शैलेंद्र स‍िंंह ठाकुर/ब‍िलासपुर: 14 जुलाई से श्रावण मास प्रारंभ हो रहा है. इसके साथ ही शिवालयों में हर-हर शंभु की गूंज सुनाई देगी. मंदिर में घंटी और शंख की ध्वनि सुनने को म‍िलेगी. ऐसे में हम बता रहे हैं छत्‍तीसगढ़ के उस श‍िव मंद‍िर के बारे में जहां के बारे में मान्‍यता है क‍ि श‍िवल‍िंग पर चढ़ाया जाने वाला जल पाताल लोक तक जाता है. 


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सावन में इस बार होंगे चार सोमवार 


इस साल चार श्रावण (सावन) सोमवार पड़ेंगे. पहला सावन सोमवार 18 जुलाई, दूसरा 25 जुलाई, तीसरा एक अगस्त और चौथा सोमवार आठ अगस्त को होगा. 14 जुलाई से 12 अगस्त तक सावन मास रहेगा. कोरोना महामारी के दो साल बाद शिवभक्त बिलासपुर के प्रमुख शिवालयों में जल चढ़ा सकेंगे. विधिवत पूजा के साथ भोलेनाथ का अभिषेक कर सकेंगे. यहां मल्हार स्थित पातालेश्वर मंदिर आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है.


पातालेश्वर महादेव मंदिर के भू-गर्भ में विराजमान 


पातालेश्वर/केदारेश्वर महादेव मंदिर बिलासपुर जिले के मल्हार में स्थित है. बिलासपुर शहर से 32 किलोमीटर दूरी पर स्थित नगर पंचायत मल्हार एक ऐतिहासिक स्थल है. मंदिर का निर्माण कल्चुरी काल में 10वीं से 13वीं सदी में सोमराज नामक ब्राह्मण ने कराया था. पातालेश्वर महादेव मंदिर के भू-गर्भ में विराजमान हैं. 


काले चमकीले पत्थर की गौमुखी आकृति का शिवलिंग


इस मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर में 108 कोण बने हुए हैं. पातालेश्वर महादेव को केदारेश्वर भी कहते हैं. यह काले चमकीले पत्थर की गौमुखी आकृति का शिवलिंग है. मान्यता है कि भगवान शंकर की जलहरी में चढ़ाया जाने वाला जल पाताल लोक तक पहुंचता है. यहां महाशिवरात्रि के अवसर पर मंदिर परिसर में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. यह मेला 15 दिनों तक चलता है।सावन के महीनें में यहां बड़ी संख्या में हर साल भक्त पहुंचते हैं।


पातालेश्वर या केदारेश्वर महादेव नाम से मंदिर की स्थापना 


अंचल का सबसे प्रसिद्ध शिव मंदिरों में से एक है. यहां भक्तों की अटूट आस्था है. यहां पातालेश्वर या केदारेश्वर महादेव नाम से मंदिर की स्थापना की गई है. सदियों से आज तक भक्त यहां दर्शन करने पहुंचते हैं. मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं जल्द पूरी होती हैंं. 
 
मल्हार का इतिहास
पुराणों में वर्णित मल्लासुर दानव का संहार शिव ने किया था. इसके कारण उनका नाम मलारि, मल्लाल प्रचलित हुआ. यह नगर वर्तमान में मल्हार कहलाता है. मल्हार से प्राप्त कलचुरी कालीन 1164 ईं के शिलालेख में इस नगर को मल्लाल पत्त्न कहा गया है. विशेष तौर पर इस नगर का प्रचार तब अधिक हुआ जब यहांं से डिडनेश्वरी देवी की प्राचीन प्रतिमा चोरी हो गई थी. तब समाचार पत्रों में इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता रहा.


पातालेश्वर मंदिर का मंडप अधिष्ठान ऊंचा है पर गर्भ गृह में जाने के लिए 8-10 सीढ़ियां उतरना पड़ता है अर्थात गर्भगृह धरातल पर ही है. दरवाजे के बांई तरफ़ कच्छप वाहिनी यमुना एवं दांई तरफ़ मकर वाहिनी गंगा देवी की स्थानक मुद्रा में आदमकद प्रतिमा है. इनके साथ ही शिव के अन्य अनुचर भी स्थापित हैं.


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