Pigeon beat health hazards: पुराने जमाने में दूर दराज के इलाकों में कोई संदेश भेजने के लिए कबूतरों का इस्तेमाल किया जाता था. कबूतरों पर संदेश बांध दिया जाता था, और वो उड़कर अपने ठिकाने पर चले जाते थे. इस तरह से एक जगह से दूसरी जगह तक संदेश का आवागमन होता था. लेकिन आज हम DNA में आपको एक ऐसी एक्सक्लूसिव खबर दिखाने जा रहे हैं, जिसे देखने के बाद, आप कबूतरों से दूरी बना लेंगे. वर्ष 1989 में आई फिल्म 'मैंने प्यार किया' का एक मशहूर गाना था, जिसकी हुक लाइन थी, 'कबूतर जा जा'.  कबूतरों पर हमारी ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट देखने के बाद, आप अपने घर पर आए हर कबूतर से कहेंगे 'कबूतर भाग जा, यहां मत आ'.


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कबूतर की बीट से 60 से ज्यादा बीमारियां


आपने नोटिस किया होगा कि कबूतरों की संख्या आजकल हाई राइज सोसायटी की बालकनियों में काफी बढ़ी हुई है. लोग अपनी बालकनी में चिड़ियों के नाम पर जो दाना डालते हैं, उनमें चिड़ियों के बजाए कबूतरों की संख्या ज्यादा होती है. अगर हम ये कहें कि ये कबूतर आपके यहां दाना खाने आते हैं, और आपके लिए 60 तरह की बीमारी की सौगात लाते हैं. तो आप इस बात पर कैसे रिएक्ट करेंगे? हो सकता है कि हमारी ये खबर पशु-पक्षी प्रेमियों को पसंद ना आए. मुमकिन है, हमारी ये खबर देखने के बाद हमें पशु-पक्षी विरोधी बताया जाएगा, लेकिन फैक्ट यही है कि कबूतर की बीट यानी Pigeon Droppings से इंसानी शरीर को गंभीर खतरा होता है. अगर अभी तक आप अपनी बालकनी में कबूतरों को देखकर खुश होते थे, तो यकीन मानिए उनकी बीट से आपको सावधान हो जाना चाहिए. कबूतर की बीट इंसानी फेफड़ों के लिए इतनी खतरनाक होती है कि उसकी वजह से मौत भी मुमकिन है.


सामने आई चौंकाने वाली रिपोर्ट


Brazilian Archives of Biology and Technology जर्नल में एक रिसर्च पेपर सामने आया है. इस रिसर्च में बताया गया है कि कबूतर की बीट से इंसानों को 60 से ज्यादा खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं. इनमें सबसे ज्यादा Bird Fancier’s Lung disease, Histo-plasmo-sis (हिस्टोप्लास्मोसिस), Crypto-cocosis (क्रिप्टोकोकोसिस) और Psittacosis (सीटाकोसिस) जैसी बीमारियां होती हैं. Bird Fancier’s Lung disease फेफड़ो में होने वाला एक गम्भीर संक्रमण है. जो कबूतर की बीट या पंखों के कण से होता है. कबूतर की बीट से फंगल इंफेक्शन भी होता है, जिसे Histo-plasmo-sis कहते हैं. इससे इंसान को तेज बुखार, खांसी-जुकाम और खून की समस्या हो जाती है. Crypto-coccosis भी एक Fungal इंफेक्शन है, जिससे स्किन पर रैशेज़ और दाने हो जाते हैं. Psittacosis (सीटाकोसिस) भी कबूतर की बीट में मौजूद बैक्टीरिया की वजह से होती है. इसमें इंसान को खांसी-जुकाम और बुखार जैसी समस्या हो जाती है.


बच्चों के लिए बेहद घातक


इस रिसर्च के मुताबिक, कबूतर जब आपके घर को गंदा करता है, तो उसकी बीट सूखने के बाद, ज्यादा खतरनाक हो जाती है. बीट में मौजूद बैक्टीरिया, सांसों के माध्यम से आपके शरीर में घुस जाते हैं. इसकी वजह से आपको सांस से संबंधित बहुत तरह की बीमारियां होती हैं. कई बार स्थिति बहुत खराब हो जाती है. कबूतर की बीट से होने वाली बीमारियों को लेकर पुणे में भी एक रिसर्च की गई थी. रिसर्च करने वाले डॉक्टर विजय वराड़ ने दो साल तक हजारों लोगों के सैंपल इकट्ठे किए. इस रिसर्च में 1100 बच्चों को भी शामिल किया गया था. कुल बच्चों में से 37 फीसदी में कबूतर के पंख और उनकी बीट से होने वाली एलर्जी पाई गई थी.


फैलती हैं ये बीमारियां


डॉक्टर विजय वराड़ ने अपनी रिसर्च में पाया कि कबूतरों की बीट की वजह से सांस और फेफड़ों से संबंधित कई बीमारियां फैलती हैं. जैसे


Rhinitis (राइनाइटस)
Sinusitis (साइनोसाइटस)
Skin allergy (स्किन एलर्जी)
Conjunctivitis (कंजंक्टिवाइटिस)
Nasal septum (नेज़ल सेप्टम)
Asthma (एस्थमा)
Chronic respiratory diseases (COPD) यानी सांस से संबंधित गंभीर बीमारियां होती हैं.


