डायनासोर का मुख्य खाना छत्तीसगढ़ के बैलाडीला में मिला, जानिए दुर्लभ ट्री फर्न के बारें में...
ज़ी मीडिया की टीम ने बीते दिनों ट्री-फ़र्न का एक बगीचा और उसके सम्मुख मौजूद एक जलप्रपात को दर्शकों के सामने लाने का प्रयास किया था. ट्री-फर्न 3 लाख वर्ष पहले हमारी धरती पर बहुतायत मात्रा में पाई जाती थी.
बप्पी राय/दंतेवाड़ा: संस्कृति और परंपरा में अनूठे छत्तीसगढ़ की प्रकृति में भी कई विशेषताएं मौजूद हैं. जिले में मौजूद बैलाडीला अपने आप में हजारों रहस्य समेटे हुए है. यहां की रहस्यमयी पहाड़ों पर डायनासोर काल की विलुप्त हो रही वनस्पतियां भी मौजूद है. इन्हीं में एक है ट्री-फर्न. जो आज से 3 लाख वर्ष पहले हमारी धरती पर बहुतायत मात्रा में पाई जाती थी. डायनासोर के युग में, तब ट्री फर्न की प्रजाति पाई जाती थी. जो डायनासोर का मुख्य भोजन था.
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दरअसल ज़ी मीडिया की टीम ने बीते दिनों ट्री-फ़र्न का एक बगीचा और उसके सम्मुख मौजूद एक जलप्रपात को दर्शकों के सामने लाने का प्रयास किया था. किरंदुल नगर से महज 5 किमी की दूरी पर मौजूद है. हरि घाटी का जलप्रपात. जो की दुनिया और पर्यटकों के नजरों से ओझल है. इस जलप्रपात तक पहुंचने वाले मार्ग में हमारी टीम को ट्री-फर्न का एक बगीचा दिखा था.
3 लाख पहले का विलुप्त पौधा
ट्री-फ़र्न एक विलुप्त प्रजाति का पौधा होता है. जो आज से 3 लाख वर्ष पहले हमारी धरती पर बहुतायत मात्रा में पाई जाती थी और यह फर्न का पौधा शाकाहारी डायनासोर का मुख्य भोजन हुआ करता था. बैलाडीला के पहाड़ों में आकाश नगर के पास भी यह डायनासोर युगीन पौधे पाए गए थे. जिसे राष्ट्रीय औषधी और पादप मंडल द्वारा संरक्षित किया गया था. किंतु इतने भारी तादात में फर्न के वृक्षों का यह बगीचा पहली बार हरि घाटी के इस क्षेत्र में देखी गई है. अब जरूरत है इन वृक्षों को संरक्षित करने की. आपको बता दें कि यह क्षेत्र भारत के नौरत्न कंपनी में से एक कंपनी NMDC के लीज क्षेत्र में मौजूद है. इस कारण इस क्षेत्र में सैलानियों का दखल बिल्कुल अछूता है.
10 फीट का पौधा बनने में लगते हैं 2000 वर्ष
ट्री-फर्न का वैज्ञानिक नाम क्याथेल्स है. यह लेप्टोसपोसेंगिएट फर्न है. ट्री फर्न में जड़, तना व पत्ता होता है पर फूल नहीं लगता. इसकी पत्तियां लंबी, नुकीली व कोमल होती हैं. इस पौधे का विकास बेहद धीमी गति से होता है. वैज्ञानिकों की माने तो इन्हें आठ से दस फीट लंबा होने में 2000 वर्ष का समय लगता है. ये पौधा साल में 2 सेंटीमीटर ही बढ़ता है.
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100 फीट का जलप्रपात दिखा
इस बगीचे से मजह आधा किमी आगे बढ़ने पर हमें दिखा हरि घाटी का विशाल जलप्रपात जो कि 100 फिट से अधिक ऊंचाई से गिरता है. आस-पास कई गुफा भी दिखे जिसके संबंध में ग्रामीणों ने बताया कि भारी बरसात के समय जंगली जानवर इस गुफा का इस्तेमाल करते है. बैलाडीला के पहाड़ों को जलप्रपातों का पहाड़ कहा जाता है. प्रत्येक 5 किमी के अंतराल में एक जलप्रपात अवश्य दिखेंगे. किन्तु अब यह जलप्रपात हैवी ब्लाष्टिंग के कारण विलुप्ति के कागार पर है. जरूरत है इनके संरक्षण की.