जन्मदिन विशेष : फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह के जन्मदिन पर जानिए 10 दिलचस्प बातें
मिल्खा सिंह (Milkha Singh) ने 1968 तक कोई मूवी ही नहीं देखी थी, जबकि वो कई बार ओलम्पिक, एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लेने कई विदेश यात्राएं कर चुके थे. लेकिन ‘भाग मिल्खा भाग’ देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए थे.
नई दिल्ली : भारत (India) का परचम लहराने वाले और 'फ्लाइंग सिख' (Flying Sikh) नाम से मशहूर धावक मिल्खा सिंह (Milkha Singh) का आज 91वां जन्मदिन है. 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स तक मिल्खा सिंह से पहले कोई भी भारतीय एथलीट ऐसा नहीं था, जिसने कॉमनवेल्थ गेम्स में अपने दम पर गोल्ड मेडल जीता हो. ऐसे ही नहीं उन्हें ‘फ्लाइंग सिख’ कहा जाता, उन्होंने 1958 और 1962 के एशियन गेम्स में भी देश के लिए गोल्ड जीता.
'फ्लाइंग सिख' की जिंदगानी
उनकी जिंदगी का सबसे रोमांचक क्षण था 1950 की ओलम्पिक रेस (1950 Olympic Race) का वो फाइनल, जिसमें सेकंड के सौवें हिस्से से वो पदक से चूक गए थे. लेकिन 400 मीटर में 45.73 सेकंड का उनका ये अद्भुत रिकॉर्ड अगले 40 साल तक देश में कोई और नहीं तोड़ पाया था. सबसे दिलचस्प था उनकी जिंदगी का वो मुश्किल दौर जब उन्हें अपने बुलंद हौसले के दम पर किस्मत से भी लड़ना पड़ा.
यही वजह थी कि फरहान अख्तर (Farhan Akhtar) हौसले की उस कहानी को देश के सामने एक मूवी के रूप में लाने को मजबूर हुए और इस तरह देश का बच्चा बच्चा मिल्खा सिंह को जान गया. फिर भी आप तमाम बातें उनके बारे में नहीं जानते होंगे, जानिए ऐसी ही 10 दिलचस्प बातें-
1- मिल्खा सिंह (Milkha Singh) ने 1968 तक कोई मूवी ही नहीं देखी थी, जबकि वो कई बार ओलम्पिक, एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लेने कई विदेश यात्राएं कर चुके थे. लेकिन ‘भाग मिल्खा भाग’ देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए थे.
2- इंडियन आर्मी ने मिल्खा सिंह को 3 बार खारिज किया था, वो चौथी बार में चुने गए थे. उनके एक भाई मलखान लगातार उन्हें आर्मी की भर्ती के लिए कहते रहे. लेकिन इंडियन आर्मी ने ही उनकी किस्मत बदल दी, आर्मी ने ही उन्हें खेलों में भेजा और एक दिन उन्होंने झंडे गाढ़ दिए.
3- आप ये जानकर हैरत में पड़ जाएंगे कि इतने सारे पदक लाने के बावजूद मिल्खा सिंह का नाम कभी अर्जुन अवॉर्ड्स के लिए नहीं भेजा गया. 1961 में शुरू हुए अर्जुन अवॉर्ड के लिए उनके नाम पर विचार ना करना हैरत भरा था, ऐसे में 2001 में जब उनको अर्जुन अवॉर्ड देने का ऐलान हुआ तो उन्होंने ये कहकर मना कर दिया था कि अब 40 साल की देरी हो चुकी है.
4- मिल्खा सिंह ने अपनी ऑटोबायोग्राफी अपनी बेटी सोनिया के साथ मिलकर लिखी थी, 2013 में आई इस ऑटोबायोग्राफी का नाम था- ‘द रेस ऑफ माई लाइफ’. जब डायरेक्टर राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने उनपर मूवी बनाने का ऐलान किया तो उन्होंने उस ऑटोबायोग्राफी को उन्हें बेच दिया और पता है फीस कितनी ली- केवल 1 रुपए.
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5- मिल्खा सिंह के आभामंडल में उनकी पत्नी निर्मल कौर की तो आमजन चर्चा भी नहीं कर पाते. क्या आपको पता है उनकी पत्नी भी राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी हैं और वो भारतीय टीम की कैप्टन रह चुकी हैं? निर्मल बॉलीवुड की खिलाड़ी थीं, जो भारतीय महिला बॉलीवुड टीम की 1962 में कैप्टन भी रही थीं.
6- बहुत लोग उनके खानदान में पत्नी के अलावा एक और इंटरनेशनल स्तर के खिलाड़ी को नहीं जानते, वो हैं उनके बेटे जीव मिल्खा सिंह. गूगल करिए उनका नाम तो आपको पता चलेगा कि जीव मिल्खा सिंह ने नेशनल, इंटरनेशनल लेवल पर गोल्फ के खेल में कितना नाम कमाया है.
7- आर्मी में रहने के दौरान वह और उनके साथ एथलीट उन दिनों प्रेक्टिस के लिए मीटर गेज ट्रेनों के साथ रेस लगाया करते थे. उन्होंने जितने भी मैडल्स या ट्रॉफी जीती थीं, वो सारी की सारी स्पोर्ट्स म्यूजियम पटियाला को दे दीं, ताकि देश की आने वाली पीढ़ियां उनसे प्रेरणा ले सकें.
8- क्या आपको पता है कि उनको ‘फ्लाइंग सिख’ का टाइटिल किसने दिया था? पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने. दरअसल पाकिस्तान में 200 मीटर का इंटरनेशनल एथलेटिक्स कॉम्पटीशन हुआ था, जिसको लेकर पाकिस्तान में केवल 2 नामों की ही चर्चा थी. पाकिस्तानी एथलीट अब्दुल खालिक की और मिल्खा सिंह की. मिल्खा ने ये दौड़ जीती और खालिक तीसरे नंबर पर रहा. तब अयूब ने कहा था कि ये सिख तो दौड़ना नहीं उड़ता है, ये तो ‘फ्लाइंग सिख’ है.
9- हालांकि मिल्खा सिंह पाकिस्तान जाना नहीं चाहते थे, क्योंकि बंटवारे के दंगों में वो बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर आ पाए थे. माता पिता और बहनों को उन्होंने इन दंगों में खो दिया था. सो उन्होंने मना कर दिया था, तब नेहरूजी ने उन्हें समझाया कि खेल से दोस्ती बढ़ती है, उस गुस्से को भूल जाओ. पीएम के समझाने पर वो जाने को तैयार हुए थे.
10- रोम ओलम्पिक जिसमें वो कांस्य पदक से चूक गए थे, उस ओलम्पिक में मिल्खा सिंह को काफी मीडिया अटेंशन केवल इस बात से मिली थी, क्योंकि उन्होंने इससे पहले कभी दाढ़ी और लम्बे वालों वाला आदमी एथलीट के तौर पर नहीं देखा था.