शिमला: हिमाचल प्रदेश में मतदान की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. चुनावी सरगर्मियों के चलते इस बार ठंड में भी शिमला में राजनीतिक पारा हाई चल रहा है. सभी दलों ने जनता को लुभाने के लिए एड़ी-चोटी तक के जोर लगाए हुए हैं. यहां सबसे दिलचस्प मुकाबला पहाड़ों की रानी कहे जाने वाली शिमला विधानसभा सीट पर देखने को मिल रहा है. शिमला (शहरी) सीट पर चतुष्कोणीय मुकाबला है और यहां से तीन बार विधायक रहे भाजपा के सुरेश भारद्वाज अपनी सीट को बचाने के लिए कड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं. इस मुकाबले में उनके सामने हैं कांग्रेस के हरभजन सिंह भज्जी, शिमला नगर पालिका के पूर्व महापौर माकपा के संजय चौहान और कांग्रेस के बागी हरीश जनरथ जो निर्दलीय के तौर पर चुनाव मैदान में हैं.


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भाजपा का एक वर्ग भारद्वाज को टिकट देने से खुश नहीं है जबकि कांग्रेस के बड़ी संख्या में नेता और पालिका के पार्षद खुलकर जनरथ के समर्थन में सामने आए हैं. जनरथ मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के करीबी हैं, यह स्थिति कांग्रेस के उम्मीदवार भज्जी के लिए परेशानी भरी है. भाजपा को बीते 31 वर्षों में पहली बार निगम पालिका की कमान मिली है. उसे उम्मीद है कि जीत आसान होगी लेकिन चुनावी मैदान में तीन अन्य उम्मीदवार भी खासे मजबूत हैं. ऐसे में यह लड़ाई आसान नहीं रहने वाली. 2012 के चुनाव में जनरथ शिमला से कांग्रेस उम्मीदवार थे. तब वह 628 मतों के बेहद कम अंतर से हार गए थे.


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कांग्रेस शिमला को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलवाने का श्रेय लेना चाह रही है लेकिन सत्तारूढ़ दल के सामने पीलिया फैलना, जलसंकट, पानी और सीवरेज की समस्या और सड़कों की खराब हालत जैसे मुद्दे मुंहबाए खड़े हैं. जनरथ मुख्यमंत्री के नाम पर वोट मांग रहे हैं जबकि भज्जी संगठन और अपने संपर्कों की ताकत पर भरोसा करके चल रहे हैं.


यहां के लोगों के जेहन में गुड़िया के साथ बलात्कार और हत्या की बर्बर घटना और चार वर्षीय बच्चे की हत्या जैसी घटनाएं अभी भी ताजा हैं. कांग्रेस ने लोकलुभावन घोषणाएं की हैं मसलन कर्मचारियों और कामगारों की वर्ष 2004 से पहले की पेंशन योजना की बहाली की मांग को मानना. उधर, भारद्वाज ने वर्ष 2007 और 2012 में यहां से जीत हासिल की थी और इस बार वह हैटट्रिक की उम्मीद लगाए हैं. सुरेश भारद्वाज 1990 में भी यहां से विधायक रह चुके हैं. 


(इनपुट भाषा से)