GV Mavalankar controversy: इस समय देश की संसद में विपक्षी पार्टियों ने भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है. विपक्ष की तरफ से धनखड़ के खिलाफ महाभियोग लाने का नोटिस दिया गया है. विपक्ष ने उन पर पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाया गया. भारत के संसदीय इतिहास में राज्यसभा सभापति के खिलाफ ऐसा पहली बार हुआ है. लेकिन आजादी के बाद लोकसभा में ऐसे तीन अविश्वास प्रस्ताव देखे गए हैं. पहली बार 18 दिसंबर, 1954 को पहले स्पीकर के खिलाफ ऐसा हुआ था. आइए ये किस्सा फिर से रिमाइंड करते हैं. 


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असल में जी वी मावलंकर भारत के पहले लोकसभा स्पीकर थे. बिहार से सोशलिस्ट पार्टी के सांसद विग्नेश्वर मिसिर द्वारा भारत के पहले अध्यक्ष जी वी मावलंकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था. दो घंटे की तीखी बहस के बाद हालांकि सदन ने प्रस्ताव खारिज कर दिया था. लेकिन उस दौरान पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने क्या कहा था, वो भी चर्चा का विषय रहा था.


मावलंकर के खिलाफ 18 दिसंबर 1954 को विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया. इस प्रस्ताव को विग्नेश्वर मिसिर ने पेश किया. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस प्रस्ताव को "अक्षम्यता, हल्केपन और दुर्भावना" का प्रदर्शन बताते हुए इसकी कड़ी आलोचना की थी. 


मावलंकर पर क्या आरोप लगा था ?


विपक्ष ने मावलंकर पर आरोप लगाया कि वे पक्षपाती हैं, सदन में विपक्षी सांसदों के अधिकारों का हनन करते हैं और सरकार का समर्थन करते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक उस समय सीपीआई सांसद ए.के. गोपालन ने कहा कि अध्यक्ष ने विपक्षी सांसदों के स्थगन प्रस्तावों को खारिज कर दिया, और एक बार खुद को खुले तौर पर पार्टी का आदमी कहा. शोलापुर के सांसद एस.एस. मोरे ने आरोप लगाया कि 89 स्थगन प्रस्तावों में से केवल एक को मंजूरी दी गई, जो अध्यक्ष की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है.


शुरू हुई सदन में तीखी बहस:


मजे की बात है कि प्रधानमंत्री नेहरू ने बहस के दौरान विपक्ष को अधिक समय देने का आग्रह किया ताकि वे अपनी बात रख सकें. उन्होंने कहा कि अध्यक्ष की निष्ठा पर सवाल उठाने से सदन की गरिमा प्रभावित होती है. नेहरू ने कहा कि जब हम अध्यक्ष के इरादों पर सवाल उठाते हैं, तो हम देशवासियों और दुनिया के सामने खुद को छोटा साबित करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि स्थगन प्रस्तावों का दुरुपयोग करना इसे एक अवरोधक बना सकता है.


फिर नेहरू की तीखी प्रतिक्रिया:


प्रधानमंत्री नेहरू ने विपक्ष के प्रस्ताव को दुर्भावनापूर्ण बताते हुए कहा कि इसे लापरवाही से हस्ताक्षरित किया गया था. उन्होंने कहा कि यह एक खतरनाक चीज है, जिसे उन्होंने हस्ताक्षर किया है. मुझे संदेह है कि हस्ताक्षर करने वालों ने इसे पढ़ा भी होगा. नेहरू ने कम्युनिस्ट सांसदों को भी निशाने पर लिया और कहा कि वे लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखते.


आखिरकार प्रस्ताव खारिज हो गया था
दो घंटे की बहस के बाद, सदन में प्रस्ताव पर मतदान हुआ और इसे खारिज कर दिया गया. प्रधानमंत्री नेहरू ने कहा कि इस प्रस्ताव का समर्थन करना सदन के सदस्यों की बुद्धिमत्ता पर सवाल उठाने जैसा होगा.