रुपेश गुप्ता/रायपुर: असम से आज यानी शनिवार को छत्तीसगढ़ में चार मादा भैंसा लाई जाएगी. इसे लेकर वन विभाग ने अपनी टीम असम भेजी है. बता दें कि भैसों को लाने का रास्ता छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से साफ हुआ है. इन्हें गरियाबंद के बार नवापारा अभ्यारण्य में रखा जाएगा. असम के वन भैंसे के साथ वंश वृद्धि हेतु 10 साल का परियोजनान बनाई गई है. मौजूदा समय में वन भैंसा शुद्ध नस्ल का छत्तीसगढ़ और असम में पाया जाते है. छत्तीसगढ़ में इनकी संख्या 50 है. जिसमें से केवल एक नर वन भैंसा है. जिसकी उम्र करीब 20 साल के आसपास है.


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बता दें कि असम से वन भैंसा  लाकर छत्तीसगढ़ के भैंसों के साथ प्रजनन कराने के खिलाफ नितिन सिंघवी ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी. जिसमें दोनों वन भैसों की जेनेटिक विविधता के कारण हाईकोर्ट ने वनभैंसा लाने पर रोक लगाई थी. लेकिन हाईकोर्ट ने अपना स्टे हटा दिया है. जिसके बाद भैंसों का आने का रास्ता साफ हो गया है. गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु भी वनभैंसा है.


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जानिए क्यों लगी थी याचिका
दरसअल याचिका में कहा गया था कि छत्तीसगढ़ के वन भैंसों के शुद्धतम जीन पूल मिक्स होने से बीमार बच्चे पैदा होंगे. छत्तीसगढ़ के वन भैंसों का जीन दूषित होने का खतरा है. इसके साथ ही असम के वन भैंसों का यहां आजीवन कैद रखने पर उन पर भी खतरा मंडराएगा. इस मामले में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूड की रिपोर्ट के साथ असम औऱ छत्तीसगढ़ की भैंसों में असमानता है कहा गया था. जिसे लेकर पर्यावरणविद् नितिन सिंघवी ने होईकोर्ट में याचिका लगाई थी. जिसके बाद हाईकोर्ट ने स्टे लगा दिया था. लेकिन अब कोर्ट ने इस पर लगी रोक को हटा दिया है. 


बता दें कि भारत सरकार ने पूर्व में वन भैंसा ट्रांसलोकेट करने की अनुमति का पालन किया जाएगा. भारत सरकार ने असम से वन भैंसा ट्रांसलोकेट कर छत्तीसगढ़ के सूटेबल हैबिटेट में छोड़े जाने के आदेश दिए हैं. उन्हें आजीवन बंधक बनाने से मना किया है. यानी असम से लाए जाने वाले वन भैंसों को 45 दिन के बाद बाड़े में रखकर वापस जंगल में छोड़ने को कहा है.


दरअसल छत्तीगढ़ वन विभाग ने अप्रैल 2020 से असम के मानस टाइगर रिजर्व से एक नर और एक मादा सबएडल्ट वन भैंसा पकड़कर छत्तीसगढ़ के बारनवापारा में रखा है. जबकि भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ शासन ने इन्हें जंगल में छोड़े जाने की शर्त के साथ असम से लाने की अनुमति दी थी.