुनाव से पहले उन्‍होंने बीजेपी छोड़कर पाटीदार नेता के रूप में गुजरात परिवर्तन पार्टी (जीपीपी) का गठन किया. हालांकि मोदी मैजिक के कारण 182 सदस्‍यीय विधानसभा में जीपीपी को महज दो सीटें ही मिलीं. पटेल को उनके गढ़ विसवादर सीट पर घेरने की कोशिश हुई लेकिन इसके बावजूद अपनी सीट जीतने में वह कामयाब रहे. बीजेपी की चुनावी जीत के दो वर्षों के भीतर उनकी पार्टी का बीजेपी में विलय हो गया. इस बार बढ़ती उम्र और खराब स्‍वास्‍थ्‍य का हवाला देते हुए चुनाव मैदान में नहीं उतरे.  


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शंकर सिंह वाघेला
35 साल पहले पहली बार चुनाव जीते. बीजेपी से बगावत कर गुजरात के मुख्‍यमंत्री बने. उसके बाद लगभग दो दशकों तक कांग्रेस के साथ सियासी सफर करने के बार अबकी अगस्‍त में गुजरात में राज्‍यसभा चुनाव से पहले पार्टी छोड़ दी. इनके साथ कई विधायकों ने पार्टी छोड़ दी. इस बगावत के चलते सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल बड़ी मुश्किल से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. चुनाव से पहले वाघेला ने जन विकल्‍प मोर्चा का गठन किया. इस पार्टी ने 100 प्रत्‍याशियों को मैदान में उतारा लेकिन वाघेला खुद मैदान में नहीं उतरे और न ही कोई चुनावी रैली की. उनके साथ कांग्रेस को छोड़कर निकले ज्‍यादातर विधायक बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. 


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आनंदीबेन पटेल
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 22 मई 2014 को गुजरात की 15वीं मुख्‍यमंत्री बनीं. वह गुजरात की पहली महिला मुख्‍यमंत्री बनीं. 2015 में हार्दिक पटेल के नेतृत्‍व में पाटीदार आंदोलन और उसके बाद उना कांड के बाद दलित आंदोलन के चलते इनसे निपटने के तौर-तरीकों पर सवाल उठे. एक अगस्‍त, 2016 को इस्‍तीफा देने की घोषणा करते हुए हवाला दिया कि जल्‍द ही 75 वर्ष की होने वाली हैं, इसलिए पद छोड़ रही हैं. इस बार चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा भी की थी.