चली गई नवीन की जान


डॉक्टर्स के मुताबिक अगर सही समय पर उपचार नहीं मिले, तो बीमार व्यक्ति की स्थिति तेजी से बिगड़ती है. कई बार ये स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि मरीज के फेफड़ों की सर्जरी या ट्रांसप्लांट की नौबत आ जाती है. वर्ष 2017-18 में पुणे म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन की एनवायरमेंट स्टेटस रिपोर्ट में बताया गया कि सांस से संबंधित मरीजों की संख्या बढ़ गई है. इसकी वजह उन्होंने कबूतरों को बताया था. कुछ दिन पहले दिल्ली में भी एक मामला सामने आया था. यहां नवीन नाम के एक 30 साल के युवक की मौत हो गई थी. मौत की वजह फेफड़ों का संक्रमण बताया गया था. ये संक्रमण उसे कबूतरों की बीट में पाए जाने वाले बैक्टीरियों की वजह से हुआ था. दरअसल नवीन, दिल्ली के कनॉट प्लेस में काम करते थे. उनके ऑफिस के AC डक्ट में कबूतरों का जमावड़ा था. यहीं से उनको पहले संक्रमण हुआ. उसके बाद पिछले 4 साल से वो इस संक्रमण का इलाज करवाते रहे. 4 सालों तक नवीन ऑक्सीजन सिलेंडर के भरोसे ही थे. यही संक्रमण उनके लिए जानलेवा साबित हो गया.


कबूतर की बीट से हो गई मौत


ज्योतिष शास्त्र में कहा जाता है कि कबूतर को दाना डालने से घर में सुख शांति आती है. लेकिन आज की वैज्ञानिक सच्चाई ये है कि कबूतर के आने से दुख और अशांति आती है. अगर आप अपने घर की बालकनी में कबूतर को दाना डालकर सुख शांति पाने की कोशिश कर रहे हैं तो सावधान हो जाइए क्योंकि ये कबूतर आपके घर को बीमारियों को डेरा बना रहे हैं. कबूतरों की बीट से इंसानों में होने वाली संक्रमण का असर, हमें दिल्ली के मानसरोवर में रहने वाले नवीन के ऊपर देखने के मिला. नवीन अब इस दुनिया में नहीं हैं. उनके फेफड़ों में जो इंफेक्शन हुआ था, उसकी वजह से कुछ दिन पहले उनकी मौत हो गई थी. नवीन केवल 30 साल के थे, और उन्हें कबूतर की बीट से होने वाला संक्रमण हो गया था.


कबूतरों की पंख से भी खतरा


कबूतर हमारे इकोसिस्टम का हिस्सा हैं. लेकिन अभी तक पेड़ों पर घोंसला बनाकर रहने वाले कबूतर, धीरे-धीरे हाई राइज़ बिल्डिंगों के छज्जों पर अपना घर बना चुके हैं. इन कबूतरों की मौजूदगी और उनकी बीट, इंसानों को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचा रही है. हमने इस मामले में नोएडा के मेट्रो हॉस्पिटल के Pulmonologist डॉ दीपक तलवार से बात की. डॉक्टर दीपक तलवार ही नवीन का इलाज कर रहे थे. उनके मुताबिक उनके पास हर दिन नवीन की तरह ही 2 से 3 मरीज आते हैं, सभी के फेफड़े कबूतर की बीट की वजह से संक्रमित हुए हैं. नवीन की तरह की पुणे की रहने वाली मिसेज़ पंडित भी सांस की बीमारी से पीड़ित हैं. जब वो डॉक्टर के पास इलाज के लिए पहुंची तो उन्हें पता चला कि उन्हें सीवियर Rhinitis(राइनाइटिस) और अस्थमा है. कई तरह के टेस्ट से पता चला कि उनकी बीमारी की वजह भी कबूतर की बीट और पंख के अंश हैं. केवल उन्हें ही नहीं, उनके तीन साल के बेटे को भी यही तकलीफ है.


कबूतर की गंदगी से रहें दूर


नोएडा की एक सोसाइटी में रहने वाली शालिनी के घर की बालकनी में भी हर रोज़ कबूतर आते थे. शुरूआत में वो कबूतरों को दाना डालकर पुण्य कमाने का एहसास पाती थीं. लेकिन जब से उन्हें कबूतर की बीट से होने वाली बीमारियों का बता चला है, वो सावधानी बरत रही हैं. शालिनी जैसे लोगों को कबूतरों की गंदगी से होने वाली खतरों का अंदाजा हो गया है. लेकिन डॉक्टर्स कहते हैं कि अब भी कई लोगों में जागरुक नहीं है. लोगों को कबूतर की गंदगी से होने वाले खतरे का अंदाज ही नहीं हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक सांस की तकलीफ में कबूतर की बीट वाला संक्रमण पता करने में 3-4 साल लग जाते हैं. इसकी एक वजह ये है कि लोग ये मानने को तैयार नहीं होते कि कबूतर की बीट उनकी सांस की बीमारी की वजह है. तो अगर आपकी बालकनी में या आसपास कबूतरों का डेरा ज्यादा है, तो आपको खतरे का आभास हो जाना चाहिए. कबूतर, इंसानों के लिए एक ऐसा खतरा बन गए हैं, जिसका इलाज, उन्हें मारना नहीं है, बल्कि उनसे दूरी बनाना है. हम आपको कबूतर को दाना डालने से मना नहीं कर रहे हैं. बल्कि कबूतर की फैलाई गंदगी से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं.


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