रुपेश गुप्ता/रायपुर: छत्तीसगढ़ में मानसून की शुरुआत के बाद निर्धारित तिथि पर पूरे राज्य में 'रोका-छेका' का आयोजन किया जाएगा. रोका-छेका छत्तीसगढ़ की एक प्राचीन कृषि परंपरा है, जिसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर पिछले तीन वर्षों से एक अभियान के रूप में आयोजित किया जा रहा है. गांवों में पहलिया (चरवाहा) को प्रोत्साहित करने और व्यवस्थित करने के संबंध में 20 जून तक ग्राम स्तर पर बैठकें आयोजित करने के निर्देश दिए गए हैं.


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बारिश की स्थिति को देखते हुए होगा तिथि का निर्धारण 
आगामी फसल बुआई के पूर्व खुले में चराई करने वाले पशुओं से फसलों को बचाने के लिए इस वर्ष भी ‘‘रोका-छेका’’ कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. सभी कलेक्टरों को प्रदेश में बारिश शुरू होने पर पूरे प्रदेश में एक साथ रोका-छेका कार्यक्रम आयोजित करने के निर्देश दिए गए हैं. रोका-छेका की तिथि का निर्धारण बारिश की स्थिति को देखते हुए विभिन्न जिलों के समन्वय से की जाएगी. 


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गौरतलब है कि रोका-छेका के माध्यम से किसान और पशुपालक अपने पशुओं को खुले में चराई के लिए नहीं छोड़ने का संकल्प लेते हैं, ताकि फसलों को नुकसान न पहुंचे. पशुओं को घरों, बाड़ों और गौठानों में रखा जाता है और उनके चारे-पानी का प्रबंध भी किया जाता है. गांवों में गौठानों के बनने से रोका-छेका का काम अब और भी ज्यादा आसान हो गया है. गौठानों में पशुओं की देखभाल और उनके चारे-पानी की प्रबंध की चिन्ता अब किसानों और पशुपालकों को नहीं है क्‍योंकि गौठानों में इसका प्रबंध पहले ही किया गया है.   


ग्राम स्तर पर बैठकें आयोजित करने के दिए गए हैं निर्देश   
कलेक्टरों और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को रोका-छेका कार्यक्रम के आयोजन के संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश कृषि उत्पादन आयुक्त द्वारा जारी किए गए हैं. प्रदेश के सभी कलेक्टरों और जिला पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को छत्तीसगढ़ की रोका-छेका प्रथा के अनुरूप गौठानों में पशुओं के प्रबंधन व रख-रखाव की उचित व्यवस्था करने, पशुपालकों और किसानों को अपने पशुओं को घरों में बांधकर रखने के लिए प्रोत्साहित करने तथा गांवों में पहटिया (चरवाहा) की व्यवस्था करने के संबंध में 20 जून तक ग्राम स्तर पर बैठकें आयोजित करने के निर्देश दिए गए हैं.  


फसल को चराई से बचाने के लिए दिए गए ये निर्देश  
‘‘रोका-छेका’’ होने से कृषक शीघ्र बुआई कार्य संपादित कर पाते हैं. साथ ही दूसरी फसल लेने के लिए प्रेरित होते हैं. कलेक्टरों और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों से कहा गया है कि 20 जून तक ग्राम स्तर पर ग्राम सरपंच, पंच, जनप्रतिनिधि तथा ग्रामीणजन की बैठक आयोजित कर पशुओं के नियंत्रण से फसल बचाव का निर्णय ग्राम सरपंच, पंच, जनप्रतिनिधियों तथा ग्रामीणों द्वारा लिया जाए. फसल को चराई से बचाने हेतु पशुओं को गौठान में नियमित रूप से लाये जाने के संबंध में प्रत्येक गौठान ग्राम में मुनादी करायी जाये.


निर्देशों में यह भी कहा गया है कि ‘‘रोका-छेका’’ प्रथा अंतर्गत गौठानों में पशुओं के प्रबंधन व रखरखाव की उचित व्यवस्था हेतु गौठान प्रबंधन समिति की बैठक आयोजित की जाए. ऐसे गौठान जो सकिय परिलक्षित नहीं हो रहे है, वहां आवश्यकतानुसार जिले के प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से समिति में संशोधन कर सदस्यों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाए. इसके साथ ही साथ पहटिया (चरवाहे) की व्यवस्था से पशुओं का गौठानों में व्यवस्थापन सुनिश्चित करायें. गौठानों में पशु चिकित्सा तथा स्वास्थ्य शिविर का आयोजन कराया जाए तथा वर्षा के मौसम में गौठानों में पशुओं के सुरक्षा हेतु व्यापक प्रबंध किया जाए. वर्षा से जल भराव की समस्या दूर करने के लिये गौठानों में जल निकास की समुचित व्यवस्था की जाए तथा गौठान परिसर में पशुओं के बैठने हेतु कीचड़ आदि से मुक्त स्थान की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए.


कलेक्टरों और मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को गौठान में पर्याप्त चारा, पैरा आदि की व्यवस्था करने, ग्रीष्मकालीन धान की फसल के पैरादान हेतु कृषको को प्रेरित करने के निर्देश दिए गए हैं. इसके साथ ही साथ समस्त निर्मित गौठानों में 30 जुलाई से पहले चारागाह की स्थापना करने तथा कलेक्टरों से रोका-छेका कार्यक्रम का स्थानीय स्तर पर प्रचार-प्रसार सुनिश्चित कर ग्रामीणजनों की सहभागिता सुनिश्चित करने को कहा गया है.