श्रीपाल यादव/रायगढ़: भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था. इसलिए इसी रोज कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है. इस बार जन्माष्टमी का त्यौहार 19 अगस्त को मनाया जाएगा. इस मौके पर देशभर में कई तरह के आयोजन जैसे- मेला, अनुष्ठान आदि होंगे. ऐसा ही एक मेला आयोजित होता है छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में, जहां 5 दिनों की इस आयोजन में भारी संख्या में भक्त आते हैं और यहां की महिमा में खो जाते हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ऐतिहासिक कृष्ण जन्म उत्सव
रायगढ़ में ऐतिहासिक कृष्ण जन्म उत्सव ( कृष्ण जन्मोत्सव ) मेला शुरू होने वाला है. इसे देखने के लिए रायगढ़ जिले से बाहर के जिलों से लोग पहुंचेगे. शहर में चलने 5 दिन चलने वाला ऐतिहासिक कृष्ण जन्म उत्सव में सभी लोग भगवान भक्ति में जाते हैं. रायगढ़ के गौरी शंकर मंदिर की महिमा ही ऐसी है, जो देखता है वो भगवान शंकर और माता गौरी की भक्ति मे खो जाता है. यह प्रदेश का ऐसा मंदिर है जहां भगवान शिव जी योग मुद्रा में है और उनके साथ गौरी माता है.


पड़ोसी राज्यों से आते हैं श्रद्धालु
जन्माष्टमी के अवसर पर हर वर्ष लखों श्रद्धालु यहां पहुचते है. छत्तीसगढ़ के कई जिलों के साथ ही यहां आने वाले श्रद्धालुओं में पडोसी राज्य ओडिसा, झारखंड, बिहार से भी लोग भी शामिल हैं. जो यहां आते है और भगवान की भक्ती में खो जाते हैं.


गौरी शंकर मंदिर की विशेषताएं
- गौरी शंकर मंदिर का निर्माण 1948 मार्च महीने में कराया गया था
- इसे बनाने में पूरे दो साल का समय लगा था
- मंदिर के निर्माण में शहर के दानवीर सेठ किरोड़ीमल का मुख्य योगदान है
- मुंबई से कारीगरों को लाकर मंदिर का निर्माण कराया था, जिसमें भगवान गौरी और शंकर की मूर्ति है
- पूरा मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है, जिससे इसकी भव्यता और बढ़ जाती है


आस्था का प्रमुख केंद्र है मंदिर
यह मंदिर रायगढ़ वासियों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है. किरोडीमल ट्रस्ट के अध्ययक्ष बताया की पिछ्ले 75 वर्ष से यहा जन्माष्टमी के अवसर पर भव्य मेले का अयोजन होते आ रहा है. बीते 2 साल कोरोना की वजह से रौनक फीकी पड गई थी. इस साल कई लाख श्रद्धालुओं की पहुंचने की उम्मीद है.


 जन्माष्टमी पर आकर्षण का केंद्र
रायगढ़ जिले में ये मंदिर जन्माष्टमी के अवसर पर सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र रहता है. खाटू श्याम मंदिर के सामने लगे चलित मूर्तियों की झांकियों में कृष्ण जन्म से लेकर बालपन की लीलाओ का जिवंत रुप दिखाया जाता है. इस मेले को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं. पहले मेले का आयोजन एक माह का होता था, लेकिन अब मेला 5 दिन चलता है. चलित मूर्तियों को बनाने के लिए कालकर कलकत्ता से आते हैं, जो एक माह की कड़ी मेहनत से इन्हें तैयार करते हैं.