नई दिल्ली : भारत ने शनिवार को नेपाल से कहा कि उसके नये संविधान की सफलता जटिल मुद्दों के ‘आमसहमति और बातचीत’ के जरिये एक समयबद्ध तरीके से समाधान पर निर्भर करेगी। दोनों पक्षों ने संबंध सुधारने पर व्यापक बातचीत की जिसमें भारतीय मूल के मधेसी समुदाय द्वारा चार महीने तक चले आंदोलन के चलते कड़वाहट आ गई थी।


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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाली प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली से बैठक के बाद इस बात पर जोर दिया कि भारत नेपाल की शांति, स्थिरता और समग्र विकास का समर्थन करता है। ओली ने कहा कि उनकी यात्रा का मुख्य उद्देश्य संबंधों में आयी ‘गलतफहमियां’ दूर करना था जो कुछ महीनों तक रहीं लेकिन अब उनका ‘कोई अस्तित्व नहीं है।’ दोनों पक्षों ने नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किये जिसमें एक नेपाल में भूकंप के बाद पुनर्निर्माण के लिए भारत की ओर से मिले 25 करोड़ डॉलर के अनुदान के उपयोग और दूसरा भारत की सीमा से लगे नेपाल के तराई क्षेत्र में सड़क आधारभूत ढांचे के सुधार से संबंधित है।


मोदी ने नेपाल के संविधान को अंतिम रूप देने को नेपाल के लिए एक बड़ी उपलब्धि करार देते हुए उम्मीद जतायी कि सभी पार्टियां ‘बाकी बचे’ संवैधानिक मुद्दों के संतोषजनक एवं सफलतापूर्वक समाधान के लिए एकसाथ आएंगी तथा ऐसा करते समय समाज के सभी वर्गों’ के लोगों की आकांक्षाओं का ध्यान रखा जाएगा।


मोदी ने ओली की मौजूदगी में दिये अपने मीडिया बयान में कहा, ‘नेपाल में दशकों के संघर्ष के बाद नये संविधान के प्रारूपण और उसकी घोषणा एक बड़ी उपलब्धि है। मैं इसके निर्माण में नेपाल के राजनीतिक नेतृत्व और समाज के सभी वर्गों’ के योगदान की प्रशंसा करता हूं।’ उन्होंने कहा, ‘यद्यपि उसकी सफलता आमसहमति और बातचीत पर निर्भर करती है। मुझे विश्वास है कि इन सिद्धांतों के आधार पर और राजनीतिक बातचीत एवं सभी वर्गों’ को साथ लेकर आप (ओली) संविधान से संबंधित सभी मुद्दों का संतोषजनक समाधान कर पाएंगे और नेपाल को विकास एवं स्थिरता के मार्ग पर आगे बढ़ाएंगे।’ 


बैठक में मोदी ने जोर देकर कहा कि नेपाल की स्थिरता भारत की सुरक्षा से जुड़ी हुई है। आतंकवाद से मुकाबले पर उन्होंने कहा, ‘हम आतंकवादियों और अपराधियों को हमारी खुली सीमा का इस्तेमाल नहीं करने देंगे। इस संबंध में दोनों देशों की सुरक्षा एजेंसियों सहयोग बढ़ाएंगी।’ यह पूछे जाने पर कि क्या नेपाली प्रधानमंत्री ने भारत की चिंताओं को दूर किया, विदेश सचिव एस जयशंकर ने कहा कि यात्रा का ‘रूख और मकसद’ दूरदर्शी था। 


उन्होंने कहा कि नेपाल के भीतर जिन चिंताओं के निदान के समधान का भरोसा दिया गया है यदि उनका उनका निदान नहीं हो पाता है तो देश स्थिरता से ‘दूर’ जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘यह दोषारोपण के लिये की गयी यात्रा नहीं थी। यह दूरदर्शी यात्रा थी। इस यात्रा की भावना सहयोगात्मक थी।’ उन्होंने यह बात इन सवालों पर कही कि क्या भारत नये संविधान से संबंधित नेपाल की ओर से दिये भरोसे से संतुष्ट है।


उन्होंने कहा कि मोदी ने उम्मीद जतायी कि संविधान से संबंधित सभी लंबित मुद्दों का समाधान समयबद्ध तरीके से होगा।


इस पर कि क्या भारत नेपाल के चीन के नजदीक जाने को लेकर चिंतित है, जयशंकर ने ऐसी आशंकाओं को खारिज किया और कहा कि बातचीत में चीन शब्द का कोई उल्लेख नहीं हुआ। गत वर्ष अक्तूबर में प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार किसी देश की यात्रा कर रहे ओली कल भारत पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि वह गलतफहमियों को दूर करने के लिए आये हैं और उन्होंने ‘वह कर दिया है।’ दोनों देशों के बीच संबंधों में मधेसी समुदाय के आंदोलन के मद्देनजर कड़वाहट आ गई थी जिनका भारतीयों के साथ नजदीकी पारिवारिक एवं सांस्कृतिक संबंध हैं।


