Kondagaon News:  भारत सरकार की मंशा है कि भारत के हर बच्चे तक शिक्षा पहुंचे. इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए सरकार ने 2 साल से 5 साल तक के बच्चों के लिए आंगनबाड़ी शुरू की है. केंद्र सरकार का दावा है कि आंगनबाड़ियां हर कदम पर खुली हैं. लेकिन कोंडागांव जिले से एक वीडियो सामने आया है जिसमें हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है. वीडियो में आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चे भीषण गर्मी में बैठने के लिए जगह ढूंढ रहे हैं.


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किराये के मकान से हुई थी शुरुआत
दरअसल, 2010 में भेलवापदर आंगनबाड़ी की शुरुआत एक किराए के मकान से हुई थी. लेकिन 14 साल पहले वहां के मकान मालिक ने मकान खाली करवा दिया था. तब से लेकर अब तक भीषण गर्मी में कार्यकर्ता, सहायिका और अभिभावक पहले आंगनबाड़ी के 33 बच्चों के साथ बैठने के लिए जगह ढूंढते हैं और फिर जहां भी जगह मिल जाती है, उस दिन के लिए आंगनबाड़ी का संचालन किया जाता है. क्योंकि प्रशासन को आंगनबाड़ी केंद्र संचालित होने का प्रमाण भी देना होता है, वह भी फोटो खींचकर.  इतना ही नहीं भोजन भी सहायिका कार्यकर्ता अपने घर से बनाकर ही लाती आती हैं.


बच्चों संग आना दादी और माताओं की मजबूरी 
इस आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों को अपनी मां, दादी या परिवार के किसी अन्य सदस्य के साथ आना अनिवार्य है. क्योंकि जब तक आंगनबाड़ी संचालन के लिए जगह नहीं मिल जाती तब तक छोटे बच्चों को हाथ पकड़कर घूमना पड़ता है. यही कारण है कि परिवार का एक सदस्य भी उनके साथ रहता है, ताकि बच्चों को घुमाया जा सके. इतना ही नहीं बच्चों के साथ आने वाले सदस्यों को सुबह 8 बजे से दोपहर 1 बजे तक इसी आंगनवाड़ी में बैठना पड़ता है.


आंगनबाड़ी के लिए नहीं मिल रही जगह
आंगनबाड़ी केंद्र सुपरवाइजर रुखमनी साहू का कहना है कि हम प्रशासन से भवन की मांग करते-करते थक गये हैं. लेकिन आंगनबाड़ी केंद्र संचालन के लिए जगह उपलब्ध नहीं है. यही कारण है कि हम अब पत्रकारों से प्रेस क्लब भवन में एक कमरा मांग रहे हैं. अगर प्रशासन भेलवापदर वार्ड में एक आंगनबाड़ी भवन उपलब्ध नहीं करा पा रहा है तो पूरे गांव की स्थिति क्या होगी, यह समझा जा सकता है. एक माता-पिता का कहना है कि उन्हें इस तरह घूमते देखकर राम के वनवास की याद आ जाती है.


जिले में कई मकान पड़े हैं खाली 
प्रशासन चाहे तो जिले में आवास की कोई कमी नहीं है. जिस वार्ड में इस आंगनबाड़ी की बात की जा रही है उसी वार्ड में एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों सरकारी आवास हैं जो खाली पड़े हैं. लेकिन पिछले 14 सालों से इन आंगनबाड़ी बच्चों को न तो कोई कमरा मिला है और न ही कोई आवास.