दर्द और जख्मों से भरा है कस्तूर कपाड़िया से ``कस्तूरबा गांधी`` बनने का सफर, फूट-फूटकर रोए थे बापू
कस्तूरबा गांधी (Kasturba Gandhi) का नाम सुनते ही मन में एक शालीन सी छवि उभरकर सामने आ जाती है. वह एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने बापू (महात्मा गांधी) के हर कदम पर उनका साथ दिया.
नई दिल्ली: कस्तूरबा गांधी (Kasturba Gandhi) का नाम सुनते ही मन में एक शालीन सी छवि उभरकर सामने आ जाती है. वह एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने बापू (महात्मा गांधी) के हर कदम पर उनका साथ दिया. वह महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की पत्नी थीं. एक साधारण पति-पत्नी की तरह बापू और कस्तूरबा के बीच खूब झगड़े होते थे लेकिन दोनों के बीच का प्रेम दुनिया की हर समस्या से बढ़कर था.
आज के दिन कस्तूरबा गांधी को इसलिए याद किया जा रहा है क्योंकि आज उनकी पुण्यतिथि है. 22 फरवरी 1944 को पुणे के अगा खान पैलेस में उन्होंने देह त्याग दी थी. उन्हें प्यार से लोग ''बा'' बुलाया करते थे. वह गंभीर स्वभाव की महिला थीं.
कस्तूरबा का जन्म 11 अप्रैल 1869 को पोरबंदर में हुआ था. उनके बचपन का नाम कस्तूर कपाड़िया था. वह ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थीं और बहुत कम उम्र में ही उनकी शादी महात्मा गांधी से हो गई थी. वह उम्र में बापू से 6 महीने बड़ी थीं. बापू ने उन्हें पढ़ाने की कोशिश भी की लेकिन उनका मन तो केवल बापू की सेवा में लगता था.
कम उम्र में शादी होने की वजह से बापू और कस्तूरबा बचपन में ही बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे और ये सिलसिला ताउम्र जारी रहा. जब बापू कानून की पढ़ाई के लिए अफ्रीका गए तो कस्तूरबा भी उनके साथ गईं और हर संभव मौके पर उन्होंने बापू का परछाई की तरह साथ दिया.
हालांकि बापू और कस्तूरबा के वैवाहिक जीवन को लेकर कई किस्से पढ़े और सुने जाते हैं जिनमें से एक ये है कि बापू और कस्तूरबा दोस्त तो थे लेकिन दोनों की आपस में बनती नहीं थी और उनके बीच खूब लड़ाई होती थी. बापू ने अपनी आत्मकथा में एक किस्सा बताया है जिसमें उन्होंने कस्तूरबा के साथ हुए झगड़े का जिक्र किया है.
क्यों हुआ था कस्तूरबा और बापू के बीच झगड़ा
महात्मा गांधी जब अफ्रीका में थे तो कस्तूरबा भी उनके साथ रहती थीं. इस दौरान कस्तूरबा ही घर का काम करती थीं और बापू किसी नौकर को काम पर रखने के लिए राजी नहीं थे. बापू चाहते थे कि कस्तूरबा ही घर का काम करें. बापू और कस्तूरबा के बीच इस मामले को लेकर इतना झगड़ा बढ़ गया कि बापू, कस्तूरबा को घर से बाहर निकालने के लिए तैयार हो गए थे.
दरअसल बापू की सक्रियता की वजह से उनसे मिलने के लिए काफी लोग आते थे. इस वजह से कस्तूरबा को काफी काम करना पड़ता था. दिनभर काम करने की वजह से कस्तूरबा परेशान हो जाती थीं.
एक बार तो मामला बहुत ज्यादा बढ़ गया. बापू ने कस्तूरबा से एक मेहमान का टॉयलेट साफ करने के लिए कहा. जिसके बाद बापू और कस्तूरबा का खूब झगड़ा हुआ. बापू तो कस्तूरबा का हाथ पकड़कर उन्हें घर से बाहर करने को तत्पर हो गए थे, लेकिन बाद में किसी तरह दोनों के बीच सुलह हुई. बापू ने अपनी आत्मकथा में अपने व्यवहार के लिए कई बार शर्मिंदगी जताई है और कस्तूरबा को एक धैर्यवान महिला बताया है.
क्या सच में कस्तूरबा को बापू की अनदेखी का सामना करना पड़ा?
