शौर्य: वायुसेना के एकमात्र मार्शल अर्जन सिंह, 1965 के युद्ध में छुड़ाए पाकिस्तान के छक्के
मार्शल अर्जन सिंह ने 1965 की जंग में पाकिस्तानी वायुसेना के हमले का जवाब महज 1 घंटे के अंदर ही दे दिया था. भारत मां के सपूत मार्शल अर्जन सिंह हमेशा देश के युवाओं को प्रेरणा देते रहेंगे.
आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर देश के सबसे लोकप्रिय चैनल Zee News ने एक स्पेशल सीरीज की शुरुआत की है, जिसका नाम 'शौर्य' है. इस सीरीज में आज हम आपको भारतीय वायुसेना के एक ऐसे जांबाज अफसर की शौर्यगाथा सुनाएंगे, जिन्होंने 1965 की जंग में पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए. वे न सिर्फ इंडियन एयरफोर्स के पहले एयर चीफ मार्शल रहे, बल्कि उनके योगदान को देखते हुए एक एयरफोर्स स्टेशन का नाम ही उनके नाम पर कर दिया गया. इस जांबाज अफसर का नाम है अर्जन सिंह. उन्होंने सिर्फ 44 साल की उम्र में भारतीय वायुसेना के प्रमुख का पदभार संभाला था. देश की आजादी से पहले अर्जन सिंह रॉयल इंडियन एयर फोर्स (Royal Indian Air Force) का हिस्सा थे. मार्शल अर्जन सिंह का कौशल, जबरदस्त व्यक्तित्व, रणनीतिक समझ और लीडरशिप क्वालिटी उन्हें औरों से अलग बनाती थी.
जब ऑपरेशन 'ग्रैंड स्लैम' का वायुसेना ने दिया करारा जवाब
सितंबर 1965 की जंग में पाकिस्तान ने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम (Operation Grand Slam) शुरू किया. इस दौरान पाकिस्तान ने अखनूर को निशाना बनाया. तब दुश्मन की नापाक चाल का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अर्जन सिंह को रक्षा मंत्रालय में बुलाया गया. उनसे पूछा गया कि इंडियन एयरफोर्स कितनी जल्दी तैयार हो जाएगी? इस पर अर्जन सिंह ने फौरन कहा, 'घंटे भर में.' और फिर सच में भारतीय वायुसेना ने 1 घंटे में ही पाकिस्तानी हमले का जवाब दे दिया. इस कार्रवाई में भारतीय सेना ने कुछ ही देर में पाकिस्तानी वायुसेना को धूल चटा दी.
15 अगस्त को किया था ये शानदार काम
आपको बता दें कि मार्शल अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल, 1919 को लायलपुर में हुआ था, जो वर्तमान में पाकिस्तान के फैसलाबाद में स्थित है. मार्शल अर्जन सिंह को 19 साल की उम्र में आरएएफ कॉलेज क्रैनवेल में ट्रेनिंग के लिए चुन लिया गया था. फिर दिसंबर, 1939 में पायलट अर्जन सिंह को अफसर के रूप में रॉयल एयरफोर्स में कमीशन मिला. अर्जन सिंह को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा ऑपरेशन में शानदार नेतृत्व और साहस के लिए डिस्टिंग्विश्ड फ्लाइंग क्रॉस (DFC) से सम्मानित किया गया था. जान लें कि जब 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ तो अर्जन सिंह को दिल्ली में लाल किले के ऊपर से 100 से ज्यादा हवाई जहाजों की परेड को लीड करने का अनोखा सम्मान दिया गया.
पद्म विभूषण से किया गया सम्मानित
1965 की जंग में अर्जन सिंह की शानदार लीडरशिप के लिए उनको पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. अर्जन सिंह इंडियन एयरफोर्स के पहले एयर चीफ मार्शल बने. फिर जुलाई 1969 में रिटायर होने के बाद भी वो भारतीय वायुसेना की बेहतरी के लिए लगातार काम करते रहे. अर्जन सिंह ने स्विट्जरलैंड (Switzerland), होली-सी (Holy See) और लीचेनस्टीन (Liechtenstein) में साल 1971 से 1974 तक भारत के एंबेसडर के रूप में काम किया. फिर अर्जन सिंह नैरोबी (Nairobi) और केन्या (Kenya) में 1974 से 1977 तक भारतीय उच्यायुक्त (Indian High Commissioner) रहे. इसके बाद साल 1989 से 1990 तक अर्जन सिंह ने दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) के तौर पर भी काम किया.
पहले 'फाइव-स्टार' अधिकारी बने मार्शल अर्जन सिंह
गौरतलब है कि अर्जन सिंह की सेवाओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने साल 2002 में उन्हें मार्शल ऑफ द एयरफोर्स के सम्मान से नवाजा. इस तरह वे इंडियन एयरफोर्स (Indian Air Force) के पहले 'फाइव-स्टार' अधिकारी बने. इंडियन एयरफोर्स ने उनके सम्मान में साल 2016 में वायु सेना स्टेशन पानागढ़ का नाम बदलकर एयरफोर्स स्टेशन अर्जन सिंह (Air Force Station Arjan Singh) कर दिया. 98 साल की उम्र में 16 सितंबर 2017 को मार्शल अर्जन सिंह का निधन हो गया था. भारत मां के सच्चे सपूत मार्शल अर्जन सिंह का व्यक्तित्व हमेशा युवाओं को प्रेरणा देता रहेगा.
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