कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार को सत्ता में आए 9 महीने हुए हैं और अब तक 77 विधायकों समेत कुल 90 लोगों को कैबिनेट का दर्जा दिया जा चुका है. इसे सबको खुश करने की राजनीति या तुष्टीकरण कहा जा रहा है. TOI की रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक के इतिहास में कैबिनेट रैंक पाने वालों की यह सबसे बड़ी संख्या है. मई 2023 के चुनावों में ढेर सारे वादे और दावों के जरिए कांग्रेस को बड़ी जीत मिली थी. 


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पार्टी के कुल 135 विधायकों में से 77 और चार MLC को भी कैबिनेट की प्रतिष्ठित रैंक दी गई है. इनमें मंत्रियों (मुख्यमंत्री सहित), बोर्डों और निगमों के अध्यक्ष, मुख्यमंत्री के कई सलाहकार और यहां तक कि विधानसभा और विधान परिषद में सत्तारूढ़ दल के मुख्य विप भी शामिल हैं. 


इसके अलावा कैबिनेट मंत्री के दर्जे के साथ मुख्यमंत्री के 9 सलाहकार नियुक्त किए गए, जो किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं. इसमें कांग्रेस की जीत के मास्टरमाइंड सुनील सुनील कनुगोलू, सीएम के चिकित्सा सलाहकार डॉ. एच रविकुमार, पूर्व आईएएस अधिकारी और 'ब्रांड बेंगलुरु' के एक्सपर्ट बीएस पाटिल और एनआरआई सेल के उपाध्यक्ष डॉ. आरती कृष्णा शामिल हैं. 


कैबिनेट दर्जे की पावर पता है?


- कैबिनेट रैंक वाला शख्स 14-सदस्यीय स्टाफ को काम पर रख सकता है. 
- पुलिस एस्कॉर्ट के साथ एक कार मिलती है. उसे मोटी सैलरी मिलती है. 
- हालांकि कार्मिक विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि बोर्डों और निगमों में नियुक्त कैबिनेट रैंक के किसी विधायक या मुख्य विप और राजनीतिक सलाहकार के रूप में नियुक्त लोगों का वेतन ज्यादा नहीं है. 


भाजपा नेता और पूर्व सीएम बसवराज बोम्मई ने सिद्धारमैया के कैबिनेट रैंक बांटने पर सवाल उठाया है. हाल में उन्होंने कहा कि कैबिनेट रैंक कर्नाटक विधानसभा की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. राज्य में पहले से 34 मंत्रियों के पास कैबिनेट रैंक थी. अब सलाहकारों, राजनीतिक सचिवों, आयोग के अध्यक्षों को भी कैबिनेट का दर्जा दे दिया गया है. यह ठीक नहीं है.