बापू और कस्तूरबा के बीच की कहानी काफी अनोखी है. दोनों बचपन के दोस्त भी थे और दोनों के बीच में झगड़े भी होते थे. बापू, कस्तूरबा से नाराज होते थे और फिर पश्चाताप भी करते थे.
कई मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि कस्तूरबा अफ्रीका में रहना चाहती थीं लेकिन गांधी, भारत वापस लौटना चाहते थे और गांधी की इच्छा के बिना कस्तूरबा कुछ नहीं कर सकती थीं. यहां तक कि जब गांधी के बेटे हरिलाल गांधी को विदेश में पढ़ाने की बात आई तो भी गांधी ने मना कर दिया था. इससे हरिलाल भी अपने पिता से काफी नाराज हो गए थे. बेटे और पति के आपसी मतभेद के बीच कस्तूरबा बुरी तरह फंस चुकी थीं.
अब बापू और कस्तूरबा की कहानी को लोगों के सामने लाने के लिए प्रसिद्ध कलाकार जीनत अमान ने 15 साल बाद स्टेज पर वापसी की है. वह ''डियरेस्ट बापू, लव कस्तूरबा'' नाम से होने वाले एक प्ले का हिस्सा हैं. उनका मानना है कि कस्तूरबा गांधी एक सत्यनिष्ठ महिला थीं लेकिन उन्हें वह महत्व नहीं मिल पाया जो मिलना चाहिए था. इस प्ले में आरिफ जकारिया गांधी का किरदार निभा रहे हैं और अमान कस्तूरबा का किरदार निभा रही हैं.
इसका प्रीमियर शुक्रवार को एनसीपीए में हुआ जोकि ग्रेट इंडियन थियेटर फेस्टिवल का हिस्सा है. इस प्ले को सैफ हैदर हसन ने डायरेक्ट किया है. जीनत अमान का कहना है कि कस्तूरबा, बापू की जिंदगी का एक अहम हिस्सा रहीं लेकिन उन्हें लंबे समय तक उपेक्षित रखा गया. बापू ने सत्याग्रह की धारणा कस्तूरबा से ही सीखी थी. अमान ने ये बातें पीटीआई से कहीं.
अमान का कहना है कि उन्होंने अपनी जिंदगी में ऐसा कोई शख्स नहीं देखा जिसने कस्तूरबा की तरह जिंदगी जी हो. अमान ने यह भी बताया कि इस रोल को करने से पहले उन्हें कस्तूरबा के बारे में बहुत कम जानकारी थी. गांधी का किरदार निभाने वाले आरिफ ने भी यह कहा कि लोग कस्तूरबा के बारे में बहुत नहीं जानते लेकिन बापू के बारे में जानते हैं क्योंकि काफी सालों से वह प्रासंगिक हैं.
''बा'' के निधन पर बापू ने ये कहे थे आखिरी शब्द
22 फरवरी 1944 को जब कस्तूरबा गांधी ने आखिरी सांस ली तब बापू बहुत दुखी हुए. जब तक चिता पूरी तरह जल नहीं गई, तब तक बापू वहीं बैठे रहे. इस दौरान बापू ने कहा था कि ये 62 साल के जीवन की आखिरी विदाई है, मुझे दाह संस्कार पूरा होने तक यहीं रहने दो. इसके बाद शाम की प्रार्थना के समय कहे गए बापू के ये शब्द आज भी इतिहास में अमर हैं. बापू ने कहा था, 'मैं 'बा' के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता.'
बा ने भी शरीर छोड़ने से पहले बापू से कहा था, ''अब मैं जाती हूं. हमने बहुत सुख-दुख भोगे. मेरे बाद रोना मत. मेरे मरने पर तो मिठाई खानी चाहिए."
स्टेनले वोलपार्ट ने गांधी पर एक किताब लिखी है. इस किताब में उन्होंने कस्तूरबा के निधन से जुड़ा एक वाकया लिखा है. उन्होंने बताया है कि कस्तूरबा की मौत के बाद महात्मा गांधी डिप्रेशन में चले गए थे. इस दौरान वह खुद को थप्पड़ मारकर कहते थे, ''मैं महात्मा नहीं बल्कि एक सामान्य इंसान हूं. बहुत मुश्किल से मैं अहिंसा को अपनाने की कोशिश कर रहा हूं.''