Bhartruhari Mahtab: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ( President Droupadi Murmu ) ने भाजपा सांसद भर्तृहरि महताब को 18वीं लोकसभा ( Lok Sabha) के लिए प्रोटेम स्पीकर (Protem Speaker) नियुक्त कर दिया है. 18वीं लोकसभा का अध्यक्ष कौन होगा, किस पार्टी का होगा, इस पर तमाम तरह की चर्चा देश में हो रही है. लेकिन इसी बीच एक और चर्चा उठी कि बीजेपी महताब को ही लोकसभा स्‍पीकर न बना दे. महताब को बीजेपी स्पीकर क्यों बनाएगी, यह बात बाद में पहले आइए जानते हैं कि क्या देश में कभी ऐसा हुआ है कि प्रोटेम स्‍पीकर को ही लोकसभा अध्यक्ष बना दिया गया हो? तो जवाब है, हां. 


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मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में तीन बार ऐसा हुआ कि जब प्रोटेम स्पीकर बने आदमी को ही लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी मिल गई हो. 


प्रोटेम से स्‍पीकर बने लोग


गणेश वासुदेव मावलंकर


हुकुम सिंह


सोमनाथ चटर्जी.


1. गणेश वासुदेव मावलंकर
साल 1952 में देश में पहला आम चुनाव कराया गया. इसमें कांग्रेस पार्टी को पूर्ण बहुमत मिली. सांसदों को शपथ दिलाने के लिए प्रोटेम स्पीकर का चुनाव किया गया. उस समय जीवी मावलंकर को यह जिम्मेदारी सौंपी गई. स्पीकर चुनाव की जब बारी आई, तो कांग्रेस ने मावलंकर के नाम का ही प्रस्ताव रखा. इस तरह मावलंकर देश के पहले लोकसभा अध्यक्ष बन गए. मावलंकर उस वक्त अहमदाबाद लोकसभा सीट से सांसद थे. मावलंकर इसके बाद 1956 तक लोकसभा के अध्यक्ष रहे. गणेश वासुदेव मावलंकर को जिन्हें प्यार से दादा साहब मावलंकरके नाम से याद किया जाता है तथा जिन्हें स्वयं पंडित जवाहर लाल नेहरू ने "लोक सभा के जनक" की उपाधि से सम्मानित किया था.


2. सरदार हुकुम सिंह 
देश में दूसरी बार ऐसा हुआ कि प्रोटेम स्‍पीकर बन गए. बात 1956 की है. जब जीवी मावलंकर का निधन हो गया तो कुछ समय के लिए प्रोटेम स्पीकर बनाकर सदन चलाने की जिम्मेदारी हुकुम सिंह को ही दी गई. इसके बाद साल 1957 में लोकसभा के चुनाव हुए और हुकुम सिंह डिप्टी स्पीकर बनाए गए. 1962 में कांग्रेस ने सिंह का नाम लोकसभा स्पीकर के लिए प्रस्तावित किया. सिंह इस पद पर साल 1967 तक रहे. लोकसभा अध्यक्ष पद से हटने के बाद हुकुम सिंह ने सक्रिय राजनीति छोड़ दी. राष्ट्रपति ने बाद में उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया. लोकसभा में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने विशेषाधिकार समिति, निजी सदस्यों के विधेयक और संकल्प समिति, पुस्तकालय समिति और अधीनस्थ विधान समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया.


3. सोमनाथ चटर्जी
चौदहवीं लोकसभा यानी 2014 में कांग्रेस की सरकार आई. उस समय यूपीए में सीपीएम दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. स्पीकर चुनाव से पहले जब प्रोटेम स्पीकर बनाने की बारी आई तो लोकसभा सचिवालय ने सोमनाथ चटर्जी के नाम का ऐलान किया.पहले सत्र के पहले दिन ही वरिष्ठ सदस्य होने के नाते 'प्रोटेम स्पीकर' सोमनाथ चटर्जी को बनाया गया. सभी सांसदों को शपथ दिलाने के बाद कांग्रेस ने सोमनाथ चटर्जी के नाम का ही स्पीकर पद के लिए प्रस्ताव कर दिया. कांग्रेस के इस प्रस्ताव का सभी दलों ने समर्थन कर दिया, जिसके बाद चटर्जी स्पीकर चुन लिए गए. सोमनाथ चटर्जी जब लोकसभा के स्पीकर बने, उस वक्त वे पश्चिम बंगाल के बोलपुर से सांसद थे.


भृतहरि महताब 2024 बनें प्रोटेम स्पीकर, कांग्रेस का विरोध
राष्ट्रपति भवन से गुरुवार को जारी एक आधिकारिक पत्र में कहा गया, 'राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 95(1) के तहत लोकसभा सदस्य भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया हैं. यानी अब भर्तृहरि महताब ही नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाएंगे.  भर्तृहरि महताब (Bhartruhari Mahtab) को लोकसभा का अस्थायी अध्यक्ष यानी प्रोटेम स्पीकर (Protem Speaker) नियुक्त करने पर कांग्रेस (Congress) भड़क गई है. कांग्रेस ने भर्तृहरि महताब की नियुक्ति को परंपरा का उल्लंघन बताते हुए सवाल उठाए हैं.


सबसे सीनियर को बनाया जाता है प्रोटेम स्पीकर
भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर बनाए जाने पर कांग्रेस ने संसदीय मानदंडों को नष्ट करने का आरोप लगाया है. क्योंकि अभी तक परिपाटी यही है कि सबसे अनुभवी सांसद को ही प्रोटेम स्पीकर की जिम्मेदारी दी जाती रही है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केसी वेणुगोपाल ने आरोप लगाया है कि बीजेपी ने ऐसा करके कांग्रेस के सबसे अनुभवी और आठ बार के सांसद के. सुरेश ((Kodikunnil Suresh) की अनदेखी की है.


प्रोटेम स्पीकर को लेकर क्या कहता है संविधान
भारत के संविधान में संसद में प्रोटेम स्पीकर जैसे पद की कोई व्यवस्था नहीं दी गई है. प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति अस्थायी तौर पर तब तक के लिए होती है, जब तक स्पीकर नहीं चुन लिया जाता है, जो स्थायी पद है. संविधान भले ही प्रोटेम स्पीकर के पद के बारे में कुछ नहीं कहता हो, लेकिन संसदीय कार्य मंत्रालय की आधिकारिक पुस्तिका में  उनकी नियुक्ति और शपथ ग्रहण के बारे में बताया गया है. ‘प्रो-टेम’ (Pro-tem) शब्द लैटिन के प्रो-टेम्पोर से आया है, जिसका मतलब होता है ‘अस्थायी रूप से’ या ‘अस्थायी’.


26 जून को लोकसभा स्पीकर का चुनाव
लोकसभा का पहला सत्र 24 जून से शुरू होगा. नवनिर्वाचित सांसद 24-25 जून को शपथ लेंगे, जबकि लोकसभा अध्यक्ष यानी स्पीकर (Lok Sabha Speaker) का चुनाव 26 जून को होना है. चुनाव में जीतकर आए सभी सांसदों को भर्तृहरि महताब ही शपथ दिलवाएंगे. यानी स्पीकर का चुनाव होने तक सातवीं बार सांसद बने  भारतीय जनता पार्टी (BJP) के भर्तृहरि महताब पीठासीन अधिकारी के रूप में काम करेंगे.


महताब रचेंगे इतिहास?
ओडिशा के कटक से सांसद भर्तृहरि महताब को 18वीं लोकसभा का प्रोटेम स्पीकर बनाया गया है. अगर महताब ही लोकसभा स्‍पीकर बनते हैं, तो वह भी एक इतिहास में शामिल होंगे जब प्रोटेम स्पीकर ही लोकसभा का अध्यक्ष बन गए. ‌‌


महताब स्पीकर भी बन सकते हैं, इसके पीछे भी कुछ वजह है, यह वजह सिर्फ अनुमान के आधार पर है:-


  • संसदीय कार्य के दौरान महताब की छवि साफ-सुथरी रही है. उन्हें 2018 में बेस्ट सांसद का भी अवार्ड मिला था. राजनीतिक करियर में भी उन पर कोई बड़ा आरोप नहीं है. यह तथ्य भी उनके पक्ष में है. 

  • दूसरी बात भृतहरि महताब बीजू जनता दल से आए हैं. नवीन पटनायक ने 1998 में उन्हें पार्टी की सबसे सेफ सीट कटक की जिम्मेदारी सौंपी थी. इस पर वे पिछले 7 चुनाव से जीतते आ रहे हैं. बीजेडी के वोटर्स को साधने के लिए भी महताब को स्पीकर बनाए जाने की सुगबुगाहट है.

  • तीसरी और सबसे खास बात यह है कि अब तक बीजेपी की सरकार में महाराष्ट्र, आंध्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश से ही लोकसभा के अध्यक्ष बनाए गए हैं. ऐसे में कहा जा रहा है कि विस्तार नीति के तहत पार्टी इस बार ओडिशा से किसी को अध्यक्ष बना सकती है. ओडिशा में बीजेपी को लोकसभा की 21 में से 20 सीटों पर जीत मिली है. ऐसे में अब यह अटकलें भी लगाई जा रही है कि क्या भृतहरि महताब भी यह करिश्मा कर पाएंगे? यह तो समय बताएगा.


17 बार लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव सर्वसम्मति से हुआ 
अब तक आजादी से अब तक देश में 17 बार लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव सर्वसम्मति से हुआ है. मगर इस बार मामला अलग दिख रहा है. विपक्ष पूरी दमखम से सरकार के हर काम में रोड़ा अटका रहा है, ऐसे में वह लोकसभा में उपाध्यक्ष के पद की मांग सरकार के सामने रख सकती है, 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून से शुरू होगा। प्रधानमंत्री मोदी 26 जून को लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव का प्रस्ताव पेश करेंगे. अगर सरकार विपक्ष का कहना नहीं माना तो शायद 26 जून को आजाद भारत में पहली बार चुनाव हो.