रायपुर। कहते हैं कोई काम चुनौतियों से भरा हो, लेकिन जब उसमें सफलता मिलती है तो उसका मजा ही अलग होता है. क्योंकि यह सफलता विश्वास और भरोसे पर मिलती है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. जिन्हें प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले विरासत में वनवास और हर मोर्चे पर परेशानियों से जूझती हुई कांग्रेस पार्टी की कमान मिली थी. लेकिन भूपेश बघेल ने हर चुनौती को स्वीकार किया और हर मोर्चे पर सफलता पाई. छत्तीसगढ़ में जब 2018 विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस ने इतिहास रच दिया था, जिसके सूत्रधार भूपेश बघेल थे. आज हम आपको मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उसी सफलता के बारे में बताने जा रहे हैं. जो ''गढ़बो नवा छत्तीसगढ़'' के साथ छत्तीसगढ़ को आगे ले जा रहे हैं. 


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किसान पुत्र बघेल ने खत्म किया था छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का वनवास 
23 अगस्त को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का जन्मदिन है. जिन्हें न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश में कांग्रेस के स्तंभ के तौर पर जाना जाता है. लेकिन उनका सियासी सफर चुनौतियों से भरा रहा है. जिनके कंधों पर एक साथ कई जिम्मेदारियां हैं. आज के वक्त में कहा जाता है कि राजनीति में वही लोग सफल होते हैं जिनके पास नाम, रुतबा और पैसा होता है. लेकिन सीएम भूपेश बघेल ने इस बात को गलत साबित किया. क्योंकि उनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ था और उसी जमीन से जुड़कर वह आगे बढ़े  जो आज छत्तीसगढ़ के सीएम और किसानों के मसीहा के तौर पर जाने जाते हैं. जिन्होंने छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार बनवाई. 



भूपेश बघेल का संघर्ष जिसने खत्म किया कांग्रेस का वनवास 
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी 2003 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही सत्ता से बाहर थी. ऐसे में पार्टी 2013 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी थी, लेकिन 25 मई 2013 छत्तीसगढ़ के सियासी इतिहास का सबसे काला दिन माना जाता है. क्योंकि इस दिन कांग्रेस ने अपने कई दिग्गज नेताओं को खो दिया. जिसे झीरम घाटी कांड के नाम से जाना जाता है. नक्सलियों ने छुपकर कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला किया, इस हमले में प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल, नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा, पूर्व सीएम और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल जैसे बड़े नेताओं की मौत हो गई. इस घटना के बाद एक बार कांग्रेस को खड़ा करना आसान नहीं था. तब कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यह जिम्मेदारी भूपेश बघेल को सौंपी, जिनके लिए यह चुनौती किसी पहाड़ तोड़ने से कम नहीं थी. 


2014 में संभाली कमान 2018 में दिलाई सत्ता 
झीरम घाटी हमले के बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा, ऐसे में विरासत में मिला वनवास और बिखरी हुई पार्टी को जोड़ने के लिए कांग्रेस ने 2014 में भूपेश बघेल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. लेकिन 15 साल से सत्ता में रही बीजेपी की सरकार को हटाकर कांग्रेस का परचम लहराना आसान नहीं था. लेकिन भूपेश बघेल ने इस चुनौती को स्वीकार किया और साथ ही उन्होंने कांग्रेस आलाकमान को यह भरोसा दिलाया कि 2018 का चुनाव पार्टी के पक्ष में होगा और जब नतीजे आए तो उनका वादा पूरा हो चुका था. 



बिखरी पार्टी को एक किया, विरोधियों को पस्त किया 
भूपेश बघेल ने अध्यक्ष बनते ही सबसे पहले कांग्रेस के संगठन को फिर से जोड़ने का काम किया. भूपेश बघेल ने जमीन से जुड़ने के लिए खुद जमीन पर चलकर लोगों के दिलों को जीतना मुनासिफ समझा और सीधा जनता के बीच पहुंचने लगे. भूपेश बघेल ने कई किलोमीटर का सफर पैदल ही तय कर लिया. इस सफर में उन्होंने किसान मजदूर और गरीबों का सबसे ज्यादा ध्यान रखा, उनकी जरूरतों को भी समझा, जबकि पार्टी में चल रहे असंतोष को भी उन्होंने दूर करने का काम क्योंकि कांग्रेस के पूर्व सीएम अजीत जोगी और कांग्रेस के अन्य नेताओं के बीच मनमुटाव चरम पर था. ऐसे में कांग्रेस ने अजीत जोगी और उनके बेटे अमित जोगी को पार्टी से बर्खास्त किया. भूपेश बघेल ने आगे बढ़कर पार्टी का नेतृत्व किया और छत्तीसगढ़ में फिर से कांग्रेस को मजबूत बनाया. नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस का बिखरा हुआ संगठन एक हो गया और पार्टी ने 2018 का चुनाव पूरी मजबूती से लड़ा. 