आंदोलनकारियों ने व्यापार बिंदुओं को लगभग चार महीने तक बाधित किये रखा जिससे भारत से नेपाल के लिए पेट्रोलियम, दवाओं एवं अन्य सामानों की आपूर्ति प्रभावित हुई। नाकेबंदी इस महीने हटा ली गई।


मधेसी समुदाय नये संविधान के तहत सात प्रांत बनाने का विरोध कर रहा है। इसके साथ ही वे अपने अधिकारों के पर्याप्त संरक्षण की भी मांग कर रहे हैं। मधेसी समुदाय की तीन प्रमुख मांगों में सीमा का सीमांकन, आनुपातिक प्रतिनिधित्व का समावेश और जनसंख्या के आधार पर संसदीय सीटों का आवंटन शामिल है।


जयशंकर ने कहा कि नेपाल में मुद्दों ने भारत को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि दो मुद्दों का समाधान किया जा रहा है जिसमें एक प्रांतीय सीमांकन है। उन्होंने उम्मीद जतायी कि मधेसी समुदाय की नागरिकता से संबंधित चिंताओं का भी समाधान होगा।


विदेश सचिव ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल में संसदीय लोकतंत्र के समेकन के प्रति प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने दो संशोधनों को सकारात्मक बताते हुए उनकी प्रशंसा की जिसका उद्देश्य चिंताओं का समाधान करना है।


जयशंकर ने कहा, ‘उन्होंने उम्मीद जतायी सभी राजनीतिक पार्टियां सहमति एवं वार्ता की भावना में साथ आगे आएंगी और बागी बचे संवैधानिक मुद्दों का समयबद्ध तरीके से समाधान करेंगी।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने हमेशा ही नेपाल की शांति, स्थिरता और समृद्धि चाही है और वह उसका समग्र विकास सुनिश्चित करने के लिए उसे हर संभव मदद देगा।


उन्होंने कहा कि भारत की आर्थिक प्रगति नेपाल की प्रगति के लिए एक कारण बन सकती है और परिवहन गलियारे प्रगति एवं विकास के ‘राजमार्ग’ बन सकते हैं। मोदी ने बातचीत के बाद कहा, ‘यह नेपाल-भारत संबंधों के लिए एक महत्वपूर्ण पल है।’ दोनों देशों ने और दो और पारगमन बिंदु खोलने का निर्णय किया जिसे मोदी ने एक प्रमुख प्रगति करार दिया।


उन्होंने कहा, ‘मैं भारत के प्रति नेपाल के प्रेम और सद्भाव की प्रशंसा करता हूं। इसी के साथ मैं नेपाल के लोगों की आकांक्षाओं का सम्मान करता हूं।’ उन्होंने नेपाल की पनबिजली क्षमताओं की बात करते हुए कहा कि दोनों देश सात हजार मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं और उनके त्वरित क्रियान्वयन से नेपाल का त्वरित विकास होगा।


दोनों प्रधानमंत्रियों ने 400 केवी धालकेबर..मुजफ्फरपुर पारेषण लाइन को हैदराबाद हाउस से ‘टेली.उद्घाटन’ करके समर्पित किया। भारत इस लाइन के जरिये नेपाल को 80 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करेगा और इसे अगले दो वषोर्ं में बढ़ाकर 600 मेगावाट किया जाएगा। ओली ने अपने बयान में अगस्त 2014 में मोदी की नेपाल यात्रा को याद किया। उन्होंने साथ ही यह उल्लेख किया कि उस यात्रा के बारे में लोग किस तरह से अभी भी बात करते हैं। ओली ने मोदी को फिर से नेपाल की यात्रा करने का निमंत्रण दिया।


मोदी ने दोनों देशों के बीच सहयोग के संभावित क्षेत्रों के बारे में बात करते हुए नेपाल में भारत द्वारा आयुर्वेदिक कालेजों की स्थापना करने की पेशकश की। प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री सुशील कोईराला को श्रद्धांजलि अर्पित की जिनका इस महीने निधन हो गया था तथा जिन्होंने भारत-नेपाल संबंधों को मजबूती प्रदान करने के लिए काम किया।


दोनों देशों के बीच हुए समझौतों से सांस्कृतिक सहयोग बढ़ेगा और नेपाल और बांग्लादेश के बीच ककरभिट्टा-बंगलाबंध गलियारे के जरिये तथा विशाखापट्टनम बंदरगाह के जरिये व्यापार सुगम बनेगा। सड़क आधारभूत ढांचे को मजबूत करने के लिए सहमतिपत्र के तहत भारत की सीमा से लगे तराई क्षेत्र में कुल 518 किलोमीटर सड़क का निर्माण होगा।


पारगमन मार्गों पर हुए एक समझौते के अनुसार नेपाल और बांग्लादेश के बीच सामानों के आवागमन में ककरभिट्टा (नेपाल) और बंगलाबंध (बांग्लादेश) गलियारे से सुविधा होगी। यह नेपाल को विशाखापट्टनम बंदरगाह के जरिये पारगमन सुविधा प्रदान करेगा।