Gandhi Jayanti: आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की 153वीं जयंती है. आज ही के दिन महान स्वतंत्रता सेनानी और भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) की भी 119वीं जयंती है. लाल बहादुर शास्त्री की सादगी विख्‍यात है. एक बार शास्‍त्री जी को कार खरीदना थी, उसके लिए वे खुद लोन लेने बैंक चले गए. ऐसे ही एक बार अपने बेटे का प्रमोशन रोक दिया. उससे भी ज्‍यादा दिलचस्‍प उनका टाइटल शास्‍त्री कैसे आया. जानते हैं इन किस्‍सों के बारे में. 


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कार खरीदने के लिए बैंक से लिया 5 हजार का लोन 


लाल बहादुर शास्त्री के बच्चे उन्हें कहते थे कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके पास एक कार होनी चाहिए. घरवालों के कहने पर शास्त्री जी ने कार खरीदने के बारे में सोचा. उस समय आज की तरह बैंक बैंलेंस तो पता नहीं चलता था. उन्होंने बैंक से अपने खाते की जानकारी मंगवाई तो पता चला कि उनके बैंक खाते में तो महज 7 हजार रुपये ही है. उस समय कार की कीमत 12 हजार रुपये थी. कार खरीदने के लिए उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक से लोन लिया. 5 हजार रुपये का लोन लेते वक्त शास्त्री जी ने बैंक अधिकारी से कहा कि जितनी सुविधा मुझे मिल रही है उतनी आम नागरिक को भी मिलनी चाहिए. आपको बता दें कि लिया गया लोन चुका पाते उसके एक साल पहले ही उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बन चुकी थीं. उन्‍होंने इस लोन को माफ करने की पेशकश की. लेकिन शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री ने इस बात से इन्‍कार कर दिया और शास्त्री जी की मौत के बाद कार की ईएमआई जमा कराती रहीं. उन्होंने उस कार लोन का पूरा भुगतान किया.


अपने ही बेटे का प्रमोशन रुकवाया


लाल बहादुर शास्त्री अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते थे. उन्होंने प्रधानमंत्री र‍हते हुए करप्शन से निपटने के लिए एक समिति बनाई थी. भ्रष्टाचार से जुड़े सवाल पर उन्होंने अपने बेटे तक को भी नहीं बख्शा. एक बार उन्हें पता चला कि उनके बेटे को गलत तरीके से प्रमोशन दिया जा रहा है तो उन्होंने फौरन अपने बेटे का प्रमोशन रुकवा दिया. 


जब वर्मा से बने शास्‍त्री 


आपको बता दें कि लाल बहादुर जी छठी कक्षा तक मुगलसराय में ही पढ़े थे. उसके बाद उनको अपनी मां और भाइयों के साथ वाराणसी जाना पड़ा. वाराणसी के हरीश चंद्र हाईस्कूल में उन्‍हें सातवीं कक्षा में प्रवेश दिया गया. यही वो वक्त था जब लाल बहादुर ने अपना सरनेम वर्मा छोड़ने का फैसला ले लिया. महात्मा गांधी ने 1921 में काशी विद्यापीठ की स्थापना की थी. 1925 में लाल बहादुर ने काशी विद्यापीठ से नैतिक और दर्शन शास्त्र में ग्रेजुएशन की डिग्री ली. यहां उन्‍हें 'शास्त्री' का टाइटल मिला. आपको बता दें कि काशी विद्यापीठ में ग्रेजुएशन करने पर शास्त्री टाइटल दिया जाता था. इसके बाद लाल बहादुर ने अपने नाम से वर्मा टाइटल हटाकर शास्त्री टाइटल जोड़ लिया. इसके बाद लाल बहादुर वर्मा, लाल बहादुर शास्त्री के नाम से फेमस हो गए.   


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