जन्मजय सिन्हा/महासमुंदः अभी तक आपने देश दुनिया कई ऐसे प्राचीन मंदिरों की कहानी देखी या सुनी होगी, जहां कुछ न कुछ चमत्कारी घटनाएं होती रहती है. ऐसे में आज हम आपको छत्तीसगढ़ के एक ऐसे प्राचीन शिवलिंग के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर आप भी आश्चर्यचकित हो जाएंगे, क्योंकि इस शिवलिंग से हमेशा सुंगध निकलती रहती है. इतना ही नहीं इस शिवलिंग से अलग-अलग समय पर अलग-अलग खुशबू आती है. इसे लोग गंधेश्वर महादेव के नाम से जानते हैं. आइए जानते हैं कि आखिर क्या है इस शिवलिंग का इतिहास और क्या है रहस्य ?


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भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में तो सभी जानते है, लेकिन क्या किसी को पता है कि भगवान शिव का एक ऐसा भी शिवलिंग है. जो अलग-अलग खुशबुओं से सुगंधित होता रहता है. दरअसल भगवान शिव का यह मंदिर छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक नगरी सिरपुर, जो राजधानी रायपुर से सड़क मार्ग के रास्ते 85 किलोमिटर और महासमुंद जिला मुख्यालय से 40 किलो मीटर दूर स्थित है. सिरपुर जिसे पुरातन समय का बौद्ध नगरी कहा जाता है. जिसे भगवान शिव की महिमा को देखते हुए छत्तीसगढ़ का बाबा धाम भी कहा जाता है. 


पुरातात्विक धरोहरों को देखते हुए छत्तीसगढ़ की पुरातात्विक नगरी के नाम से भी जानते हैं. इसी सिरपुर में महानदी के तट पर स्थित है भगवान शिव का वो अद्भूत शिवलिंग. जिसे भगवान गंधेश्वर के नाम से जाना जाता है. सिरपुर में महानदी के तट के किनारे मनोरम दृश्य के साथ भगवान गंधेश्वर विराजमान है. भगवान शिव के इस अद्भूत शिवलिंग से निकलने वाली खुशबू समय के साथ बेशक विलुप्त हो रही है. लेकिन गर्भ गृह में भगवान शिव का शिवलिंग जहां स्थापित है. और जिसे भगवान गंधेश्वर के नाम से पुकारा जाता है. 


भगवान की इस महिमा का आभास स्वतः आपको होगा, क्योंकि शिवलिंग को स्पर्श करने के बाद आपके हाथों में एक अजीब सी खुशबू का आपको एहसास होगा. जानकार बताते हैं. कभी यहां से निकलने वाली गंध पूरे इलाके में महसूस किया जा सकता था. जानकार ये भी बताते है. कि अभी भी यहां कभी-कभी तुलसी, चंदन और अनेक प्रकार का गंध महसूस किया जा सकता है.


महानदी के पावन तट पर भगवान शिव की पूजा यहां गंधेश्वर महादेव के रूप में की जाती है. नदी तट से बिल्कुल लगे इस मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी में बालार्जुन के समय में बाणासुर ने कराया था. भगवान शिव के शिवलिंग से निकलने वाले गंध के बारे मंदिर के पुजारी नंदाचार्य दूबे बताते है, कि इसके बारे में एक देव कथा है. दरअसल सिरपुर 8वीं शताब्दी में बाणासुर की विरासत थी. वो शिव के उपासक थे. वह हमेशा शिव पूजा के लिए काशी जाया करते थे और वहां से एक शिवलिंग भी साथ में ले आया करते थे. कथा के मुताबिक एक दिन भगवान शंकर प्रकट होकर बाणासुर से बोले कि तुम हमेशा पूजा करने काशी आते हो, अब मैं सिरपुर में ही प्रकट हो रहा हूं. 


इस पर बाणासुर ने कहा कि भगवान मैं सिरपुर में काफी संख्या में शिवलिंग स्थापित कर चुका हूं. उसने भोलनाथ से पूछा कि जब वो प्रगट होंगे तो उन्हें पहचाना कैसे जाए. इस पर भगवान शम्भू ने कहा कि, जिस शिवलिंग से गंध का अहसास हो, उसे ही स्थापित कर पूजा करो. तब से सिरपुर में शिव जी की पूजा गंधेश्वर महादेव के रूप में की जाती है. मान्यता है कि अभी भी गर्भगृह में शिवलिंग से कभी सुगंध तो कभी दुर्गंध आती है. इसलिए ही यहां भगवान शिव को गंधेश्वर के रूप में पूजते हैं. मंदिर के पुजारी के मुताबिक यहां अलग-अलग समय में अलग-अलग खुशबूओं का एहसास होता है.


भगवान शिव का यह अद्भूत शिवलिंग क्या वाकई 8वीं शताब्दी से है या फिर खुदाई से निकला है. पुरातत्व विभाग से जुड़े गाइड सत्यप्रकाश ओझा बताते है. कि भगवान शिव का यह शिवलिंग यहां पुरातत्व विभाग को खुदाई से नहीं बल्कि आदीकाल से स्थित है. जिसकी महिमा दूर-दूर तक है. वैसे तो सिरपुर में अनेक शिवलिंग हैं, लेकिन पुरातत्व विभाग को खुदाई के दौरान अलग से 21 शिवलिंग मिले हैं. जो अलग है. खुदाई में प्राप्त शिवलिंगों में भगवान गंधेश्वर की तरह खुशबू नहीं आती है. महानदी के किनारे होने के कारण मंदिर का काफी हिस्सा सालों पहले पानी और भूकंप के कारण भूमिगत हो गया था, जिसे फिर से रिनोवेट कराया गया है.


 यहां हर हजारों के तादात में कावंरिया दूर-दूर से सावन के महीने में जल चढ़ाने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि यदि कोई सच्चे मन से भगवान गंधेश्वर से कामना करे तो वो उसकी मुरादे जरूर पूरी करते है. वैसे तो भगवान शिव के अनेको रूप है. हर रूप में भगवान शिव अलग-अलग पूजे जाते हैं, लेकिन महासमुंद जिले के सिरपुर में स्थित भगवान गंधेश्वर का यह रूप भी लोगों में काफी प्रचलित है. लेकिन अब तक देश दुनियां में इसे जानने वाले काफी कम लोग है. इसकी महिमा वहीं जानते है. जो यहां पहुंचकर भगवान शिव के इस गंधेश्वर रूप का दर्शन करते है. सिरपुर में वैसे तो कई पुरातात्विक धरोहर है. इसी के चलते लंबे समय से इसे वर्ल्ड हैरिटेज में शामिल करने की मांग चल रही है. विश्व धरोहर में शामिल होने के बाद सिरपुर में स्थित भगवान गंधेश्वर का रूप दुनियाभर में प्रचलित हो जायेगा.


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