नई दिल्ली: भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका यानी पीआईएल दाखिल की गई है। इसमें समझौते की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। यह याचिका एमएल शर्मा ने दायर की है।


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जानकारी के अनुसार, उच्चतम न्यायालय ने भारत-पाकिस्तान सिंधु जल संधि को असंवैधानिक करार देने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर तत्काल सुनवाई से सोमवार को इंकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ ने कहा कि इस मामले में कोई जल्दी नहीं है। यह याचिका तय प्रक्रिया के तहत सुनवाई के लिए आएगी। वकील एमएल शर्मा ने इस मुद्दे पर निजी तौर पर जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने इस मामले पर तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए कहा था कि यह संधि असंवैधानिक है क्योंकि इसपर हस्ताक्षर संवैधानिक योजना के तहत नहीं किए गए। इसलिए इसे ‘शुरुआत से ही अवैध’ घोषित किया जाए। वकील की ओर से आपात सुनवाई पर जोर दिए जाने पर पीठ ने कहा कि राजनीति को एक ओर रखिए। यह मामला तय प्रक्रिया के तहत सुनवाई के लिए आएगा।


 


गौर हो कि भारत में लगातार संधि को रद्द करने की मांगें हो रही हैं ताकि इस हफ्ते की शुरूआत में उरी में हुए आतंकी हमले को देखते हुए पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया जा सके। 1960 के सिंधु जल समझौते के मुताबिक, पाकिस्तान को भारत से बहने वाली छह नदियों का पानी मिलता है। इसी पानी से पाकिस्तान में कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं और सिंचाई की जा रही है।


इस संधि के तहत ब्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों के पानी का दोनों देशों के बीच बंटवारा होता है। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपाति अयूब खान ने सितम्बर, 1960 में इस संधि पर हस्ताक्षर किया था। पाकिस्तान यह शिकायत करता आ रहा है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है और वह कुछ मामलों में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए भी आगे गया है।


सिंधु जल समझौते के तहत छह नदियों- ब्यास, रावी, सतलुज, सिंधु, चेनाब और झेलम का पानी भारत और पाकिस्तान को मिलता है। समझौते के मुताबिक, सतलुज, व्यास और रावी का ज्यादातर पानी भारत के हिस्से में रखा गया जबकि सिंधु, झेलम और चेनाब का अधिकतर पानी पाकिस्तान के हिस्से में गया।


(एजेंसी इनपुट के साथ)