छत्तीसगढ़ की सियासी `गोल्डन माला`, बैगा आदिवासियों की विरासत; जानिए कैसे बांस और घांस से होती है तैयार?
Political Golden Mala: कांग्रेस के अधिवेशन (congress convention) के बाद से ही छत्तीसगढ़ की सियासत में एक गोल्डन माला चर्चा में है. वास्तव में ये माला सोने की नहीं होती. इसे कवर्धा (Kawardha) के आदिवासी क्षेत्रों में बांस से बनाया जाता है, जिसे बीरन माला (Biran Mala) कहा जाता है. आइए जानते हैं इसके बारे में, ये कैसे बनती है और कौन इसे बनाता है.
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बीरन माला को कवर्धा जिले के वनांचल में बैगा आदिवासियों द्वारा बांस और विशेष प्रकार के घांस से तैयार किया जाता है, इसका उपयोग महिलाएं त्यौहार और बड़े कार्यक्रमों में सिर में पहनने के लिए करती हैं.
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कबीरधाम जिले के बैगा आदिवासी इसे सालों से बनाते आ रहे है. बांस को छिलकर पहले इसके रिंग बनाए जाते हैं. फिर उसके ऊपर मुंजा घास के रेशों को लगाया जाता है जो सोने की तरह चमकता है. बिरन माला बैगा समुदाय की महिलाएं ब्याह, पर्व, उत्सव में सिर पर पहनती हैं.
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यह माला बैगा संस्कृति के सिंगार में शामिल है जिले के बैगा आदिवासी इलाके के कांदावानी, बिरहुलडीह, डेंगुरजाम, बाहपानी, टेरहापानी, पंडरीपानी सहित अन्य गांवों के लोग परिवार के साथ मिलकर अपने घरों में बनाते हैं.
अपनी सांस्कृतिक मान्यता के साथ बिरन माला दिखने में इतना खास होता है कि यहां पदस्थ अधिकारी भी इसे काफी पसंद करते हैं और अपने निजी संबंधियों के लिए इसे बतौर उपहार लेकर जाते हैं.
यहां के आदिवासी क्षेत्र में पहुंचने वाले नेताओं का स्वागत भी इसी माला से करते हैं. क्यों की ये उनकी परंपरा की पहचान है और वो इसे अपना गर्व मानते हैं.
बता दें हाल ही में हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में ये माला चर्चा में आई थी. क्योंकि इसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रायपुर पहुंचे मेहमानों को पहनाई थी. तब भाजपा ने इसे सोने का बताकर कांग्रेस को ट्रोल किया था.