Congress Bihar: बिखरा संगठन, गुटबाजी...क्या बिहार में कांग्रेस की नैया पार लगा पाएंगे राहुल के `मोहन`
Bihar Election Congress: मोहन प्रकाश के लिए बिहार की राह आसान नहीं है. माना जा रहा है कि उन्हें बिहार में संगठन से लेकर चुनाव जिताऊ पारी खेलनी होगी, बल्कि गठबंधन में मजबूत हिस्सेदारी को लेकर डिफेंसिव नहीं बल्कि आक्रामक पारी भी दिखानी होगी.
BJP Vs Congress: अपनी खोई सियासी जमीन पाने के लिए कांग्रेस पूरा जोर लगा रही है. 2024 लोकसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ और राजस्थान से सरकार जा चुकी है, जो पार्टी के लिए बड़ा झटका है. हाल ही में कांग्रेस ने अपने संगठन में बड़ा बदलाव किया है. प्रियंका गांधी से अब यूपी का चार्ज ले लिया गया है. उनकी जगह अविनाश पांडे को यूपी का प्रभारी बनाया गया है जबकि बिहार की कमान मोहन प्रकाश को सौंपी गई है. इससे पहले यह जिम्मेदारी भक्त चरण दास के पास थी.
मोहन प्रकाश के लिए बिहार की राह आसान नहीं है. माना जा रहा है कि उन्हें बिहार में संगठन से लेकर चुनाव जिताऊ पारी खेलनी होगी, बल्कि गठबंधन में मजबूत हिस्सेदारी को लेकर डिफेंसिव नहीं बल्कि आक्रामक पारी भी दिखानी होगी. मोहन प्रकाश राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं. उनको प्रभारी बनाना कांग्रेस की 2024 लोकसभा चुनाव की रणनीति का हिस्सा है.
बनेंगे संगठन और आलाकमान का सेतु
राजस्थान के रहने वाले मोहन छात्र जीवन से ही राजनीति करते आ रहे हैं. वह प्रवक्ता, महासचिव जैसे पद संगठन में संभाल चुके हैं. बिहार में वह राज्य में आलाकमान और प्रदेश संगठन के बीच पुल जैसा काम करेंगे.
वैसे, बिहार में कांग्रेस लगातार अपनी खोई जमीन की तलाश में जुटने का दावा करती है, लेकिन हकीकत है कि अखिलेश सिंह के प्रदेश का नेतृत्व संभाले एक साल से अधिक का समय गुजर गया, लेकिन अब तक प्रदेश कमेटी तक नहीं बन सकी.
इससे पहले मदन मोहन झा भी गुटबाजी और विरोध के कारण प्रदेश कमेटी का गठन नहीं कर पाए थे. ऐसे में मोहन प्रकाश के सामने सबसे बड़ी चुनौती संगठन स्तर पर गुटबाजी को खत्म कर प्रदेश कमेटी के गठन की होगी. उन्हें इस कमेटी के जरिए न केवल क्षेत्रीय संतुलन को भी साधना होगा बल्कि नए और पुराने चेहरे को सामंजस्य बैठा कर कमेटी को निर्विवाद साबित करना होगा.
नहीं पूरी हुई कांग्रेस की मांग
माना जा रहा है कि बिहार में सत्ताधारी गठबंधन में शामिल आरजेडी और जेडीयू से कांग्रेस के नए प्रभारी को सामंजस्य बनाने में दिक्कत नहीं होगी, लेकिन कांग्रेस को गठबंधन में वाजिब हक मिले, यह चुनौती प्रकाश के सामने जरूर होगी. पिछले कई महीने से कांग्रेस मंत्रिमंडल विस्तार कर अपने कोटे के दो और मंत्री बनाने की मांग करती रही है, लेकिन अब तक यह मांग भी पूरी नहीं की गई है.
साल 2015 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं. लेकिन जब पांच साल बाद 2019 में दोबारा चुनाव हुए तो उसकी सीटें घटकर 19 ही रह गईं. इस चुनाव में कांग्रेस महागठबंधन में शामिल होकर 243 में से 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी.
मोहन प्रकाश के सामने कांग्रेस की खोई जमीन को फिर से वापस पाना भी बड़ी जिम्मेदारी है. बिहार की पुरानी जमीन सवर्ण, दलित और मुसलमान रहे हैं, लेकिन फिलहाल कांग्रेस का यह पुराना वोटबैंक छिटक चुका है. ऐसे में कांग्रेस प्रभारी के लिए उस वोट बैंक को फिर से कांग्रेस की ओर लाना बड़ी जिम्मेदारी है.