Shivkumar Deepak Passes Away: सोलो एक्टिंग से अपने करियर की शुरूआत करने वाले फेमस कलाकार शिवकुमार दीपक का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया. वे छत्तीसगढ़ी फिल्मों के बेहतरीन कलाकारों में से एक थे, उन्होंने हिंदी फिल्मों के साथ-साथ 70 से ज्यादा फिल्मों में एक्टिंग की थी. 1958 में उनका पहला सोलो एक्ट था जिसमें उन्होंने अखिल भारतीय युवा महोत्सव में छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर दिया था. यहां उन्हें अपनी काबिलियत पर पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से सम्मानित होने का मौका मिला और पीएम नेहरू ने उन्हें दीपक की उपाधि दी थी. जिसके बाद से उन्हें साहू की जगह शिवकुमार दीपक के नाम जाना जाने लगा था. 


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शिवकुमार दीपक की कला यात्रा की शुरूआत अच्छी होने के बाद वे लगातार इसमें उपलब्धियां हासिल करते रहे. उनके निधन के बाद कला जगत में शोक की लहर दौड़ गई. छत्तीसगढ़ समेत देशभर में उनके फैन थे. 


दुर्ग के पोटिया में हुआ था जन्म


अभिनय से जुड़े शिवकुमार दीपक को छत्तीसगढ़ सरकार से कई सम्मान भी मिले हैं. शिवकुमार दीपक का जन्म 1933 में दुर्ग के पोटिया में हुआ था इसके बाद बचपन से ही दीपक रामलीला कृष्ण लीला जैसे कार्यक्रमों में अपनी कला का अभिनय बिखरते रहे शिवकुमार दीपक ने छत्तीसगढ़ के अलावा भोजपुरी, हिंदी फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया है. इन्हें 50 छत्तीसगढ़ी फिल्म, 2 हिंदी फिल्म, 2 भोजपुरी फिल्म और 1 मालवी फिल्म में काम करने का अवसर मिला. बंबई के प्रोड्युसर डायरेक्टर देवेंद्र खंडेलवाल की सीरियल 'हकीकत', 'घराना' में बंबई में रहकर शूटिंग किया था.


आज जीवन के अंतिम पड़ाव में भी वे हिंदी तथा छत्तीसगढ़ी फिल्मों में कार्यरत थे. साथ ही चंदैनी गोंदा लोक कला मंच में भी उन्होंने काम किया हुआ है. कला के क्षेत्र में सेवा के तत्पश्चात उन्हें अनेकों साहित्य संस्था, सामाजिक संस्था, लोक कला मंच तथा शासन द्वारा राज्य तथा राज्य के बाहर अन्य स्थानों में सम्मानित किया जा चुका है. 


दीपक ने इन फिल्मों में निभाया मुख्य किरदार 


सन् 1965 में छत्तीसगढ़ की पहली फिल्म 'कहि देबे संदेश' बनी. जिसमें शिवकुमार दीपक को मुख्य अभिनेता का रोल करने का अवसर मिला, साथ ही दूसरी छत्तीसगढ़ी फिल्म 'घर द्वार' में भी मैन रोल निभाने के लिए बुलाया गया. इसी दौरान दुर्ग के दाउ रामचंद्र देशमुख की लोक कला मंच 'चंदैनी गोंदा' में उन्हें हास्य भूमिका निभाने का अवसर दिया गया. चंदैनी गोंदा बाद दुर्ग के महासिंग चंद्राकर की 'सोन बिहना' लोक कला में भी जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. जहां इन्होंने नाटक लोरिक चंदा हरेली में भाग लिया था. इस तरह अनेक लोक कला मंच में अपना हुनर दिखाया.


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