नई दिल्ली : उपनिवेशवादी शासन के खिलाफ महात्मा गांधी के सत्याग्रह का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को स्वच्छ भारत के लिए ‘सत्याग्रह आंदोलन’ चलाने की वकालत की और कहा कि केवल बजटीय आवंटन कर देने भर से स्वच्छ भारत को हासिल नहीं किया जा सकता है।


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सड़कों एवं अन्य स्थानों पर कचरे की तस्वीरें जारी करके उनके द्वारा शुरू किये गए स्वच्छ भारत अभियान के विफल होने का दावा करने वालों पर चुटकी लेते हुए मोदी ने कहा कि उन्हें इस बात से संतोष है कि कम से कम साफ सफाई के बारे में लोगों में अब जागरूकता तो पैदा हुई है।


स्वच्छ भारत अभियान के दो वर्ष पूरा होने पर आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘स्वच्छता अभियान के बाद मुझसे सड़कों पर फैले कचरे के बारे में अक्सर सवाल पूछे जाते थे। लेकिन मुझे इससे कोई समस्या नहीं है क्योंकि कम से कम अपने आसपास साफ सफाई के बारे में लोगों की जागरूकता स्वागत योग्य संकेत है।’ स्वच्छता की तुलना देवत्व से करते हुए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि धार्मिक स्थलों पर कचरे को कम्पोस्ट में बदला जाना चाहिए।


मोदी ने कहा कि लोग जहां कचरे के ढेर को नापसंद करते हैं, वहीं उन्होंने साफ साफाई को अपनी आदत नहीं बनाया है।


प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वच्छता का मुद्दा राजनीतिकों के लिए आसान काम नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हर दूसरे साल देश के किसी न किसी हिस्से में चुनाव होते हैं। राजनीतिक नेता और राजनीतिक पार्टी जो अगले चुनाव की तैयारी में लगे होते हैं, उनके लिए स्वच्छता के मुद्दे को लेना काफी साहस की बात होती है क्योंकि कचरे के ढेर का कोई भी चित्र उनके लिए समस्या पैदा कर सकता है।’ 


मोदी ने कहा कि कचरे को पुनर्चक्रण के जरिये धन और रोजगार पैदा करने का माध्यम बनाया जा सकता है। ‘तब स्वच्छता इस तरह से बाईप्रोडक्ट बन जायेगा।’ उन्होंने कहा कि यह विरोधाभास है कि लोगों को कचरे का ढेर पसंद नहीं है लेकिन वे स्वच्छता को अपनी आदत नहीं बना पाये हैं। ऐसी आदत बनाना जरूरी है।


प्रधानमंत्री ने कहा कि एक बार समाज कचरे को धन के रूप में परिवर्तित करना सीख लेगा तब स्वच्छता ‘बाईप्रोडक्ट’ बन जायेगा। उन्होंने कहा कि बच्चे साफ-सफाई के बारे में ज्यादा सजग हो रहे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि स्वच्छ भारत अभियान लोगों के जीवन को छू रहा है। उन्होंने कहा कि शहरों के बीच भी साफ सफाई और अपने शहरों को साफ रखने के लिए प्रतिस्पर्धा हो रही है।


मीडिया की सकारात्मक भूमिका की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जब कभी कोई योजना पेश करें तो मीडिया आमतौर पर पहले पहल उसे संदेह की नजर से देखता है। लेकिन स्वच्छ भारत अभियान का मुझसे भी अधिक प्रचार मीडिया ने किया। इस मामले में संदेश फैलाने के संदर्भ में मीडिया की भूमिका सराहनीय रही है।


प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि स्वच्छता कोई ऐसी चीज नहीं है जो केवल बजटीय आवंटन से हासिल की जा सके। यह ऐसी चीज है जो जन आंदोलन के जरिये हकीकत बन सकती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता जो अपनी पुरानी साड़ी को बदलकर बर्तन खरीद सकती है, वह बच्चों के हाथ और नाक साफ करने के लिए उसका रूमाल बनाती है। उन्होंने हास्य विनोद के अंदाज में कहा, ‘साफ सफाई की आदत उनके मन में बैठ गई है.. अगर ये रूमाल मंत्रियों को दिये गए होते तब न जाने क्या होता।’ 


मोदी ने कहा कि किसी चीज का दोबारा उपयोग और पुनर्चक्रण लम्बे समय से भारतीयों की आदत बन गई है। उन्होंने कहा कि इन्हें प्रौद्योगिकी संचालित बनाये जाने की जरूरत है। उन्होंने स्टार्टअप से स्वच्छता के लिए नये उपकरण विकसित करने का आग्रह किया जो लोगों की जरूरतों के अनुरूप हों ।


मोदी ने कहा कि लोग अपने वाहनों की साफ सफाई पर काफी समय देते हैं लेकिन सार्वजनिक एवं सरकारी सम्पत्ति के साथ अपनी सम्पत्ति की तरह का व्यवहार नहीं करते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि यहां उपस्थित लोगों में अधिकांश ने बसों में सफर करते हुए सीट में छेद बनायी होगी। उन्होंने कहा कि मेरा सिर्फ इतना कहना है कि हमें सरकारी और सार्वजनिक सम्पत्ति को अपनी सम्पत्ति के रूप में व्यवहार करना चाहिए।


मोदी ने कहा कि उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्री एम वेंकैया नायडू को दूरदर्शन पर ‘स्वच्छता से संबंधित खबरें प्रसारित करने का सुझाव दिया है क्योंकि स्वच्छता का संदेश फैलाना जरूरी है। एक पुरानी घटना को याद करते हुए मोदी ने कहा कि उन्होंने दो दशक पहले गुजरात के एक गांव में बाढ़ के बाद पुनर्निर्माण कार्य में सहयोग किया था। लेकिन जब कई वर्ष बाद में उन्हें उस गांव में जाने का मौका मिला जब उन्होंने पाया कि शौचालय में बकरियां बांधी गई हैं।


मोदी ने कहा कि साफ सफाई की आदत बालपन से ही विकसित की जानी चाहिए ताकि खुले में शौच की बुराई को समाप्त किया जा सके।