Langda Mango: ऐसा कौन होगा जो आम का शौकीन नहीं होगा. भारत में आम की सैंकड़ों वैरायटी पाई जाती हैं. इन्हीं में से एक है लंगड़ा आम. हाल ही में इसे जीआई टैग भी मिला है. लंगड़ा आम के स्वाद के दीवानों की तो कोई कमी नहीं है लेकिन इसके नाम की कहानी बताने वाले आपको कम ही मिलेंगे. आज हम आपको यही बताएंगे कि लंगड़ा आम के नाम के पीछे का इतिहास क्या है?


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लंगड़ा आम के जन्म की कहानी भी इसके नाम की तरह बहुत रोचक है. अब इसमें कितना सच है और कितना झूठ यह तो नहीं जा सकता. लेकिन सैंकड़ों वर्षों से यह कहानी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचती रही है.


बनारस का शिव मंदिर
कहते हैं कोई ढाई सौ साल पहले बनारस के एक छोटे-से शिव-मंदिर में एक साधु आया और मंदिर के पुजारी से वहां कुछ दिन ठहरने की आज्ञा मांगी. मंदिर के पुजारी ने साधु को वहां ठहरने की इजाजत दे दी.


शिव मंदिर में लगभग एक एक एकड़ जमीन थी, जो चाहर दीवारियों से घिरी हुई थी. साधु के पास आम के दो छोटे-छोटे पौधे थे, जो उसने मंदिर के पीछे अपने हाथों से रोप दिए. साधु रोजाना आम के पौधों में पानी दिया करते और उनका ख्याल रखते.  साधु मंदिर में करीब 4 साल तक रहे. इस वक्त में पेड़ काफी बड़े हो गए.


साधु ने पुजारी को दी ये हिदायतें
आम की जब मंजरियां निकल आईं, तो साधु ने उसे तोड़कर भगवान शंकर पर चढ़ाया. साधु ने कहा कि उनका मंदिर में आने का उद्देशय पूरा हो गया है. वो सुबह होते ही मंदिर से चले गए और आम के पेड़ का ध्यान रखने की जिम्मेदारी मंदिर के एक पुजारी को दे दी. उन्होंने कहा कि जब पेड़ पर आम आ जाएं, तो उन्हें कई हिस्सों में काट कर भगवान शिव पर चढ़ा दें और भक्तों में प्रसाद के रूप में बांट दें.


साधु पुजारी से बोला, `मेरा काम पूरा हो गया. कल सुबह ही बनारस छोड़ दूंगा. तुम इन पौधों की देखरेख करना और इनमें फल लगें, तो उन्हें कई भागों में काटकर भगवान शंकर पर चढ़ा देना, फिर प्रसाद के रूप में भक्तों में बांट देना, लेकिन भूलकर भी पूरा आम किसी को मत देना.’


साधु ने पुजारी से ये भी कहा कि पेड़ की कलम और गुठली किसी को न दें. आम की गुठलियों को आग में जला दें वरना कोई उसे रोपकर नए पौधे उगा लेंगे.


पुजारी ने साधु की सारी बातों का पूरा ध्यान रखा. वह भक्तों प्रसाद के रूप में आम काटकर देता रहा. धीरे-धीरे पूरे बनारस में मंदिर वाले आम की चर्चा होने लगी. हालांकि जब भी किसी ने पुजारी से आम की गुठलियां मांगी तो पुजारी ने देने से मना कर दिया.


काशी नरेश पहुंच शिव मंदिर
एक दिन आम की शोहरत काशी नरेश तक पहुंच गई. वह एक दिन स्वयं वृक्षों को देखने राम-नगर से मंदिर में आ पहुंचे. उन्होंने श्रद्धापूर्वक भगवान शिव की पूजा की और वृक्षों का निरीक्षण किया. फिर पुजारी के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि इनकी कलमें लगाने की अनुमति प्रधान-माली को दे दें.


काशी नरेश की बात सुन पुजारी ने कहा कि वह सांध्य-पूजा के समय शंकरजी से प्रार्थना करेंगे और उनका संकेत पाकर अगले दिन खुद महल में आकर आम की कलम महल के माली को सौंप देंगे. रात को पुजारी के सपने में भगवान शिव आए और उन्होंने आम की कलम राजा को देने के लिए कहा.


बन गए आम के कई बाग
भगवान शिव की आज्ञा पाकर अगले दिन पुजारी काशी नरेश के महल पहुंचा और राजा को आम की कलम भी सौंप दी. प्रधान-माली ने जाकर आम के वृक्षों में कई कलमें लगायीं, जिनमें वर्षाकाल के बाद काफी जड़ें निकली हुई पायी गयीं. कलमों को काटकर महाराज के पास लाया गया और उनके आदेश पर उन्हें महल के परिसर में रोप दिया गया. कुछ ही वर्षों में वे वृक्ष बनकर फल देने लगे. कलम द्वारा अनेक वृक्ष पैदा किये गये. महल के बाहर उनका एक छोटा-सा बाग बनवा दिया गया. देखते ही देखते रामनगर में लंगड़े आम के अनेकानेक बड़े-बड़े बाग बन गए.


लंगड़ा नाम पड़ने का कारण
साधु की हिदायतों को मानकर आम के पेडों की देखभाल करने वाला पुजारी लंगड़ा था. इसलिए इस आम का नाम भी लंगड़ा पड़ा गया.


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