नई दिल्‍ली: भोपाल गैस त्रासदी को 34 साल बीत चुके हैं, लेकिन यह शहर आज भी उस रात के कहर को भूल नहीं पाया है. दो और तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात को राजधानी भोपाल में जो कुछ भी हुआ  जिसने देश-दुनिया का झकझोर के रख दिया था. दिसंबर की ठंड में अपनी-अपनी रजाई में दुबके हजारों लोग कब मौत की आगोश में समाने लगे किसी को पता ही नहीं चला. इस रात को यहां के यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के प्‍लांट से जहरीली गैस का रिसाव हुआ, जो पूरे शहर में फैल गई. भोपाल गैस त्रासदी इतिहास का सबसे बड़ा औद्योगिक हादसा माना जाता है. भोपाल में हुई इस त्रासदी ने हजारों को मौत की नींद सुला दिया तो कई लोग आज भी उसका दर्द झेल रहे हैं.


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मिथाइल आइसोसाइनेट गैस
भोपाल में 3 दिसंबर की सुबह का नजारा जिसने भी देखा वह आज भी उस दिन के साए से भी डरता है. 2 दिसंबर की रात चैन से सोए लोगों में से जो बचे थे उनमें से जब कुछ सुबह जागे तो शहर का नजारा देख हैरान थे. पूरे शहर में चीख पुकार मच गई. जानिए इस भोपाल गैस त्रासदी की पूरी कहानी. 1984 की उस दरम्‍यानी रात को यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी के प्लांट नंबर 'सी' के टैंक नंबर 610 में भरी जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस में पानी भर गया, जिससे केमिकल रिएक्शन से बने दबाव को टैंक सह नहीं पाया और वो खुल गया. इससे जहरीली गैस का रिसाव होने लगा. हवा के साथ ये गैस पूरे इलाके में फैल गई और आंखें खुलने से पहले ही हजारों लोग मौत की नींद सो गए.


फैक्ट्री के पास बसे लोग बने पहला शिकार
भोपाल के लोग ऐसे किसी भी हादसे के लिए तैयार नहीं थे. इस हादसे के दौरान कारखाने का अलार्म सिस्टम भी घंटों तक बेअसर रहा था. इससे लोगों तक समय रहते चेतावनी नहीं पहुंच सकी. इस हादसे का सबसे बड़ा असर रहा कारखाने के आस-पास बसी झुग्गियों के लोगों पर. कारखाने के पास बसी झुग्गियों में रह रहे मजदूर इस जहरीली गैस के पहले शिकार बने थे. फैक्टरी के पास होने के कारण उन लोगों को मौत की नींद सोते देर नहीं लगी. हादसे के बाद हुई जांच में ये बात सामने आई थी कि लोगों को मौत की नींद सुलाने में यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से निकली विषैली गैस को औसत तीन मिनट लगे.


अस्पतालों में बढ़ने लगी मरीजों की संख्या
सुबह होने पर बड़ी संख्या में लोग आंखों में और सीने में जलन की परेशानी को लेकर अस्पताल पहुंचने लगे. देखते ही देखते संख्या इतनी हो गई कि अस्पताल में जगह नहीं बची. इसकी वजह की पड़ताल करने पर यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में हुए रिसाव के बारे में पता चला. औद्योगिक दुनिया के इस अटैक में मरने वालों की संख्या कितनी थी, इसे लेकर अब तक सही आंकड़े सामने नहीं आए हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दिन करीब 3000 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन कुछ के मुताबिक इस त्रासदी ने 8 हजार से भी अधिक लोगों को एक सप्ताह के भीतर ही मौत की नींद सुला दिया था.


लाखों लोग हुए प्रभावित
बता दें यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में हुए रिसाव का असर आज भी भोपाल के लोगों में देखने को मिलता है. सरकार के एक शपथ पत्र में माना गया था कि भोपाल के लगभग 5 लाख 20 हजार लोग इस जहरीली गैस से सीधे रूप से प्रभावित हुए थे. इसमें 2,00,000 बच्‍चे थे, जिनकी उम्र 15 साल से कम थी और 3,000 गर्भवती महिलाएं थीं. आंशिक रूप से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या लगभग 38,478 थी. 3900 तो बुरी तरह प्रभावित और पूरी तरह अपंगता के शिकार हो गए थे.


2014 में हुई आरोपी की मौत
हादसे का ज़िम्मेदार माना जाता रहा वॉरेन एंडरसन तब यूनियन कार्बाइड का प्रमुख था. उसे हादसे के बाद ग़िरफ़्तार भी किया गया था, लेकिन मामूली जुर्माना अदा करने के कुछ ही घंटों के बाद उसे छोड़ दिया गया था. इसके बाद से भारत सरकार ने उसे अमेरिका से प्रत्यर्पित करने की काफ़ी कोशिशें कीं, लेकिन क़ामयाबी नहीं मिल पाई और आख़िरकार 92 साल की उम्र में एंडरसन की मौत हो गई, और तो और इतने बड़े हादसे को अंजाम देने वाली कम्पनी यूनियन कार्बाइड के ख़िलाफ अब तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई.