Holi and Science: रंगों के त्योहार होली पर हर कोई रंगों के साथ खेलता है. सदियों पुरानी यह परंपरा अनवरत चली आ रही है. लेकिन क्या आप जानत हैं इस परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारण भी छिपा हुआ है. आज हम आपको बताते हैं.


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-पारंपरिक रूप से होली में प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल होता था. प्राकृतिक तरीकों से बने इन रंगों से शरीर साफ होता था.


-प्राकृतिक रंग हमारी त्वचा को बिल्कुल नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. क्योंकि ये रंग पेड़ पौधों से बने होते हैं इसलिए त्वचा की सेहत को सुधारते हैं. हालांकि अब आर्टिफिशियल रंगों और गुलाल का इस्तेमाल होता है. जो त्वचा के लिए अच्छे नहीं है.


-हल्दी से बनाया गया पीला रंग त्वचा से जहरीले पदार्थों को निकाल देता था. बैक्टीरिया और पैथोजेंस से लड़ता था. हल्दी एंटीबायोटिक होता है.


-लाल रंग के लिए गुलाब, मदार के पेड़, सेब के तने की छाल या फिर खुशबूदार लाल चंदन की लकड़ी का इस्तेमाल होता था. अनार और गाजर का भी उपयोग किया जाता था.


-नीले रंग के लिए बरबेरी, ब्लूबेरी, वाइल्ड बेरी जैसे फलों का पेस्ट बनाया जाता था. 


-काले रंग के लिए आंवले को सुखाकर उसका पेस्ट या घोल बनाया जाता था. 


-होली के करीब वायुमंडल में बैक्टीरिया की मात्रा बहुत ज्यादा होती है. होलिका दहन से ये बैक्टीरिया काफी हद तक नियंत्रित होते हैं.


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