Jhansi Hospital Case: उत्तर प्रदेश के झांसी मेडिकल कॉलेज में हुए हादसे में 10 नवजात बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई. यह हादसा नहीं, बल्कि एक बड़ी प्रशासनिक लापरवाही मानी जा रही है. जिन परिवारों के लिए नन्हे बच्चों की किलकारी सुनने का समय था, उन्हें अपने बच्चों की जली हुई लाशें ढूंढनी पड़ीं. उन परिवारों का दर्द शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता, जिन्होंने अपनी गोद में बच्चों के शव उठाए.


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"मेरे बच्चे को डॉक्टरों ने मारा है"
परिवारों का आरोप है कि यह हादसा नहीं, बल्कि अस्पताल प्रशासन की एक बड़ी गलती है. आग भले ही शॉर्ट सर्किट से लगी हो, लेकिन उसे भड़काने का काम अस्पताल की लापरवाही ने किया है. अस्पताल में फायर सेफ्टी उपकरण चार साल पहले ही एक्सपायर हो चुके थे. फरवरी में फायर सेफ्टी ऑडिट और जून में मॉक ड्रिल के बावजूद, जब असली हादसा हुआ तो अलार्म तक नहीं बजा.


मौत का डेथ चेंबर बना बच्चा वॉर्ड
जिस NICU को वर्ल्ड क्लास सुविधाओं से लैस बताया गया था, वहीं वॉर्ड अब 10 मासूमों की मौत का गवाह बन चुका है. एक्सपायर फायर एक्सटिंग्विशर और इमरजेंसी एक्जिट के अभाव में, बच्चों को बचाने के लिए कोई इंतजाम नहीं थे. CMS सचिन माहोर का बयान हैरान करने वाला है—"शॉर्ट सर्किट हो सकता है, यह सामान्य है." क्या ऐसा बयान किसी इंसानियत से जुड़ा व्यक्ति दे सकता है?


सवाल उठता है: दोषी कौन है?
NICU में एक्सपायर फायर एक्सटिंग्विशर क्यों थे?
फायर सेफ्टी ऑडिट के बावजूद अलार्म क्यों नहीं बजा?
इमरजेंसी एक्जिट क्यों नहीं था?
इन सवालों का जवाब भ्रष्टाचार और लापरवाही की ओर इशारा करता है.


बेशर्मी की हद: डिप्टी सीएम के स्वागत की तैयारी
जिस समय परिवार अपने बच्चों की जिंदगी की भीख मांग रहे थे, उसी समय अस्पताल प्रशासन डिप्टी सीएम के स्वागत के लिए सड़कों पर चूना लगवा रहा था. एक तरफ मातम पसरा था, दूसरी तरफ प्रशासन इवेंट की तैयारी में जुटा था.


जांच के आदेश, लेकिन इंसाफ कब?
सरकार ने तीन जांचों के आदेश दिए हैं.. स्वास्थ्य विभाग, पुलिस और मजिस्ट्रेट जांच. लेकिन इन रिपोर्ट्स के आने तक क्या कोई जिम्मेदारी तय होगी?


मुआवजे का ऐलान, लेकिन क्या यह काफी है?
सरकार ने मुआवजे की घोषणा की है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह मुआवजा उन परिवारों के दर्द को कम कर सकता है, जिन्होंने अपने मासूमों की लाशें उठाई? क्या यह मुआवजा इंसाफ दे पाएगा?