अव‍िनाश प्रसाद/बस्‍तर: 75 दिनों तक चलने वाले विश्व के सबसे बड़े त्यौहार बस्तर दशहरा का आज समापन हो गया. आदिशक्ति मां दुर्गा के 52 वे शक्तिपीठ दंतेवाड़ा से बस्तर दशहरे में शामिल होने जगदलपुर आई माता मावली की आज विदाई की गई. इस आयोजन में बस्‍तर का राजपर‍िवार भी शाम‍िल हुआ. 


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माई जी की डोली को बंदूकों की दी गई सलामी 
वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार, जगदलपुर स्थित मा दंतेश्वरी के मंदिर में रखी गई माता मावली की डोली को राजपरिवार के सदस्य ने अपने कंधे पर उठाकर जगदलपुर से विदाई दी. पुलिस विभाग ने इस अवसर पर माई जी की डोली को बंदूकों की सलामी दी. इस आयोजन में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए. सर्व समाज के लोगों ने माता दंतेश्वरी के सम्मान में कलश यात्रा का आयोजन किया. जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर से डोली के अगले पड़ाव जिया डेरा तक भक्तों ने राहों में पुष्प बिछा रखा था.


माताजी की डोली विदाई के लिए एक बड़ा आयोजन
दरअसल, बस्तर के दशहरे के दौरान आदिशक्ति मां दुर्गा के 52 वें शक्तिपीठ दंतेवाड़ा से माता दंतेश्वरी का छत्र और माता मावली की डोली जगदलपुर लाई जाती है और मावली परघाव नामक कार्यक्रम में बस्तर संभाग भर के सैकड़ों देवी-देवताओं के विग्रह उनका स्वागत करते हैं. दशहरे के आयोजनों के दौरान माता मावली की डोली जगदलपुर स्थित दंतेश्वरी मंदिर में ही रहती है. दशहरे के संपन्न होने पर माताजी की डोली विदाई के लिए एक बड़ा आयोजन आयोजित किया जाता है.


डोली के सफर में होते हैं अलग-अलग गांवों में कई पड़ाव 
जगदलपुर से दंतेवाड़ा तक डोली के सफर में अलग-अलग गांवों में कई पड़ाव होते हैं. रियासतकाल में उचित सड़क मार्ग और परिवहन सुविधा ना होने की वजह से माई जी की डोली को जगदलपुर से दंतेवाड़ा जाने में कई कई दिन लग जाया करते थे. अब यह डोली अपनी विदाई के दिन ही देर शाम तक दंतेवाड़ा पहुंच जाया करती है. 


नम आंखों से दी व‍िदाई
माईजी की डोली विदाई के समय भक्तों ने नम आंखों से उनका अभिवादन किया और विदाई दी. दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा के मुख्य पुजारी जिन्हें जिया कहा जाता है, वे डोली को अपने साथ लेकर दंतेवाड़ा के लिए रवाना हुए. 


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