विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की अजीब रस्म, मछलियां और अंडे के साथ हुई विशेष पूजा अर्चना
World famous Bastar Dussehra: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की विशेष रस्म `डेरी गड़ाई` का आज आयोजन हुआ. इसके लिए गड्ढे में मछलियां और अंडे समर्पित किए गए. अब इसके साथ ही 2 मंजिला रथ बनने की शुरुआत हो गई है.
अविनाश प्रसाद/बस्तर: 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की 'डेरी गड़ाई' रस्म आज विधि विधान से संपन्न हुई. इस दौरान जगदलपुर शहर के सिरहासार भवन में दंतेश्वरी माई के मुख्य पुजारी ने दो लकड़ी की दो टहनियों की साज सज्जा कर उसे गड्ढे में स्थापित किया.
पूजा के दौरान दो गड्ढों में मछलियां और अंडे अर्पित किए
देवी की पूजा के दौरान दो गड्ढों में मछलियां और अंडे अर्पित किए गए. प्रतिवर्ष शुक्ल त्रयोदशी के शुभ मुहूर्त में इस विधान के तहत विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इस आयोजन में एक गांव विशेष से लाई गई लकड़ी की दो टहनियों की पूजा अर्चना कर उन्हें दो गड्ढों में स्थापित किया जाता है. इस दौरान हल्दी खेलने की भी रस्म है.
150 कारीगर मिलकर 1 महीने के अथक प्रयास से बनाते हैं रथ
दरअसल, यह मुहूर्त ऐसा शुभ मुहूर्त माना जाता है जिस दिन कोई भी विशेष काम अगर शुरू किया जाए तो वह जरूर सफल होता है. बस्तर में दशहरे पर्व के लिए लकड़ियों का विशालकाय रथ बनना है. इसे दो निश्चित गांव के 150 कारीगर मिलकर 1 महीने के अथक प्रयास से बनाते हैं. ऐसे में रथ निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने के पहले इस पूजन कार्यक्रम का आयोजन होता है.
600 से भी अधिक वर्षों से लगातार चली आ रही परंपरा
इस विधान के बाद अब जंगलों से रथ निर्माण के लिए लकड़ियां जगदलपुर लाने की प्रक्रिया की शुरुआत हो जाएगी. पूजा पाठ के दौरान पुजारी देवी मां से निवेदन करते हैं कि रथ निर्माण के इस वृहद कार्य में किसी भी प्रकार की कोई बाधा ना आए. यह परंपरा यहां 600 से भी अधिक वर्षों से लगातार चली आ रही है.
आदिवासियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है ये दशहरा
बस्तर के दशहरे पर्व में सभी समाजों की भूमिका है लेकिन बस्तर के दशहरे में यहां के आदिवासी समाज की विशेष भूमिका होती है. इस पर्व में ना केवल बस्तर संभाग बल्कि आसपास के राज्यों से भी लोग बस्तर दशहरे की रस्मों में सहभागिता निभाने छत्तीसगढ़ और बस्तर आते हैं. इस पर्व में मां दंतेश्वरी के छत्र को रथ पर रखा जाता है. आदिवासी इस रथ को बड़ी श्रद्धा के साथ खींचते हैं. इस रथ के निर्माण का कार्य भी आदिवासी समाज द्वारा ही होता है.
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