Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में  ऐतिहासिक और पौराणिक नगरी बारसूर में भगवान भोलेनाथ का एक प्राचीन मंदिर है, इस मंदिर को बत्तीशा मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर की खास बात यह है कि इस मंदिर में दो गर्भगृह है और दोनों गर्भगृहों में शिव जी के दो शिवालय स्थित है साथ ही दोनों गर्भगृहों के सामने नंदी की मूर्तियां विराजमान है, इस मंदिर को लेकर कई तरह की मान्यता है. आइए जानते हैं इसके इतिहास के बारे में. 


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ध्वस्त हो गई
बारसूर में छिंदक नागवंशी शासनकाल के बहुत से मंदिर और तालाबें है ऐसा कहा जाता है की पौराणिक नगरी बारसूर में 147 मंदिर और 147 तालाबें हुआ करती थी लेकिन आधी मंदिर खंडहरों में तब्दील होती गई और तालाबें ध्वस्त होती चली गई. 


क्या है इतिहास 
बत्तीश खंभों से निर्मित होने की वजह से इस मंदिर को बत्तीशा मंदिर कहा जाता है, इस मंदिर की खास बात यह है कि इस मंदिर में दो गर्भगृह है और दोनों गर्भगृहों में शिव जी के दो शिवालय स्थित है साथ ही दोनों गर्भगृहों के सामने नंदी की मूर्तियां विराजमान है, इन दोनों नदियों का मुख शिवालय की ओर है.


यहां के ग्रामीण और कई स्थानीय जानकार बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी के समय छिंदक नागवंशी राजाओं के द्वारा करवाया गया था, मंदिर में स्थित दोनों शिवालयों के अलग - अलग नाम है यह दोनों शिवालय सोमेश्वर महादेव और गंगाधरेश्वर महादेव के नाम से शिलालेख में दर्ज है. मंदिर के पूरे 32 खंभों में 11 वीं शताब्दी के शिल्पकारों ने बहुत ही सुंदर तरीके से बारीक नक्काशी (नाग के आकर की आकृति) की है.


ऐसा कहा जाता है कि दोनों गर्भगृहों में स्थित शिवालयों की दोनों जलहरियां चारों दिशाओं में घुमाई जा सकती हैं, शिवालयों के इन जलहरियों को एक विशेष पूजा और अनुष्ठान के दिन घुमाया जाता है. इस मंदिर को लेकर ये कहा जाता है कि यहां दर्शन करने वाले भक्त की हर मान्यता पूरी होती है. 


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