ये 11 घराने तय करते हैं छत्तीसगढ़ की राजनीति, इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमता है सियासत का पहिया
कुछ घराने ऐसे हैं, जिन्होंने विरासत में मिली सियासत को बखूबी संभाला और आगे बढ़ निकले, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिनकी मुट्ठी से जनता के बीच बनी लोकप्रियता रेत की तरह फिसलती जा रही है.
रायपुर: यूं तो भारत की आजादी के साथ ही यहां सारे राज घराने आम हो गए. लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू होते ही राज घराने से जुड़े लोगों को सत्ता के करीब रहने के लिए जनता के सामने हाथ जोड़ने पड़े. आजादी के इतने सालों बाद भी छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक दिलचस्प बात देखने को मिलती है. यहां की राजनीति में आज भी राजपरिवारों का बोलबाला दिखता है. नए राज्य में भी प्रमुख दलों की सियासत के केंद्र में राजपरिवार ही हैं. राजपरिवारों के अलावा यहां आजादी के बाद राजनीतिक घराना भी सक्रिय हैं. राजनीतिक घराना शब्द इसलिए प्रयोग किया जा रहा है क्योंकि एक ही परिवार की कई पीढ़ियां राजनीति में सक्रिय हैं.
कुछ घराने ऐसे हैं, जिन्होंने विरासत में मिली सियासत को बखूबी संभाला और आगे बढ़ निकले, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिनकी मुट्ठी से जनता के बीच बनी लोकप्रियता रेत की तरह फिसलती जा रही है. हालांकि इसे संभालने के लिए वे आज भी लगे हुए हैं. सरगुजा में सिंहदेव परिवार, कवर्धा में सिंह परिवार, बस्तर में कर्मा और कश्यप परिवार, रायपुर में शुक्ल परिवार, दुर्ग में वोरा परिवार तो बिलासपुर में अग्रवाल परिवार इनमें प्रमुख हैं.
जानिए 11 प्रमुख राज परिवारों और राजनीतिक परिवारों के बारे में-:
1. सिंहदेव परिवार
चंडीकेश्वर शरण सिंहदेव 1952 में पहली बार विधायक बने थे. बाद में उनकी पत्नी देवेंद्र कुमारी विधायक और मंत्री बनीं. यूएस सिंहदेव भी सक्रिय रहे. अंबिकापुर सीट सामान्य होने के बाद लगातार दो बार से टीएस सिंहदेव विधायक हैं. फिलहाल नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. सिंहदेव की इसबार भी अम्बिकापुर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है. सिंहदेव की बहन हिमाचल प्रदेश में विधायक हैं.
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2. शुक्ल परिवार
राजनीति में शुक्ल परिवार का बड़ा नाम रहा है. पं. रविशंकर शुक्ल मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे. इसके बाद उनके बड़े बेटे पं. श्यामाचरण शुक्ल ने तीन बार मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली, जबकि छोटे बेटे पं. विद्याचरण शुक्ल केंद्र में लगातार मंत्री रहे. श्यामाचरण शुक्ल के बेटे अमितेष राजिम से विधायक और पंचायत मंत्री रहे. अभी भी इसी विधानसभा से चुनाव लड़ने की पूरी संभावना है. क्षेत्र में सक्रिय हैं.
3. वोरा परिवार
मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे मोतीलाल वोरा का परिवार भी छत्तीसगढ़ के अहम परिवारों में से एक है. वोरा को गांधी परिवार का करीबी माना जाता है. वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में लंबे समय तक कोषाध्यक्ष रहे. उनके बेटे अरूण वोरा दुर्ग शहर से विधायक हैं. इस विधानसभा चुनाव में भी यहीं से ताल ठोकने की तैयारी में है. तीसरी पीढ़ी भी युवा कांग्रेस से जुड़ गई है.
3. कर्मा परिवार
बस्तर टाइगर के नाम से मशहूर स्व. महेंद्र कर्मा के बाद उनकी पत्नी देवती कर्मा विधायक हैं. इसबार भी देवती दंतेवाड़ा से कांग्रेस की प्रत्याशी हैं. बड़े बेटे दीपक नगर पंचायत अध्यक्ष हैं, जबकि छोटे बेटे छविंद्र मां को ही चुनौती देने के लिए मैदान में हैं. झीरम हमले में शहादत से पहले कर्मा बस्तर में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में थे. वे वाम दल से विधानसभा पहुंचे, फिर कांग्रेस में शामिल हो गए.
4. जोगी परिवार
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कलेक्टरी छोड़ राजनीति में आए. जब नया राज्य बना तब पहले मुख्यमंत्री बने. अब अपनी अलग पार्टी चला रहे हैं. उनकी पत्नी डॉ. रेणु जोगी कोटा से विधायक हैं. बेटा मरवाही से विधायक है. अब बहू ऋचा जोगी ने बसपा की सदस्यता ले ली है. पूरा परिवार राजनीति में सक्रिय है. दिलचस्प ये भी है कि एक ही परिवार में तीन पार्टियों के नेता है.
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5. कश्यप परिवार
दादा के नाम से प्रसिद्ध स्व. बलिराम कश्यप ने भाजपा की राजनीति को भोपाल से दिल्ली तक नेतृत्व दिया. बस्तर में बीजेपी को स्थापित करने वाला नेता उन्हें माना जाता है. उनके बेटे केदार कश्यप नारायणपुर से विधायक और मंत्री हैं तो बड़े बेटे दिनेश कश्यप सांसद हैं. इसबार भी केदार कश्यप नारायणपुर से बीजेपी प्रत्याशी हैं.
