ओपी तिवारी/सूरजपुर: जिले के भटगांव इलाके के मुसलमान कागजी दावपेंच और झूठे राजनैतिक आश्वासनों के बीच अधर में लटके हुए हैं. यहां के मुसलमानों को मरने के बाद भी अंतिम संस्कार यानी दफनाने के लिए आसानी से 2 गज जमीन नहीं मिल रही है. बता दें कि पिछले 22 सालों से इस इलाके के मुसलमान कब्रिस्तान के जमीन के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं. लेकिन संबंधित अधिकारी इस पूरे मामले में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं.


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दो हजार के करीब है मुस्लिम आबादी 
दरअसल सूरजपुर जिले का भटगांव इलाके की आबादी करीब 30 हजार है, जिसमें लगभग दो हजार मुस्लिम आबादी है, यह इलाका कोयला उत्पादन के लिए जाना जाता है, यहां पर एसईसीएल की कोयले की कई खदानें मौजूद हैं, इस इलाके में 1971-72 में कोयला खदान खुली थी, तब यहां बड़ी संख्या में अन्य कर्मचारियों के साथ-साथ मुसलमान कर्मचारी भी आए थे, कई मुसलमान व्यापारी भी इस इलाके में रहते हैं, कुल मिलाकर इस इलाके में मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी है.


दो गज जमीन की लड़ाई लड़ रहे मुसलमान
1987-88 में यहां के मुसलमानों के द्वारा तहसीलदार और एसडीएम से कब्रिस्तान के लिए जमीन की मांग की थी और राजस्व विभाग के द्वारा इन्हें 1.214 हेक्टेयर भूमि कब्रिस्तान और ईदगाह के लिए आवंटित भी की गई थी, जिसके बाद से भटगांव क्षेत्र के मुसलमान इसी जमीन पर मृतकों को सुपुर्द ए खाक यानी दफना रहे थे, तभी अचानक वर्ष 2000 में वन विभाग के द्वारा इस जमीन पर विभागीय कार्य कराया जाने लगा, जब मुसलमान समाज के लोगों ने इसका विरोध किया तो वन विभाग के द्वारा उन्हें यह बताया गया कि यह जमीन वन विभाग की जमीन है और यह किसी को आवंटित नहीं की गई है, तब से लेकर अभी तक इस इलाके का मुसलमान समाज मरने के बाद दो गज जमीन के लिए अपनी लड़ाई लड़ रहा है.


तहसीलदार से लेकर मुख्यमंत्री तक कर चुकी है शिकायत
मुसलमान समाज द्वारा तहसीलदार से लेकर मुख्यमंत्री तक से लिखित शिकायत की गई है, इसके बावजूद भी आश्वासन के सिवाय आज तक इनको कुछ और नहीं मिल सका है. वहीं इस पूरे मामले को लेकर जिला प्रशासन कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है, उनके अनुसार यह पूरा मामला जिला कलेक्टर न्यायालय में विचाराधीन है, जिसकी वजह से इस मामले में कुछ भी बोल पाना सही नहीं होगा. जिंदगी भर कागजी दस्तावेजों में फंस के रहने वाले आम आदमी को अब मौत के बाद भी सुपुर्द ए खाक के लिए 2 गज जमीन भी नसीब नहीं हो पा रही है, सभी वर्गों को उनका अधिकार देने का दावा करने वाली राज्य सरकार के लिए यह मामला आईना दिखाने वाला है.


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