इस सुरंग में थम जाती है ट्रेनों की रफ्तार; ब्रिटिश काल से जुड़ा है इतिहास, जानें क्या है विशेषता
Chhattisgarh Famous Tunnel: घूमने- फिरने के शौकीन लोगों को छत्तीसगढ़ काफी ज्यादा पसंद आता है. यहां पर कई ऐसी जगहें हैं जहां पर सैलानी जाना पसंद करते हैं. यहां की रहस्यमयी जगहें लोगों को खूब ज्यादा भाती है. ऐसे ही हम बात करने जा रहे हैं छत्तीसगढ़ के भनवारटंक सुरंग के बारे में, ये करीब 100 साल पुरानी सुरंग हैं, इस सुरंग में पहुंचने के बाद ट्रेनों की रफ्तार कम हो जाती है. जानिए क्या है इस सुरंग का इतिहास.
छत्तीसगढ़ के भनवारटंक स्थित रेल सुरंग 100 साल पुरानी है. अंग्रेजों ने 1907 में कटनी से बिलासपुर को जोड़ने के लिए इसका निर्माण कराया था. इस सुरंग से गुजरने वाली ट्रेनों की रफ्तार अंदर आते ही 10 किमी प्रति/घंटे पहले की तुलना में कम हो जाती है.
सुरंग का निर्माण सन् 1907 में अंग्रेजों ने कटनी से बिलासपुर को जोड़ने के लिए किया था. छत्तीसगढ़ के सबसे ऊंचे पहाड़ों को काटकर 331 मीटर लंबी सुरंग बनाई गई थी. इस सुरंग का प्रयोग 115 साल बाद भी किया जा रहा है. आपको जानकर हैरानी तो होगी ही कि इसमें से जब भी कोई ट्रेन जोती है तो उसकी रफ्तार 10 किमी प्रति घंटे हो जाती है.
भनवारटंक के दूसरी तरफ बनाई गई सुरंग का निर्माण साल 1966 में अप लाइन के लिए कराया गया था. दूसरी सुरंग की उम्र लगभग 59 साल कम है और इसकी लंबाई 109 मीटर ज्यादा या लगभग 441 मीटर है.
इतनी बड़ी और लंबी रेल लाइन होने के बाद भनवारटंक रेल सुरंग के पास वाली सुरंग से ट्रेनें 45 किमी प्रति/घंटे की तेज़ रफ्तार से निकल जाती है, इस पुरानी रेल टनल से ट्रेनों की रफ्तार कम हो जाती है. पुरानी रेल सुरंग की अभी जर्जर अवस्था है और इसमें अंदर की कलाकृति अंग्रेजों की इंजीनियरिंग को ध्यान में रखकर की गई है.
इसके अंदर जाते ही थोड़ी-थोड़ी दूरी पर छोटे सुरंगनुमा कमरे बने हुए हैं, जिसको देखने पर लगता है कि ट्रेन आते समय कर्मचारी इसी छोटे बने कमरो के अंदर चले जाते हैं, सुरंग के बीचों बीच पानी का एक स्रोत भी है, पानी शुद्ध व ठंडा निकलता है. यह पहाड़ो के बीच से रिसकर यहीं जमा होता है इस करण पानी शुद्ध आता है.
भनवारटंक टनल में घुसने से पहले ट्रेनों की रफ्तार धीमी होने के पीछे स्थानीय लोग कई तरह के किस्से बताते हैं. इसमें मुख्य रूप से एक हादसा भी है. साल 1981 में इस टनल से निकलते ही आमानाला के 100 फुट ऊंचे ब्रिज पर नर्मदा एक्सप्रेस को पीछे से आती हुई मालगाड़ी ने टक्कर मार दी थी.
इस हादसे में 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. जानकारों की मानें तो दुर्घटना वाली जगह पर खाई और सुनसान होने के कारण शवों को वहां से 2 किमी दूर भनवारटंक के नजदीक एक नीम के पेड़ के नीचे रखा गया,जहां से बाद में लोगों ने शवों की पहचान की और ले गए.
इस हादसे के बाद वहां के स्टेशन मास्टर को लगातार सपना आने लगा, जिसमें उसे नीम के पेड़ के नीचे कोई बुलाता और उस जगह पूजा-अर्चना कराने की बात कहता था. इसके बाद वहां पहले से ही स्थित मरही माई के मंदिर में पूजा अर्चना होने लगी.