Expert Comment: मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार कुछ घंटों में थमने जा रहा है. इससे पहले पीएम मोदी जनजातीय गौरव दिवस और झारखंड स्थापना दिवस के मौके भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू पहुंचे. आजादी के साढ़े सात दशक बीत जाने के बाद नरेंद्र मोदी देश पहले प्रधानमंत्री हैं जो भगवान बिरसा मुंडा के गांव पहुंचे और आदिवासियों के विकास की नींव रखी. ये यात्रा महज झारखंड की नहीं है. इससे चुनावी राज्यों में भी आदिवासी वोटबैंक साधने की कोशिश है.


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भाजपा लगातर कर रही है काम
कहा जाता है कि बूंद-बूंद से घड़ा भरता है. भारतीय जनता पार्टी आदिवासियों के समग्र विकास के लिए पिछले 23 सालों से लगातार प्रयास कर रही है. देश के जिस किसी भी राज्य में उसका शासन है, वहां के वंचित और कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के विकास की योजनाएं बनाई जाती हैं. चाहे वह मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड या कोई अन्य प्रदेश ही क्यों न हो, भाजपा ने अपने शासनकाल में आदिवासियों के कल्याण के लिए योजनाएं बनाईं.


क्या हैं मध्य प्रदेश में आदिवासियों के आंकड़े
मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को मतदान होना है. 230 विधानसभा सीटों के लोग मतदान करेंगे. इसमें 47 विधानसभा सीटों पर आदिवासी ही जीत और हार का निर्णय करते हैं, जबकि 90 विधानसभा क्षेत्रों को वो प्रभावित करने की भूमिका में हैं. बीते चुनावों के परिणाम देखने से पता चलता है कि जिसने भी आदिवासी बहुल इलाकों में बढ़त लिया, सरकार उसी की बनती है. राज्य में सत्ता हासिल करने का केंद्र कुल 230 में से 82 आरक्षित सीटें हैं, जिनमें से 47 अनुसूचित जनजाति के लिए और 35 अनुसूचित जाति के लिए हैं. इसमें शहडोल, डिंडोरी, मंडला, अलीराजपुर और झाबुआ जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्र शामिल हैं. अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में भिंड, मुरैना, टीकमगढ़, रीवा और रायसेन शामिल हैं.


पिछले चुनाव में कैसा रहा प्रदर्शन
2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की 7.26 करोड़ आबादी में अनुसूचित जाति 15.6% और अनुसूचित जनजाति 21.1% हैं. 2013 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने इनमें से 59 सीटें जीतीं - 31 एसटी और 28 एससी आरक्षित सीटें, जबकि कांग्रेस ने क्रमशः 15 और चार सीटें जीतीं. 2008 के विधानसभा चुनावों में, जब कांग्रेस ने 2003 के राज्य चुनावों की तुलना में अपने प्रदर्शन में सुधार किया था, तब भाजपा ने कांग्रेस की 26 की तुलना में 54 एससी/एसटी सीटें जीती थीं. इन सीटों पर भाजपा का प्रभुत्व 2003 के विधानसभा चुनावों में शुरू हुआ, जब तय हुआ कांग्रेस के खिलाफ मजबूत सत्ता विरोधी लहर के कारण, भाजपा ने एससी/एसटी सीटों में से 67 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस ने उस वर्ष केवल पांच सीटें जीतीं.


आदिवासियों के हाथ में सत्ता की चाबी
मध्य प्रदेश में सत्ता की चाबी आदिवासी मतदाताओं के हाथों में है. यह अतिश्योक्ति नहीं, बल्कि पिछले कई चुनावों के परिणामों का विश्लेषण बताता है. बीते विधानसभा चुनाव के चुनाव परिणाम को देखें तो पता चलता है कि 2018 में मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में चुनाव हुए तो आदिवासी वोट में कमी के चलते ही भाजपा सत्ता से बाहर हो गई थी. 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के वोटों के कारण ही कांग्रेस सत्ता हासिल कर पायी थी. कांग्रेस को 47 में से 30 सीटें मिली थीं. बहरहाल देखना होगा कि 2023 के चुनावों में आदिवासी समाज किस दल को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाता है.


बैतूल पहुंचे थे पीएम मोदी
हाल ही में बैतूल में एक जनसभा के दौरान जिस प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी और आदिवासी को एक-दूसरे का पूरक बताया. भाजपा सरकार की योजनाओं से आदिवासी कल्याण की पूरी कहानी बताई, उसके बाद मध्य प्रदेश के आदिवासी भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं. मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाकों में जब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा हुई है, उन्होंने कहा  कांग्रेस दशकों तक झूठ बोलकर आदिवासी समाज के वोट बटोरती रही है. लेकिन उन्हें सड़क, बिजली, पानी, स्कूल, अस्पताल जैसी सुविधाओं से हमेशा वंचित रखा. कांग्रेस जो भी वादा करती है, उसे पूरा नहीं करती.


बैतूल के अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आदिवासी के प्रखर नेता और पूर्व स्वतंत्रता सेना भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर उनके पैतृक गांव बलियातू गए. वहां उनके परिजनों से मिले और पूरे आदिवासी समाज को प्रेरक बताया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, 'आज से विकसित भारत संकल्प यात्रा का शुभारंभ हो रहा है. इस यात्रा में सरकार मिशन मोड़ में देश के गांव-गांव जाएगी, हर गरीब, हर वंचित को सरकारी योजनाओं का लाभार्थी बनाया जाएगा.'


मुख्यधारा में लाने का जतन
मध्यप्रदेश की बात की जाए, तो यहां की आबादी में प्रत्येक पांचवां व्यक्ति आदिवासी समुदाय का है. राज्य में 21%  आबादी है इनकी. जब भी प्रभु श्रीराम का काम होता है, तो आदिवासी समाज आगे आता है. निषाद राज के वंशज ओरछा में राजाराम की भव्यता के लिए भी तैयार है. भाजपा ने हर समय इन्हे मुख्यधारा मे लाने का जतन किया है.


पीएम ने क्या ऐलान किया
अब जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजादी के साढ़े सात दशक बाद प्रधानमंत्री के तौर पर भगवान बिरसा मुंडा के गांव पहुंचे हैं तो उन्होंने धरती आबा की जन्मभूमि से प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान की शुरुआत की. इसके अलावा, उन्होंने करीब 49 करोड़ रुपये की लागत से जनजातीय कल्याण और विकास परियोजना की भी शुरुआत की. इसके साथ ही, उन्होंने देशभर में करीब 10 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय स्थापित करने का ऐलान किया है.


जनजातीय समूह के लिए परियोजना
सबसे बड़ी बात यह है कि देशभर के करीब 28 लाख कमजोर जनजातीय समूह के लोगों के विकास के लिए सरकार की ओर से करीब 24 हजार करोड़ रुपये की लागत से परियोजना की शुरुआत की जाएगी. इन सभी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए भारत सरकार के नौ मंत्रालय एक साथ मिलकर काम करेंगे. अगर झारखंड की बात करें, तो यहां पर करीब 2.5 लाख कमजोर जनजातीय समूह के लोग निवास करते हैं. सरकार की इस योजना से इस समूह के लोगों का विकास संभव हो सकेगा.


नोट- यह लेख वरिष्ठ पत्रकार सुभाष चंद्र द्वारा लिखा गया है. इसका मौलिक अधिकार सुभाष चंद्र के पास ही है. लेख में पेश किए गए आंकड़े उनकी निजी रिसर्च और जानकारी के आधार पर है.