अविनाश प्रसाद/रायपुरः  छत्तीसगढ़ के विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे में आज मुरिया दरबार की परंपरा निभाई गई. इस परंपरा के तहत सूबे के सीएम भूपेश बघेल जगदलपुर पहुंचे. एयरपोर्ट से सीएम बघेल सीधे मां दंतेश्वरी के दरबार पहुंचे और वहां पूजा अर्चना की. सीएम ने मां दंतेश्वरी से प्रदेश की सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना की. इसके बाद सीएम जगदलपुर स्थित सिरहासार भवन पहुंचे और वहां बस्तर दशहरे के मुरिया दरबार कार्यक्रम का आयोजन किया गया. 


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क्या है मुरिया दरबार परंपरा
बस्तर दशहरा अपनी खास परंपरा के लिए विश्व प्रसिद्ध है. 75 दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में मुरिया दरबार की परंपरा भी शामिल होती है. इस परंपरा के तहत बस्तर के राजा  मौजूद रहते थे और वह ग्रामीणों की समस्याएं सुनकर उनका निराकरण करते थे. समय के साथ राजा महाराजाओं का समय खत्म हुआ और परंपराएं भी बदली. अब ग्रामीणों की समस्याएं शासन प्रशासन के लोग सुनते हैं. मुख्यमंत्री भी कार्यक्रम में शामिल हुए और बस्तर वासियों को करोड़ों रुपए के विकास कार्यों की सौगात भी दी.  


सीएम बघेल ने सिरहासार भवन के नजदीक स्थित शहीद स्मारक परिसर में मुरिया विद्रोह के जननायक झाड़ा सिरहा की आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया. इसके साथ ही सीएम ने बस्तर जिले में 89 विकास कार्यों का लोकार्पण और शिलान्यास किया. इन विकास कार्यों की लागत करीब 173 करोड़ 28 लाख रुपए है. सीएम बघेल ने जहां 77 करोड़ रुपए के विकास कार्यों का लोकार्पण किया, वहीं 95 करोड़ के विकास कार्यों का भूमिपूजन किया. 


कौन थे झाड़ा सिरहा
शहीद झाड़ा सिरहा जड़ी बूटियों के जानकार, कुशल नेतृत्वकर्ता और प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे. उनके इन्हीं गुणों के कारण उन्हें 1876 में हुए मुरिया विद्रोह में नेतृत्व किया. विद्रोह में बस्तर की आदिम संस्कृति की रक्षा, जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा, सामाजिक रीति-नीतियों के संरक्षण और अंग्रेजों से मिले सामंतवादियों द्वारा किये जा रहे शोषण के विरूद्ध सभी आदिवासियों ने झाड़ा सिरहा के नेतृत्व में आवाज उठाई थी. अपनी कुशल संगठन क्षमता और रणनीति के साथ पूरे दमखम से लड़ते हुए अंग्रेजी फौज के हाथों झाड़ा सिरहा 1876 में वीरगति को प्राप्त हुए थे.