6. जूदेव परिवार
आदिवासियों के पैर धोकर घर वापसी कराने के आंदोलन के लिए देशभर में मशहूर हुए दिलीप सिंह जूदेव का परिवार रायगढ़-जशपुर इलाके में अच्छा-खासा प्रभाव रखता है. जूदेव लोकसभा और राज्यसभा में सांसद रहे. उनके बेटे विधायक हैं. इस बार बहू संयोगिता उम्मीदवार हैं. रणविजय सिंह जूदेव राज्यसभा सदस्य हैं.
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7. अग्रवाल परिवार
लखीराम अग्रवाल को छत्तीसगढ़ भाजपा का पितृ पुरुष कहा जाता है. वे ऐसे समय में भाजपा से जुड़े, जब झंडा पकड़ने वाले कम ही थे. उनके बाद अब उनके बेटे अमर अग्रवाल राजनीति में सक्रिय हैं. तीन बार से मंत्री हैं. अमर बिलासपुर के साथ-साथ आसपास की सीटों और अपने पैतृक क्षेत्र खरसिया में भी प्रभाव रखते हैं. इसबार भी वे बिलासपुर से बीजेपी उम्मीदवार हैं.
9. चौबे परिवार
पूर्व नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे भी राजनीतिक परिवार से हैं. चौबे के पिता देवीप्रसाद चौबे, उनकी मां कुमारी चौबे और बड़े भाई प्रदीप चौबे भी विधायक रहें. रविंद्र चौबे मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मंत्री रहें. नेता प्रतिपक्ष रहें. अभी भी सक्रिय हैं.
10. सिंह परिवार
राज्य के लगातार तीन बार से मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह राजनीतिक परिवार से नहीं आते. लेकिन अब राजनीतिक परिवार में हैं. सांसद, केंद्रीय राज्यमंत्री, भाजपा अध्यक्ष और तीन बार के मुख्यमंत्री हैं. और इसबार भी राजनांदगांव से बीजेपी प्रत्याशी हैं. उनके बेटे अभिषेक सिंह राजनांदगांव से सांसद हैं. डॉ. रमन व उनके परिवार का राजनांदगांव व कवर्धा की राजनीति में सीधा प्रभाव है.
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11. महंत परिवार
पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. चरणदास महंत फिलहाल कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के सदस्य और सीएम पद के दावेदार हैं. इनके पिता बिसाहूदास महंत मध्यप्रदेश में मंत्री रहें.
इन परिवारों का भी दबदबा
सतनामी समाज के धर्मगुरु बाबा अगमदास और उनकी पत्नी मिनीमाता सांसद रहीं. अगमदास के बेटे विजय गुरु मंत्री रहें. उनके बेटे रुद्र गुरु विधायक रहें. अभी भी सक्रिय हैं. इसबार भी विधानसभा चुनाव लड़ने की पूरी संभावना है.
- राजनीति के चाणक्य के नाम से मशहूर वासुदेव चंद्राकर का परिवार ही नहीं, बल्कि शिष्य भी अच्छे मुकाम पर हैं. उनके परिवार से प्रतिमा चंद्राकर विधायक रही हैं.
- अरविंद नेताम इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री रहें. पत्नी छबीला भी सांसद रहीं. भाई शिव नेताम दिग्विजय सरकार में मंत्री रहें. बेटी डॉक्टर प्रीति नेताम राजनीति में आई लेकिन असफल रहीं.
- स्वर्गीय मनकुराम सोढ़ी मंत्री, फिर सांसद रहें. बेटे शंकर सोढ़ी पहले दिग्विजय फिर अजीत जोगी सरकार में मंत्री रहें. 2003 में शंकर का टिकट कटा और सोढ़ी परिवार नेपथ्य में चला गया.
- खैरागढ़ से विधायक और राजनांदगांव से सांसद रहे देवव्रत सिंह की दादी पद्मावती देवी मंत्री रहीं. पिता रविन्द्र बहादुर और मां रश्मि सिंह विधायक रहीं. कांग्रेस छोड़ चुके देवव्रत इसबार खैरागढ़ से जेसीसीजे के प्रत्याशी हैं.
- बिन्द्रानवागढ़ से बलराम पुजारी विधायक थे. उनके बेटे डमरूधर पुजारी भी विधायक बनें. इसबार भी वे भाजपा के उम्मीदवार हैं.
- पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ चरणदास महंत फिलहाल कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के सदस्य और सीएम पद के दावेदार हैं. इनके पिता बिसाहूदास महंत मध्य्प्रदेश में मंत्री रहें.
इसबार भी कई राजनीतिक और राज परिवारों की विरासत संभालने वालों को पार्टियों ने टिकट दिया है. हालांकि परिवाद से राजनीतिक दलों का भी इनकार नहीं है. अपने-अपने तर्क हैं. वहीं जानकर मानते हैं कि चाहे लाख योग्यता को ही सफल होने की बात राजनीतिक दल बताएं, लेकिन धनबल, राजनीतिक बल और परिवार बल से इनकार नहीं किया जा सकता.