`नीलकंठ तुम नीले रहियो`... इस दशहरा नहीं दिखा सुख-समृद्धि देने वाला यह पक्षी
ये पक्षी अपना घोंसला बनाने और अंडे देने के लिए पुराने और ऊंचे पेड़ों का चुनाव करते हैं
नई दिल्ली: एक पक्षी होता है 'नीलकंठ'. कई लोगों ने इसे देखा होगा. नीले रंग के इस पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना जाता है इसीलिए इसके संबंध में उत्तर भारत में एक लोकोक्ति काफी प्रसिद्ध है ''नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध-भात का भोजन करियो, हमरी बात राम से कहियो''. हिंदू धर्म में मान्यता है कि सुबह-सुबह नीलकंठ के दर्शन हो जाएं तो दिन शुभ हो जाता है, लेकिन दशहरे की सुबह इसे देखे जाने का महत्व कुछ विशेष होता है. कहा जाता है दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन करने से घर में सुख-समृद्धि आती है.
शिव का स्वरूप और किसानों का मित्र
किवदंतियों की मानें तो कहा जाता है कि भगवान राम ने इस पक्षी के दर्शन करने के बाद ही रावण पर विजय प्राप्त की थी. भगवान शिव का दूसरा नाम नीलकंठ है और इसलिए इस पक्षी को उन्हीं का स्वरूप माना जाता है. आपको रामायण की कथा याद हो तो भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना भी की थी. नीलकंठ कीड़ों को खाकर फसल की रक्षा करता है और इस तरह यह किसान के साथ एक सच्चे दोस्त की तरह अपना धर्म निभाता है.
संकट में है नीलकंठ
कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश राज्यों का राज्य पक्षी होने के बावजूद आज ये प्रजाति विलुप्त होने की दिशा में है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजस्थान के बिजनौर में कुछ साल पहले एक नीलकंठ देखा गया था. पिछले साल दशहरा के दिन कुछ पक्षी पकड़ने वाले इन्हें घर-घर ले गए थे और पैसे कमाए थे. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस साल ऐसा कोई व्यक्ति भी नहीं आया.
वन विभाग के अधिकारी का कहना है कि खेतों में कीटनाशक के बढ़ते इस्तेमाल से नीलकंठ मर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस पक्षी को बचाने के लिए लोगों को जागरुक करने की कोशिश की जा रही है. वहीं कुछ विशेषज्ञ वृक्षों की कटाई को भी इस प्रजाति के खत्म होने का कारण मानते हैं. क्योंकि ये पक्षी अपना घोंसला बनाने और अंडे देने के लिए पुराने और ऊंचे पेड़ों का चुनाव करते हैं जो बढ़ते शहरीकरण के बीच धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं.
दक्षिणी राज्यों में अब भी कभी-कभी नीलकंठ दिख जाते हैं. यहां इनकी तादाद 50 पक्षी प्रति वर्ग किलोमीटर है, लेकिन लगातार संकट के साये में है. बता दें कि बिजनौर में गंगा बैराज स्वदेशी और प्रवासी पक्षियों का घर है. गंगा, पीली बांध, हरेवली झील, शेरकोट और अफजलगढ़ के हिस्से प्रवासी पक्षियों के लिए आदर्श माने जाते हैं. यहां उत्तरी शॉवेलर, पिंटेल, गडवाल, पेंटिंग स्टॉर्क, ऊनी-गर्दन वाले स्टॉर्क, क्रेन, टील और शेल्डक जैसी कई प्रवासी पक्षियों की प्रजातियां हर साल यहां आती हैं.