2018 में तीन चुनौतियों पर सीएम बघेल ने एक साथ पाई विजय 
2018 के विधानसभा चुनाव में भी भूपेश बघेल ने एक साथ तीन चुनौतियों का सामना किया. पहला वह पाटन विधानसभा सीट से मैदान में उतरे जहां उनका मुकाबला अपने ही भतीजे विजय बघेल से था. क्योंकि बीजेपी ने उन्हें घर में ही घेरने की प्लानिंग बनाई थी. दूसरा प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते उन्हें पूरे प्रदेश में प्रचार करना था, जबकि कांग्रेस से अलग होकर अजीत जोगी ने अपनी पार्टी बनाई और बीएसपी के साथ चुनाव में उतरे. ऐसे में छत्तीसगढ़ में मुकाबला त्रिकोणीय हो गया. लेकिन बघेल ने इन तीनों चुनौतियों पर विजय पाई, उन्होंने पाटन सीट पर अपने भतीजे को हराकर जोरदार जीत दर्ज की थी. तो पूरे छत्तीसगढ़ में धुआंधार प्रचार किया, जबकि जोगी और बीएसपी के गठबंधन की हर प्लानिंग को भी फेल कर दिया. 



कांग्रेस ने बघेल को बनाया मुख्यमंत्री 
2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जोरदार जीत मिली और पार्टी ने अब तक सबसे अच्छा प्रदर्शन किया. कांग्रेस ने प्रदेश की 90 सीटों में से 68 सीटों पर जीत दर्ज की. कांग्रेस की इस जीत के सबसे बड़े सूत्रधार रहे भूपेश बघेल को राज्य के नए मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई. आखिरकार कांग्रेस के 15 साल का इतिहास बदला और कांग्रेस के सीएम के तौर पर भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. खास बात यह है कि सीएम बने के बाद भी बघेल लगातार छत्तीसगढ़ को आगे बढ़ाने में जुटे हैं. सीएम बनने से लेकर अब तक के सफर में उन्होंने जमीन जुड़ी कई योजनाए चलाई है, जिनमें गोधन न्याय योजना सबसे सराहनीय है, जिसकी तारीफ हाल ही में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की थी. इसके अलावा नरवा, गरुवा, घुरुवा और बारी योजनाएं प्रमुख हैं जो छत्तीसगढ़ के लोगों के काम में आ रही हैं. 


80 के दशक में शुरू हुई सीएम बघेल की सियासी पारी
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का जन्म अविभाजित मध्य प्रदेश के दुर्ग जिले की पाटन तहसील में 23 अगस्त 1961 को हुआ था. उनके पिता का नाम विजय बघेल और मां का नाम बिंदेश्वरी देवी है. किसान परिवार में जन्में भूपेश बघेल बचपन से ही जुझारू थे और उनका झुकाव राजनीति की तरफ था. बघेल कांग्रेस इतना प्रभावित थे उन्होंने राजनीति में जाकर लोगों की सेवा करने का फैसला किया और 80 के दशक में यूथ कांग्रेस के साथ अपनी सियासी पारी की शुरुआत कर दी. धीरे-धीरे बघेल लोगों की आवाज उठाने लगे और कांग्रेस में एक संघर्षशील कार्यकर्ता के तौर पर उनकी पहचान बनने लगी. जिसके बाद उन्हें 1990 से 94 तक वह जिला युवक कांग्रेस कमेटी दुर्ग (ग्रामीण) के अध्यक्ष रहे और 1993 से 2001 तक मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड के निदेशक रहे.



ऐसा रहा अब तक का राजनीतिक सफर 
भूपेश बघेल 1994 में मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस उपाध्यक्ष बने थे. जबकि 32 साल की उम्र में वे अविभाजित मध्यप्रदेश में पहली बार 1993 में दुर्ग जिले की पाटन सीट से विधायक बने थे. 2003 में तीसरी बार विधायक बने, 2003 से 2008 के बीच वे विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष भी रहे. 1998 में दूसरी पाटन से चुनाव जीते और तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार में परिवहन मंत्री और परिवहन निगम के अध्यक्ष बनाए गए. 2013 में चौथी बार और 2018 में पांचवीं बार पाटन से विधायक बने और राज्य के मुखिया के तौर पर कमान संभाली.