Hassan Nasrallah Dead: भारतीय सैनिक हिलाल भट जैसे बलिदानियों ने वो इंकलाब ला दिया, जिसने कश्मीर को आतंक से दूर कर दिया. लेकिन कश्मीर से सैकड़ों किलोमीटर दूर लखनऊ में एक ऐसी सोच सिर उठा रही है, जो आतंक का समर्थन करती नजर आती है.


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DNA में हमने आपको बताया था किस तरह आतंकी नसरल्लाह की याद में देश के अलग अलग शहरों में प्रदर्शन किए गए थे. आज लखनऊ में फिर मुस्लिम धर्मगुरु जमा हुए और एक आयोजन किया, जिसका मकसद बताया गया ये बताना कि आतंक क्या है और आतंकी कौन हैं. सबसे पहले जानिए इस आयोजन के बाद नतीजा क्या निकला.


जमावड़े में नसरल्लाह को बताया गया शहीद


जमावड़े के बाद सबसे पहली बात जो कही गई उसमें हिज्बुल्लाह के सरगना हसन नसरल्लाह को शहीद बताया गया. इतना ही नहीं हसन को फ्रीडम फाइटर भी बताया गया. फिर कहा गया कि नसरल्लाह तो आतंक के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और आखिर में कहा गया कि आतंक तो मीडिया फैलाता है, जो नसरल्लाह को आतंकी कहता है.


एक आतंकी को हीरो दिखाने के लिए पहले माहौल बनाया जाता है और जब उससे बात नहीं बनती तो मीडिया पर भी आरोप लगा दिए जाते हैं. इसी वजह से उठता है बड़ा सवाल. क्या अब देश में वो सोच पनप रही है, जो हमास और हिज्बुल्लाह जैसे आतंकी संगठनों को अब हीरो की तरह पेश करना चाहते हैं.


लखनऊ में की गई बैठक


लब्बैक या नसरल्लाह. हिज्बुल्लाह कमांडर नसरल्लाह की मौत के बाद ये नारा, देश के कई शहरों में गूंजा और नसरल्लाह को हीरो जैसी छवि देने के लिए लखनऊ में एक बैठक भी की गई, जिसमें आतंक और आतंकी की परिभाषा तय की गई थी.


इस बैठक के मंच पर जो बोर्ड लगा था, उसपर बड़ा बड़ा लिखा था- आइए जानते हैं आतंक क्या है. मंच से मुस्लिम धर्मगुरु और कथित स्कॉलर बोल रहे थे. लाउड स्पीकर से अनाउंसमेंट हो रहे थे और ये सब खत्म हुआ तो सामने आए मौलाना, जिन्होंने बताया कि बैठक का निष्कर्ष क्या है.


मौलाना यासूफ अब्बास का कहना है कि हसन नसरल्लाह शहीद था. हसन नसरल्लाह ने कभी बेगुनाहों का खून नहीं बहाया.जरा मौलाना साहब को नसरल्लाह की हिस्ट्रीशीट भी बताते हैं.


1992 में हिज्बुल्लाह ने अर्जेंटीना में इजरायली दूतावास पर बम धमाका किया था. इस हमले में 29 लोगों की मौत हो गई थी और 255 घायल थे. मरने वालों में इजरायली और अर्जेंटीना के नागरिक थे.


1994 में अर्जेंटीना में ही हिज्बुल्लाह ने एक और बम धमाका किया. निशाना थे यहूदी धर्म के लोग इस हमले में 85 लोगों की जान गई थी.


मासूमों का हत्यारा था नसरल्लाह


साल 2011 में तुर्की में इजरायली राजनयिक की हत्या करने की कोशिश की थी, जिसमें तुर्की के 8 नागरिक घायल हो गए थे. इन सभी हमलों में मारे गए लोग सैनिक नहीं थे. ये आम लोग थे, जो अपना काम कर रहे थे और लखनऊ में बैठे नसरल्लाह समर्थक मौलाना साहब कहते हैं कि नसरल्लाह ने कभी किसी बेगुनाह की जान नहीं ली. आयोजन में मौजूद कुछ स्कॉलर्स को मीडिया से भी दिक्कत है कि मीडिया नसरल्लाह को आतंकी क्यों कहता है तो क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत में भी हिज्बुल्लाह के आतंक को आजादी का संघर्ष बताया और माना जाए. क्या भारत में भी हमास जैसी विचारधारा के समर्थन में मार्च और प्रदर्शन किए जाएं?


प्रदर्शन में बच्चे भी थे शामिल


पूरी दुनिया ने देखा था, गाजा युद्ध के दौरान अमेरिका से लेकर यूरोप के कई देशों में किस तरह हमास के आतंक को आजादी की लड़ाई बताया गया. बेगुनाह इजरायलियों की मौत को सही करार दिया गया, जिसके बाद कई देशों को ऐसे प्रदर्शनों पर बैन लगाना पड़ा. अगर भारत में लब्बैक या नसरल्ला कहा जाएगा...तो इससे आतंक परस्ती का ही जहर फैलेगा.


नसरल्लाह के नाम पर हुए प्रदर्शनों में बच्चे भी शामिल थे. अगर कल बड़े होकर यही बच्चे नसरल्लाह का रास्ता अपना ले या फिर नसरल्लाह जैसी सोच रखने लगें तो क्या नसरल्लाह को शहीद बताने वाले ये किरदार इसकी जिम्मेदारी लेंगे.